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ईरान संकट का भारत पर असर
सुशांत सरीन सुरक्षा मामलों के जानकार delhi@prabhatkhabar.in अमेरिका और ईरान के बीच पहले अच्छी दोस्ती थी. लेकिन तेल की सियासत ने इसको इस कदर दुश्मनी में बदला कि अब ये एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं. सत्तर के दशक से पहले के समय में ईरान और अमेरिका के बीच कई स्तरों पर गहरी […]
सुशांत सरीन
सुरक्षा मामलों के जानकार
delhi@prabhatkhabar.in
अमेरिका और ईरान के बीच पहले अच्छी दोस्ती थी. लेकिन तेल की सियासत ने इसको इस कदर दुश्मनी में बदला कि अब ये एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं. सत्तर के दशक से पहले के समय में ईरान और अमेरिका के बीच कई स्तरों पर गहरी दोस्ती थी. लेकिन, सत्तर के दशक के अंत में जब ईरान में इस्लामी गणतंत्र घोषित हुआ, तब से ईरान पर से अमेरिका का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा.
अब हालत यह है कि दोनों देश अक्सर एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं. अमेरिका ने ईरान के जिस सुप्रीम कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को हवाई हमले में मार दिया है, यह अमेरिका की दादागिरी तो है ही, साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचानेवाला कृत्य भी है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती तो पहले से ही छायी हुई है. वहीं अब सुलेमानी की हत्या से मध्य एशिया में अशांति के गहराने की भी आशंका है.
इस वक्त अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बहुत गहरा है और अपने चरम पर है. लेकिन, अब भी इस बात का अंदेशा इतना मजबूत नहीं है कि यह तनाव दोनों के बीच जंग में तब्दील हो जायेगा. ईरान की तरफ से इस हत्या का कोई जवाब भले दिया जा सकता है, जिसके जवाब में अमेरिका फिर कुछ करे, यह सिलसिला चल सकता है, लेकिन आर-पार की जंग के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे हैं. जवाबी हमलों के बीच खाड़ी के देशों में कोई बड़ी जंग छिड़ जाये, इसकी भी संभावना कम है.
हालांकि, ऐसी किसी संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि आगे कब क्या हो जाये. अगर मात्र जवाबी हमलों का सिलसिला चलता रहेगा, तब तो भारत पर इसका प्रभाव बहुत सीमित होगा. लेकिन, अगर सचमुच ईरान कोई बड़ा जवाबी हमला करता है, जिससे अमेरिका को बड़ा नुकसान हो, तब निश्चित रूप से अमेरिका उसके जवाब में बड़ा कदम उठा सकता है.
यह सब अभी भविष्य के गर्भ में है, क्योंकि युद्ध किसी भी मसले का हल नहीं होता और न ही कोई देश चाहेगा कि वह युद्ध की विभीषिका को झेले. ईरान कभी भी अमेरिका की बात नहीं मानता है और परमाणु कार्यक्रम को चलाता रहता है. इसलिए संकट यह भी है कि कहीं परमाणु हमले की तरफ सनक बढ़ी, तो भारत ही क्या पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी.
ईरान-अमेरिका तनाव से तेल के दाम बढ़ गये हैं, यह एक तात्कालिक प्रभाव तो है ही, अगर तनाव और गहराता है, तो इसके बड़े प्रभाव भी दिखने लगेंगे.
भारत के लिए यह ठीक नहीं होगा. इस वक्त भारत की अर्थव्यवस्था वैसे ही थोड़ी डांवाडोल है, ऐसे में तेल के दाम बढ़ने से उस पर बड़ा असर पड़ेगा. दूसरी बात, इस तनाव की वजह से वैश्विक बाजार में एक अनिश्चितता का माहौल है, जिसका असर जाहिर है भारत के बाजारों पर भी पड़ेगा ही. अनिश्चितता के माहौल में बाजार कोई रिस्क लेने से डर जाता है, जिससे निवेश और उत्पादन प्रभावित होते हैं.
ईरान का संकट सिर्फ ईरान का ही संकट नहीं है, बल्कि जिन देशों में उसके तेल का कारोबार होता है, वहां-वहां संकट पैदा होना लाजमी है. भारत फिलहाल ईरान से तेल नहीं खरीद रहा है, क्योंकि उस पर अमेरिकी प्रतिबंध है, फिर भी भारत के लिए ईरान मायने रखता है. खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय रहते हैं, जो युद्ध की हालत में प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते. यमन में हुए युद्ध का हाल हम देख चुके हैं कि किस तरह लोग अनिश्चितता के माहौल का शिकार हुए थे.
हालांकि, अगर ईरान और अमेरिका के बीच की लड़ाई उन्हीं तक सीमित रहती है, तो इससे भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि ईरान और इराक में बहुत ही कम भारतीय रहते हैं. मसला खाड़ी के देशों का है, जहां तक अगर लड़ाई का फैलाव हुआ, तो यह भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है. दुनियाभर के सभी युद्ध-विरोधी वैश्विक संगठनों को चाहिए कि ईरान-अमेरिका के बीच के तनाव को कम करने की पहल करें.
ईरान संकट को लेकर हालांकि बाकी सुन्नी बहुल देशों का साथ तो मिलने से रहा, लेकिन जंग की हालत में पश्चिमी एशिया चपेटे में आयेगा, तो बाकी देश भी अशांत हो जायेंगे और एक विश्वयुद्ध की हालत बन जायेगी.
ऐसे में, तेल की उपलब्धता का संकट पैदा होने से इनकार नहीं किया जा सकता. तेल की अनुपलब्धता वैश्विक अर्थव्यवस्था को और भी सुस्त करेगी, जिससे वैश्विक बाजार बड़ी मंदी की चपेट में आ जायेगा. समुद्री मार्गों से जो तेल से लदे हुए जहाज इस देश से उस देश जाते हैं, उन पर हमले बढ़ सकते हैं, जिसका नुकसान बहुत भयानक होगा. समुद्री मार्ग अवरुद्ध हो जायेंगे और व्यापार ठप्प पड़ जायेगा.
अर्थव्यवस्था की ही दृष्टि से नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी ईरान और अमेरिका का तनाव ठीक नहीं है, क्योंकि आज शक्ति प्रदर्शनों का दौर है. जंग में अक्सर देशों से अपने देशों की ओर लोगों का पलायन शुरू हो जाता है. यह अपने आप में एक बड़ा संकट है. क्योंकि दस-बीस या पचास हजार की संख्या में तो लोगों के आने का संकट बड़ा नहीं है, लेकिन अगर यह संख्या बढ़ी और लाखों में हुई, तो देशों के लिए इन्हें संभाल पाना बहुत मुश्किल होगी.भारत से एक बड़ी संख्या में लोग खाड़ी के देशों में रहते हैं और वहां काम करके भारत में अप
ने घरों को पैसा भेजते हैं.
यह रकम बहुत ज्यादा है, जो करीब पचास बिलियन डॉलर है, इस पर भी असर पड़ेगा. ऐसे बहुत से असरात हैं, जिन पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए और वैश्विक संगठनों से कहना चाहिए कि वह इस संकट को रोके. भारत का ईरान के साथ व्यापार 12-14 बिलियन डॉलर का है, लेकिन यह बाकी खाड़ी देशों के मुकाबले कम है, क्योंकि उनसे हमारा सौ बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. इसलिए ईरान का संकट खाड़ी देशों में बढ़ा, तो बड़ी मुश्किल होगी और इससे दुनिया की एक बड़ी आबादी प्रभावित होगी. दूसरी बात यह है कि ईरान ने भी कई दफा भारत का साथ नहीं दिया है, इसलिए भारत अभी चुप है.
कश्मीर मसले पर ईरान का रवैया भारत के पक्ष में नहीं रहा है. और भी कई चीजों में ईरान ने हस्तक्षेप की कोशिश की. यहां तक कि मारे गये कासिम सुलेमानी पर भी इल्जाम है कि भारत में इजरायली दूतावास के ऊपर एक दफा हमला किया था. हालांकि, अभी तक भारत बीच का रास्ता अपनाकर चलता रहा है. ईरान और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर हैं, इसलिए बहुत कुछ कह पाना मुश्किल भी है. फिलहाल तो इंतजार करना होगा कि ईरान क्या प्रतिक्रिया देता है.
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