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शासन व्यवस्था में आया भारी बदलाव

आर राजागोपालन वरिष्ठ पत्रकार rajagopalan1951@gmail.com पिछले साल के लोकसभा चुनाव में हासिल अपनी भारी विजय के बाद अब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपने छठे वर्ष में हैं. वर्ष 2014 तथा 2019 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत के अपने सपने को निकट ला दिया. चुनावी रैलियों में अपने भाषणों […]

आर राजागोपालन

वरिष्ठ पत्रकार

rajagopalan1951@gmail.com

पिछले साल के लोकसभा चुनाव में हासिल अपनी भारी विजय के बाद अब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपने छठे वर्ष में हैं. वर्ष 2014 तथा 2019 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत के अपने सपने को निकट ला दिया. चुनावी रैलियों में अपने भाषणों में नरेंद्र मोदी पहले से ही कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते रहे हैं.

दरअसल, मोदी की सियासत देश की 35-40 ऐसी क्षेत्रीय पार्टियों को भारी पड़ रही है, जिन्हें वह वंशवादी पार्टियां मानते हैं. अगर शासन पद्धति को ही लें, तो नरेंद्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से बहुत अलग और मोरारजी देसाई के निकट हैं. पिछले छह वर्षों के अंदर नरेंद्र मोदी ने शासन प्रणाली में बड़े बदलाव लाते हुए उसमें ऊर्जा भर दी है. आगे वर्ष 2024 के लिए उनका एक सूत्री कार्यक्रम सभी क्षेत्रों में विकास के खासे बड़े कदम उठाना है.

शासन में उनकी पहली क्रांति वर्ष 2025 के भारत की तस्वीर पेश करना है. उन्होंने ही ये लक्ष्य तय किये हैं और उसके अनुरूप पार्श्विक प्रवेश (लेटेरल एंट्री) के द्वारा खुले बाजार से 40 पेशेवरों को भारतीय नौकरशाही में लेकर उसे एक प्रगतिशील दिशा देने की कोशिश की है. नरेंद्र मोदी जोखिम लेने में यकीन करते हैं और किसी नकारात्मक प्रतिक्रिया से घबराते नहीं हैं. उनका पहला और सबसे बड़ा कदम वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करना था, जिसके बाद दूसरा ऐसा कदम नोटबंदी का रहा. हालांकि, इन दोनों कदमों की लोगों ने खूब आलोचनाएं कीं, लेकिन नरेंद्र मोदी उन आलोचनाओं की जरा भी परवाह नहीं की.

अभी हाल में अमेरिका से कच्चे तेल की आपूर्ति दोगुनी करके उन्होंने ऐसा तीसरा बड़ा काम कर दिखाया है, ताकि खाड़ी के तेल स्रोतों पर ज्यादा निर्भरता न बनी रहे. इस कदम का इस्तेमाल कर उन्होंने अमेरिकी कंपनियों से 5जी प्रौद्योगिकी की खरीद न करने के नतीजे को भी संतुलित किया है. क्योंकि 5जी के लिए उन्होंने अमेरिकी कंपनियों की बजाय चीनी कंपनी वाहवे को मौका देना उचित माना है. कोयले के क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) लाना उनका ऐसा ही चौथा बड़ा काम है.

विदेशी संबंधों के मामले में नरेंद्र मोदी ने राजनय की अवधारणा ही बदल डाली है. आज दुनियाभर में उनकी पहचान एक सशक्त नेता के रूप में जानी जाती है. इसी तरह रक्षा क्षेत्र में भी उन्होंने कई नये विचारों का प्रवेश कराया है.

बिपिन रावत को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाना और रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के एक नये विभाग की स्थापना करना इसका एक ताजा उदाहरण है. रक्षा मंत्रालय से नौकरशाही की जकड़ हटाना कोई आसान काम नहीं था और इसके लिए उन्हें उससे लड़ना भी पड़ा. लेकिन, उन्होंने जो ठान लिया, तो उसे पूरा करके ही दम लिया.

इसी तरह, रेलवे बोर्ड के अस्तित्व को खत्म करना भी इसकी एक मिसाल है, ताकि राष्ट्र की इस सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था में निजी भागीदारी की जगह भी बनायी जा सके. पीयूष गोयल को भी वे इसलिए रेलवे में लाये थे, ताकि वे भारतीय रेल तथा उसके प्रशासन को एक नया मोड़ दे सकें.

इन सबके पहले, उन्होंने योजना आयोग की नेहरूवादी विचारधारा बदलकर उसकी जगह नीति आयोग का एक नया निकाय स्थापित किया था. ये सभी बड़ी पहलें हैं, जो नरेंद्र मोदी के राजनीतिक व्यक्तित्व को बड़ा आयाम प्रदान करती हैं. सरकार इच्छाशक्ति से चलती है और नरेंद्र मोदी में जो इच्छाशक्ति है, वह किसी अन्य नेता में नहीं दिखती है.

नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय जीवन में सरकार की भूमिका कम की है. ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के विश्व सम्मानित विचार का अनुसरण करते हुए उनकी कार्रवाइयों का नतीजा उनके ही शब्दों में इस तरह सामने आया, ‘पहले मेरे कैबिनेट नोट को मेरे पूरे कैबिनेट तक पहुंचने में छह महीने का वक्त लगता था. अब यह काम केवल 15 दिनों में ही हो जाता है.’ कर्मियों की वही संख्या अब पहले से कहीं ज्यादा नतीजा देती है.

‘पहले एक समझौता पत्र को अंतिम रूप देने के लिए विदेश यात्रा करनी पड़ती थी. मैंने इसे बंद करा दिया और यात्रा की बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से काम लेना शुरू कराया, ताकि सिर्फ दस्तखत करने को ही यात्रा करनी पड़े.’ बीते 30-40 वर्षों से भी ऊपर के अरसे से विचाराधीन पड़ी 12 लाख करोड़ रुपयों की परियोजनाओं को मोदी सरकार ने महज एक घंटे में ही हरी झंडी दे दी. इसे कहते हैं मजबूत इच्छाशक्ति.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, ‘मैं मानता हूं कि सरकार का काम होटलों को चलाना नहीं है. आपने देखा होगा कि हम क्रमशः विनिवेश करते जा रहे हैं.’ उनकी इस बात से इत्तेफाक रखा जा सकता है कि सरकार का काम होटल चलाने जैसा नहीं होना चाहिए. पर्यटन पर भी मोदी का बहुत जोर रहा है.

उनका कहना है कि किसी सैलानी को एक वर्ष में न्यूनतम पंद्रह पर्यटन स्थलों की यात्रा करनी चाहिए. सरदार पटेल की आलीशान मूर्ति तथा राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की स्थापना इसी दिशा में उठाये गये बड़े कदम थे. पिछले दो वर्षों में इन दोनों स्थलों पर इतने पर्यटक पहुंचे कि पर्यटकों की तादाद में 200 प्रतिशत का रिकॉर्ड भी पार हो गया.

प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इंडिया की भी बात करते रहे हैं. इसी के मद्देनजर देखें, तो सूचना प्रौद्योगिकी आधारित मल्टीमॉडल प्लेटफाॅर्म प्रगति- उनका एक अन्य प्रिय कार्यक्रम है, जिसके अंतर्गत वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये ही तमाम बैठकें आयोजित कर प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रमों की समीक्षा किया करते हैं. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कुल 29 ऐसी बैठकों की अध्यक्षता कर लाखों करोड़ रुपयों की 257 परियोजनाओं की प्रगति की रफ्तार तेज करायी है.

मोदी की असाधारण पहलकदमियां और शासन के इतर यदि सियासत की बात करें, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मोदी की राजनयिक शैली का ही कमाल है कि उन्होंने विश्व नेताओं को उनके प्रथम नाम से संबोधित कर पाने योग्य दोस्ताना संबंध कायम कर लिये हैं. हाल के अमेरिका-ईरान तनाव के संदर्भ में मोदी के मौन राजनयिक पहल की तारीफ कई विश्व नेताओं ने की है. आगे वर्ष 2024 के लिए उनका विजन भाजपा के वर्ष 2019 के चुनावी वादों को पूरा करना है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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