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खिलजी का कनॉट प्लेस!
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com ज्ञान चर्चा हो रही थी. एक ज्ञानी ने कहा- पब्लिक बहुत चालू और लालची टाइप होती है. कुछ रकम में उसे खरीदा जा सकता है. न जाने कब से यही सब हो रहा है. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा की हत्या कर दी थी, तो उसके खिलाफ दिल्ली में सारी […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
ज्ञान चर्चा हो रही थी. एक ज्ञानी ने कहा- पब्लिक बहुत चालू और लालची टाइप होती है. कुछ रकम में उसे खरीदा जा सकता है. न जाने कब से यही सब हो रहा है. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा की हत्या कर दी थी, तो उसके खिलाफ दिल्ली में सारी पब्लिक एक हो गयी थी. खिलजी ने चांदनी चौक में अशर्फियां बंटवाना शुरू किया, पब्लिक ने अशर्फियां अंदर कीं और खिलजी के समर्थन में अपना बयान बाहर किया.
ज्ञानी प्रचंड आत्मविश्वास से अपनी बात रख रहा था. प्रचंड आत्मविश्वास या तो परम मूर्खों में होता है या परम ज्ञानियों में. सामान्य टाइप के ज्ञानी लोग तो हिचक-हिचक कर ही अपनी बात रखते हैं.
खैर, इतिहास के प्रोफेसर ने सकुचाते हुए अर्ज किया- जी अलाउद्दीन खिलजी इस दुनिया से जनवरी, 1316 में ही कूच कर गये थे और इसके तीन सौ सालों से भी ज्यादा की अवधि के बाद शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली शिफ्ट किया था. चांदनी चौक तो उसके बाद बना, फिर खिलजी के वक्त चांदनी चौक कहां से आ गया?
इतिहासकार पर सब बरस पड़े- हमारे व्हाॅट्सअप में तो यही आया है. एक इतिहासकार के खिलाफ पांच लोग थे, बहुमत से फैसला हो गया कि खिलजी चांदनी चौक में अशर्फी बांटता था. यह इतिहास का लोकतंत्र है, राजनीतिशास्त्र है. जिसके पास बहुमत हो, वह अपना इतिहास स्वीकार करवा ले. लोकतंत्र से फैसले होते हैं और लोकतंत्र में बहुमत से फैसले. कल खिलजी कनाॅट प्लेस में अशर्फी बांटने लगे, तो कोई क्या कर लेगा?
इतिहास में फैसले बहुमत से हो जायें, तो बवाल मिट जाये. जिसका जो मन हो कर ले, कभी अकबर को महान दिखा दे, कभी महाराणा प्रताप को.
लेकिन, विधायकों और सांसदों में अधिकतर मंत्रीपद चाहते हैं, तो क्या हरेक को मंत्री पद दे दिया जाए? यह नयी तरकीब निकाली जा सकती है कि जो विधायक या सांसद मंत्री वगैरह न हो पाएं, वह अपनी पसंद के महान छांट लें और उनकी महानता के किस्से कोर्स की किताबों में दर्ज कर दिये जायें. उन महानों के नाम पर शहरों के पुल, सड़क वगैरह बना लिये जायें. लोकतंत्र में जनमत ही तय करेगा कि महान कौन है.
मैंने बजट पूर्व एक बैठक में वित्त मंत्रालय के अफसरों को कहा था कि नये-नये तरीके तलाशे जाने चाहिए रकम उगाही के लिए. जैसे रेलवे में तत्काल टिकट होता है, वैसे ही तत्काल महानता स्कीम शुरू की जानी चाहिए.
जैसे किसी स्टेशन के नाम किसी महान व्यक्ति के नाम पर रखने के लिए टेंडर निकाल दिये जायें. और फिर छुन्नूमल कचौड़ीवाले या गुन्नूमल दारुवाले टेंडर भर दें, जिसकी रकम ज्यादा होगी, उसके नाम पर स्टेशन का नाम रख दिया जायेगा. पूरा का पूरा शहर ही गुन्नूमल दारुनगर नाम से जाना जायेगा. सरकार के खजाने में अच्छी-खासी रकम आ जायेगी!
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