सोमवार को राजधानी रांची में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अन्य अनेक संगठनों ने बंद करवाया. महीने भर के अंदर तीसरी बार शहर में बंद कराया गया.
जिस राज्य की राजधानी में महीने में तीन-तीन बार बंद होता हो, वहां के सामाजिक और राजनीतिक हालात के बारे में कोई भी अंदाजा लगा सकता है. तीन में से दो बंद सांप्रदायिक रंग लिये हुए थे. 31 जुलाई को विहिप, बजरंग दल ने, रांची के पास चान्हो में ईद की नमाज को लेकर दो समुदायों के बीच हुई मारपीट को लेकर बंद कराया. मकसद साफ था, एक छोटे से टकराव को सांप्रदायिक रंग देकर विधानसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण कराना. अब 25 अगस्त के बंद के लिए ‘लव जेहाद’ का बहाना बनाया गया. रांची की महिला खिलाड़ी तारा शाहदेव के साथ जो हुआ वह बहुत दुखद है. यह शादी में धोखे का मामला है. अगर धर्म परिवर्तन के दबाव की बात सच है, तो यह और बड़ा गुनाह है.
निश्चित रूप से गुनाहगार पर कार्रवाई होनी चाहिए और पुलिस-प्रशासन ने कुछ काम शुरू भी कर दिया है. आरोपी रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन के बारे में बहुत सी चीजें संदेहास्पद है, जिसका परदाफाश पुलिस को जल्द से जल्द करना चाहिए. लेकिन, ऐसी किसी घटना के लिए ‘लव जेहाद’ जैसी शब्दावली का इस्तेमाल भड़काऊ है.
यह पूरे मुसलिम समुदाय को शक के घेरे में खड़ा करने की साजिश है. किसी एक घटना को परिघटना का रूप नहीं दिया जा सकता. भाजपा को इस बारे में जिम्मेदार संगठन की तरह पेश आना चाहिए. उत्तर प्रदेश भाजपा के नेताओं ने ‘लव जेहाद’ की बात को खूब हवा दी, लेकिन संतोष की बात है कि उन्होंने अपने भावी कार्यक्रम में ‘लव जेहाद’ के मुद्दे को औपचारिक तौर पर शामिल नहीं किया. संघ को अपने से जुड़े संगठनों पर लगाम लगानी चाहिए. अभी केंद्र में जो सरकार है, उसका संरक्षक संघ को माना जाता है. अगर देश में माहौल बिगड़ता है, तो इससे केंद्र सरकार की छवि भी धूमिल होगी. कहा जायेगा कि मोदी सरकार आते ही दंगे-फसाद शुरू हो गये. ऐसी बदनामी न हो, इसके लिए संघ को अपने संगठनों को संयम बरतने की सलाह देनी चाहिए. खैर, शुक्र है कि रांची में बंद कमोबेश शांतिपूर्ण गुजर गया.