झारखंड की राजधानी रांची स्थित राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) का मुआयना करने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की टीम अक्तूबर महीने में कभी भी आ सकती है.
इस मुआयने की अहमियत क्या है, यह समझने के लिए इसकी पृष्ठभूमि को जानना होगा. रिम्स में एमबीबीएस की 150 सीटें हैं, जिसे पिछले दिनों एमसीआइ ने घटा कर 90 कर दिया था. वजह थी, 150 सीटों के हिसाब से पर्याप्त संसाधन का नहीं होना. सीटों में कटौती की वजह से, मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास कर दाखिले का इंतजार कर रहे कई लड़के -लड़कियों का भविष्य अधर में लटक गया था.
सोचिए कि जिसका सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला होना तय हो चुका हो, और उसे मालूम पड़े कि अब सीटें कम हो गयी हैं इसलिए उसे दखिला नहीं मिलेगा, तो उस पर क्या गुजरेगी. जिन्हें दाखिला देने से इनकार कर दिया गया, उन्हें मजबूर होकर अनशन करना पड़ा. कुछ की तो हालत नाजुक हो गयी थी. यह तो भला हो झारखंड हाइकोर्ट का, जिसने सीटों की संख्या पहले ही की तरह 150 बनाये रखने का आदेश देकर बच्चों का भविष्य बचाया. ऐसे तकलीफदेह हालात फिर न पैदा हों, इसके लिए रिम्स प्रबंधन को कमर कस लेनी चाहिए.
एमसीआइ ने अपने पिछले दौरे में जिन खामियों की ओर इशारा किया था, उन्हें दूर करने के लिए बिना देर किये जुट जाना चाहिए. एमसीआइ पुस्तकालय को उन्नत बनाने और उसकी क्षमता बढ़ाने, सीनियर रेजिडेंट की सीटें पूरी भरने और चिकित्सा रिकार्ड विभाग को कंप्यूटरीकृत करने का निर्देश पहले ही दे चुका है. इन निर्देशों पर अविलंब अमल शुरू कर देना चाहिए. अक्तूबर महीने में कई बड़े पर्व-त्योहार हैं. इसकी वजह से छुट्टी का माहौल भी रहेगा. लेकिन, रिम्स प्रशासन को सुनिश्चित करना होगा कि इसकी वजह से काम में कोई ढिलाई न आने पाये. झारखंड में तीन ही मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें महज 350 सीटें हैं. अगर हाइकोर्ट का आदेश नहीं आया होता, तो सीटों की संख्या और कम हो गयी होती. रिम्स प्रशासन को यह मान कर काम करना चाहिए कि उसके हाथों में अनेक नौजवानों का भविष्य है. डॉक्टरों की बढ़ती जरूरत को देखते हुए, एक -एक सीट की हिफाजत करना उसका परम कर्तव्य है.