लगता है कि ‘उग्रवादी’ संगठन बनाने समेत कई गंभीर मामलों के आरोपी झारखंड के कृषि मंत्री योगेंद्र साव कानून से भी ऊपर हैं. सच्चई जानने के लिए पुलिस उनसे पूछताछ करने की कोई पहल करती नहीं दिख रही है और न ही सरकार के स्तर पर कोई कदम उठाये जा रहे हैं.
खुद योगेंद्र साव भी कोई नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं. यह सब झारखंड में ही हो सकता है. एक सप्ताह पहले गिद्दी से गिरफ्तार, उग्रवादी संगठन झारखंड टाइगर ग्रुप के सरगना राजकुमार गुप्ता ने पुलिस को बताया था कि मंत्री योगेंद्र साव ने ही उग्रवादी संगठन झारखंड टाइगर ग्रुप का गठन किया था.
इसके लिए हथियार व पोस्टर मुहैया कराये थे. मंत्री ही लेवी वसूली की राशि तय करते थे. उसमें हिस्सा मांगते थे. इतना ही नहीं, यह भी आरोप लगाया है कि मंत्री योगेंद्र साव ने लेवी नहीं देनेवाले पिपरवार के एक ट्रांसपोर्टर बबलू मुंडा की हत्या की सुपारी भी दी थी. झारखंड टाइगर ग्रुप के सरगना राजकुमार गुप्ता का स्वीकारोक्ति बयान धारा 164 के तहत दर्ज भी किया जा चुका है. पर मंत्री पर अब तक कोई आंच तक नहीं आयी है. इतना कुछ होने के बाद भी न हजारीबाग पुलिस और न ही राज्य के आला पुलिस अधिकारी मंत्री योगेंद्र साव से पूछताछ तक की भी हिम्मत जुटा पा रहे हैं. सरकार भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए है.
इससे पता चलता है पुलिस और सरकार कैसे किसी पर कानूनी कार्रवाई करने में भेदभाव करती हैं. या ऊपरी दबाव के बाद ही सक्रिय होती हैं. यही कारण है कि राज्य की कानून-व्यवस्था लचर हो गयी है. रांची में पुलिस कार्रवाई का ताजा उदाहरण भी सामने है. तारा शाहदेव द्वारा पति रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन के खिलाफ धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने के बाद पुलिस ने ही सक्रियता दिखाते हुए कार्रवाई की. पत्नी को यातना देनेवाले रंजीत उर्फ रकीबुल और उसकी मां जेल में हैं. पुलिस ने ही तारा शाहदेव के बयान के आधार पर रंजीत उर्फ रकीबुल के कई ठिकानों की तलाशी ली. उसके संपर्क सूत्रों का पता लगाया. इस मामले में जिन मंत्रियों, पुलिस व न्यायिक अधिकारियों के नाम आये हैं, उनसे भी पुलिस पूछताछ कर रही है या करने की तैयारी में है. राज्य के ये दो ताजा उदाहरण हैं, जो पुलिस की कार्यशैली को उजागर करते हैं.