आलोक जोशी
वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार
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क्याभारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में आपका पैसा डूब जायेगा? जब से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में यह कहा कि सरकार एलआइसी में कुछ हिस्सा बेचने की सोच रही है, तब से लाखों परिवारों में खलबली मची है.
बजट के दिन मैं एक चैनल के साथ फेसबुक चैट पर हिस्सा ले रहा था और वहां सबसे ज्यादा सवाल इसी पर आ रहे थे कि अब बीमा पॉलिसी धारकों का क्या होगा. जिन्होंने बीमा कराया है, उन्हें कुछ हो गया, तो क्या अब पैसे नहीं मिलेंगे? और, जिन लोगों ने मनी बैक या एन्डाउमेंट पॉलिसी ली है, उनकी मैच्योरिटी की रकम क्या अब खतरे में है? ये सवाल दिखाते हैं कि जीवन बीमा निगम भारत के मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के लिए क्या अहमियत रखता है.
जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी – यह है एलआइसी की टैगलाइन या वो सूत्रवाक्य, जिसके सहारे न जाने कितने परिवार सुखी भविष्य की कामना करते हैं और तमाम खतरों से खुद को महफूज समझते हैं.
जब यह निगम बना था, तब नीति-निर्धारकों ने भगवद्गीता से एक श्लोक का हिस्सा उठाकर इसके लोगो में लगाया था- ‘योगक्षेमं वहाम्यहम’- योगेश्वर कृष्ण यह वादा कर रहे हैं कि तु्म्हारा जो कुछ है, वह सुरक्षित रहेगा और उसके अलावा भी जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें दिलवाने का भार मैं लेता हूं. इससे अच्छा बीमा या इंश्योरेंस क्या होगा! आजाद भारत ने अपने जीवन बीमा निगम के लिए एकदम सटीक मंत्र धारण किया था.
लेकिन अब सवाल यह है कि जो तुम्हारा है, वह दिलवाना तो दूर, जो हमारा है, कहीं वही तो नहीं डूब जायेगा? यही सवाल है, जिसका जवाब दिया जाना जरूरी है.
और, यह इसलिए भी जरूरी है कि एलआइसी पॉलिसी लेनेवाले ज्यादातर लोग वे हैं, जो बैंक या पोस्ट ऑफिस में पैसा रखने के अलावा किसी भी तरह के निवेश से कतराते हैं, बल्कि कतराने की जगह घबराते हैं, यह कहना बेहतर होगा. वजह यह है कि इन्हें डर लगता था. डर की वजह भी थी. शेयर बाजार में, चांदी-सोने के सट्टे के कारोबार में, यूनिट ट्रस्ट जैसे सरकारी संस्थान में- इतने बड़े-बड़े घोटाले हो चुके थे कि आम आदमी को इनका नाम सुनते ही डर लगने लगता था कि उसकी जिंदगी भर की कमाई कहीं ठगों की भेंट न चढ़ जाये.
लेकिन इससे बड़ा डर हर इंसान को यह होता है कि अगर अचानक उसे कुछ हो जाये, तो परिवार का क्या होगा. फिर जिन लोगों की सरकारी पेंशन नहीं थी, उन्हें यह डर भी सताता ही था कि एक बार कमाई बंद हो गयी, तो आगे खर्च कैसे चलेगा. ऐसे लोगों के लिए एक बड़ा सहारा बनकर आया जीवन बीमा निगम. पैसे पर सरकार की गारंटी थी, इसलिए डर खत्म हो गया.
अभी हाल तक देखा जाता है कि बेटे की नौकरी लगने के साथ ही पिता घर पर अपने पुराने बीमा एजेंट-कम-फैमिली फाइनेंशियल एडवाइजर को बुलाते हैं और एक नयी पॉलिसी करवाते हैं. साथ में एक प्रेम भरी सलाह- लो भाई, पहला प्रीमियम हमने भर दिया है, अब आगे पॉलिसी चालू रखना तुम्हारी जिम्मेदारी.
सोचिये, गिफ्ट भी हो गयी और बचत की आदत डालने का सटीक तरीका भी. बाद में टैक्स की छूट भी एक बड़ा बहाना बन गयी लोगों के लिए बीमा कराने की. जाने-माने टैक्स सलाहकार शरद कोहली का कहना है कि सत्तर फीसदी बीमा पॉलिसियां जनवरी से मार्च के बीच में बिकती हैं.
यह वह वक्त है, जब लोगों को अपने दफ्तर में टैक्स बचाने के लिए बीमा या दूसरे किसी निवेश की रसीदें जमा करनी होती हैं ताकि टैक्स में छूट मिल सके. इसका दूसरा मतलब यह है कि अगर टैक्स की छूट न होती, तो शायद ये सत्तर प्रतिशत पॉलिसी होती ही नहीं.
इस साल बजट में आयकर के मसले पर जो दो रास्ते खोले गये हैं, उन्हें देखते हुए सबसे बड़ी आशंका यही है कि अब नयी नौकरी शुरू करनेवाले नौजवान टैक्स बचाने के चक्कर में पॉलिसी लेने का रास्ता बहुत कम या करीब करीब नहीं ही चुनेंगे.
टैक्स प्लानिंग करनेवाले सलाहकारों से पूछेंगे, तो वे भी यही सलाह दे रहे हैं कि अब टैक्स बचाने के लिए नयी पॉलिसी के चक्कर में तो पड़िये मत. न जाने कब सरकार इन दो रास्तों में से एक पर नो एंट्री का बोर्ड लगा दे. तो, आज से ही बचकर चलिये.
अब सवाल फिर वही. नयी पॉलिसी लेनेवाले तो नहीं लेंगे, मगर जो ले चुके हैं उनका क्या होगा? तो इसका जवाब साफ है. फिलहाल फिक्र न करें. अव्वल तो एलआइसी का हिस्सा बिकना आसान काम नहीं है. साल दो साल से ज्यादा का वक्त लगेगा और अभी इसके लिए सरकार को तमाम कानूनी बाधाएं पार करनी होेंगी. और, वो सब हो जाने के बाद भी, सरकार दस से पंद्रह फीसदी हिस्सा बेचने की ही सोच रही है.
अगर शेयर बाजार के नियमों को देखें और वह पच्चीस फीसदी तक हिस्सा बेच दे, तब भी इससे सरकार को लगभग दो-ढाई लाख करोड़ रुपये एक बार में मिल सकते हैं. लेकिन इससे बीमाधारकों को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. उनके पैसे की वापसी का वादा जैसे आज भारत सरकार की गारंटी के भरोसे है, वैसे ही आगे भी रहेगा. इसलिए उस मोर्चे पर फिक्र करने की जरूरत नहीं है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)