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हिंदी के हिमायती बनें नेता

अहिंदीभाषी होते हुए भी स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि मेरी आंखें उस दिन के लिए तरस रही हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीय एक भाषा बोलने और समझने लग जायेंगे. स्पष्ट है कि स्वामी दयानंद जी पूरे भारतवर्ष में हिंदी का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे. लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि […]

अहिंदीभाषी होते हुए भी स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि मेरी आंखें उस दिन के लिए तरस रही हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीय एक भाषा बोलने और समझने लग जायेंगे. स्पष्ट है कि स्वामी दयानंद जी पूरे भारतवर्ष में हिंदी का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे. लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि हिंदी अपने ही इलाकों में दुर्दशा की शिकार है.

हमारे देश में हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है, लेकिन महज औपचारिकताओं के साथ. हिंदी की उपेक्षा को रोकने के गंभीर प्रयास नहीं किये जाते हैं. घोषणाएं अनेक की जाती हैं, लेकिन वे राजनीति की शिकार होकर अमल में आने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. कॉन्वेंट स्कूलों में हिंदी को हेय दृष्टि से देखा जाता है.

दिलचस्प बात यह है कि आज भी हिंदी भाषी समाचार पत्र-पत्रिकाएं व चैनल अंगरेजी मीडिया से कहीं अधिक लोकप्रिय हैं, क्योंकि हिंदीभाषी क्षेत्र के बड़े होने के कारण इनकी पहुंच अधिकाधिक लोगों तक है. गैर हिंदीभाषी प्रदेशों के नेता हिंदी को शत्रु भाषा मानते हैं.

सम्मेलनों में या जहां कहीं भी उन्हें मौका मिलता है, वे हिंदी को छोड़ अंगरेजी हांकना शुरू कर देते हैं. इस बात से बेअसर कि उनकी अंगरेजी का स्तर कैसा है. इस साल हिंदी दिवस पर सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि वे केंद्र सरकार की हिंदी उत्थान से जुड़ी प्रत्येक योजना में पूर्ण सहयोग देने का संकल्प लें, ताकि हिंदी का खोया गौरव पुन: लौटाया जा सके. यह देश की एकता के लिए भी अत्यंत आवश्यक है. इस मामले में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रेरक साबित होंगे, जिन्होंनेअपने विदेश दौरों में भी हिंदी का दामन थामे रहने की बात कही है. मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी हिंदी में बोलेंगे.

धीरज कुमार, रामगढ़

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