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क्या ऐसा नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था के मामले में हम सर्वे, अनुमानों, रिसर्च, क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं? आंकड़ा सकारात्मक आता है, तो सरकारें खूब प्रचार करती हैं. अगर नकारात्मक हो, तो फिर चुप्पी साध ली जाती है. अब सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, साल 2026 तक […]

क्या ऐसा नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था के मामले में हम सर्वे, अनुमानों, रिसर्च, क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं? आंकड़ा सकारात्मक आता है, तो सरकारें खूब प्रचार करती हैं. अगर नकारात्मक हो, तो फिर चुप्पी साध ली जाती है.

अब सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, साल 2026 तक जर्मनी को पछाड़ कर भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जायेगा. भारत सरकार कह रही है हम 2024 में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हो जायेंगे, लेकिन वर्तमान कहीं से भी आशावादी नहीं दिख रहा है. जीडीपी गिर रही है. बाजार में मांग का घोर अभाव है.

मार्केट रिसर्च कंपनी इप्सस के अनुसार, 46 फीसदी भारतीय इस समय बेरोजगारी के बढ़ते सैलाब से चिंतित हैं. कई रेटिंग एजेंसीज भी भारत के विकास दर के अनुमान को कम करते जा रहे हैं. पता नहीं हमें वर्तमान की सुस्ती पर मातम मनाना चाहिए या भविष्य के सुनहरे अनुमान पर खुशी से झूमना चाहिए! कुछ समझ में नहीं आ रहा है!

जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड

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