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गांधी के देश का होने का गर्व

विजय कु. चौधरीअध्यक्ष, बिहार विधानसभाvkumarchy@gmail.com इस वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. गांधी एक ऐसे युगपुरुष थे, जिन्होंने सत्य एवं अहिंसा के अमोघ अस्त्र से हिंदुस्तान को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराया था. उन्होंने चरणबद्ध तरीके से भारतीयों के मन से निराशा एवं भय को समाप्त कर […]

विजय कु. चौधरी
अध्यक्ष, बिहार विधानसभा
vkumarchy@gmail.com

इस वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. गांधी एक ऐसे युगपुरुष थे, जिन्होंने सत्य एवं अहिंसा के अमोघ अस्त्र से हिंदुस्तान को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराया था. उन्होंने चरणबद्ध तरीके से भारतीयों के मन से निराशा एवं भय को समाप्त कर आत्मगौरव का जो पाठ पढ़ाया, उससे उद्वेलित भारतीय जनमानस ने गुलामी की सारी बेड़ियां तोड़ दीं.
आज गांधी पूरे विश्व में स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों के रक्षार्थ संघर्ष के लिए आदर्श पुरुष के रूप में देखे जाते हैं. इस बात का ताजा एहसास मुझे युगांडा की राजधानी कंपाला में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के 64वें सम्मेलन में भाग लेने के क्रम में हुआ.
बीसवीं शताब्दी में जब साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद अपने चरम पर था, गांधी अपने वकालत पेशे के क्रम में दक्षिण अफ्रीका गये एवं वहां सरकार की अमानवीय रंगभेद नीति के विरुद्ध आवाज उठाने हेतु इनका विद्रोही स्वभाव मजबूर हो गया.
विश्व भर के चिंतकों एवं राजनीतिक दार्शनिकों के सिद्धांतों एवं विचारों के अध्ययन के पश्चात तत्कालीन वैश्विक परिदृश्य से उनका नजदीकी रिश्ता बना और सभी तरह की अवधारणाओं के सार को समेटकर उन्होंने भारतीय परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सत्य और अहिंसा का अमोघ अस्त्र इजाद किया, जिसने तत्समय दुनिया की सबसे शक्तिशाली अंग्रेजी हुकूमत की भारत में नींव हिला दी.
तत्कालीन चिंतकों, जिनके विचार से महात्मा गांधी अधिक प्रभावित हुए, उसमें अमेरिकन चिंतक थोरो, अंग्रेज विचारक रस्किन और रूसी दार्शनिक-लेखक टॉल्स्टाॅय के नाम प्रमुख हैं. थोरो ने ही सर्वप्रथम नागरिक अवज्ञा के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए कहा था कि शासक लोकहित की उपेक्षा कर जनता का शोषण करे, तो हुकूमत के आदेशों को नहीं मानना नागरिकों का कर्तव्य है.
रस्किन ने अपने ‘अनटू दिस लास्ट’ नामक पुस्तक में श्रम एवं श्रमिकों की महत्ता का गुणगान करते हुए समाज के अंतिम पायदान पर रहनेवाले निर्धन एवं गरीब लोगों की कठिनाइयों एवं परेशानियों को बखूबी उभारा था, जिससे प्रभावित होकर गांधी ने ‘सर्वोदय’ की अवधारणा आगे बढ़ायी. टॉल्सटॉय के प्रेम और अहिंसा की असीमित ताकत पर जोर देने की अवधारणा ने गांधी को उनके करीब ला दिया, जो उनके बीच हुए लंबे पत्राचार से चित्रित होता है.
दूसरी तरफ, गांधी से प्रभावित नेताओं की भी विश्व में कमी नहीं है. अमेरिका में अश्वेतों के अधिकार की लड़ाई लड़नेवाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर, दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता नेल्सन मंडेला, वियतनाम के हो ची मिन्ह, पोलैंड के लेक वलेसा, म्यांमार की मानवाधिकार कार्यकर्ता आंग सान सू की, तिब्बत की आजादी के लिए संघर्षरत धार्मिक नेता दलाई लामा आदि प्रमुख हैं.
पिछले सितंबर महीने में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सम्मेलन में भाग लेने के क्रम में युगांडा के साथ मुझे स्वीडन, रूस और मिश्र जाने का अवसर प्राप्त हुआ. पहले मैं स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम पहुंचा, जो दुनिया के स्वच्छ एवं सभ्य शहर के रूप में अग्रणी जाना जाता है.
यह शहर नोबेल पुरस्कारों के कारण भी विख्यात है एवं इससे जुड़ी दो मशहूर इमारतें हैं. पहला ‘सिटी हॉल’ है, जिसमें नोबेल पुरस्कार वितरण का समारोह आयोजित होता है और दूसरा नोबेल प्राइज म्यूजियम है, जिसमें प्रति वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले हस्तियों का क्रमबद्ध संकलन एवं उनसे जुड़ी जानकारियां हैं.
बीते 14 सितंबर को सौभाग्यवश म्यूजियम के मुख्य हॉल में ही मार्टिन लूथर किंग जूनियर की जीवनी से संबंधित एक फोटो प्रदर्शनी आयोजित थी. प्रवेश करते ही मार्टिन के अध्ययन कक्ष का एक बड़ा चित्र लगा था, जिसमें उन्होंने कुर्सी के पीछे की दीवार पर महात्मा गांधी की एक बड़ी तस्वीर टांग रखी थी. इस तस्वीर को देखते ही अचानक मुझे भीतर से भारतीयता का गौरव-बोध हुआ और मैंने साथ चल रहे स्वीडन के संसद के अधिकारी को कहा, ‘देखो मैं इसी महात्मा के देश से आया हूं’
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रूस के साथ भारत के काफी पुराने संबंध हैं. राष्ट्रीय संसद ड्यूमा में भारत सोवियत संसदीय मैत्री संघ के अध्यक्ष से बातचीत में लगा कि रूस के लोग महात्मा गांधी और लियो टॉलस्टॉय के विचारों की समानता से दोनो देशों के संबंध को आधार मानते हैं. यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि मॉस्को से 200 किमी दूर टॉलस्टॉय के जन्म स्थान पर ‘टॉलस्टॉय कल्चरल सेंटर’ द्वारा ‘गांधी-टॉलस्टॉय फोटो प्रदर्शनी’ का पिछले दो अक्तूबर को आयोजन हुआ था.
मिस्र अफ्रीका महादेश के उत्तर-पूर्व में स्थित है. मिस्र के स्वतंत्रता संग्राम के नायक साद जगलोल गांधी के समकालीन थे एवं उनसे प्रभावित थे. मिस्र में साद जगलोल के साथ महात्मा गांधी को भी स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों के संरक्षक नेताओं के रूप में देखा जाता है.
अफ्रीका महादेश के मध्य में युगांडा एक छोटा खूबसूरत देश है. नील नदी के उद्गम बिंदु जिंजा वहां का खास दर्शनीय स्थल है. उल्लेखनीय है कि नील विश्व की सबसे लंबी नदी है, जो लगभग 6,650 किलोमीटर लंबी है और यूगांडा से होकर सूडान एवं मिस्र होते हुए भूमध्यसागर में मिल जाती है.
लेक विक्टोरिया के माध्यम से नील नदी का उद्गम स्थल पर पहुंचने का अपना रोमांच है, वहीं इसके किनारे महात्मा गांधी की स्थापित मूर्ति किसी भारतीय को रोमांचित और अहलादित कर देती है. गांधी की इच्छा के मुताबिक, उनकी अस्थियां यहां प्रवाहित की गयी थीं. किसी स्थानीय माध्यमिक विद्यालय के छात्रों को एक शिक्षक उस स्थल पर गांधी के बारे में बता रहे थे. इस दृश्य को देखकर गांधी के देश के होने का फख्र हृदय को स्पंदित करने लगा.
वापसी यात्रा में सिर्फ एक ही एहसास मेरे मन को बार-बार झकझोर रहा था कि दुनिया के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर की तरफ मैं जहां भी गया, वहां गांधी तो पहले से ही मौजूद थे. इन सभी स्थलों पर कोई भी भारतीय गांधी के माध्यम से अपने को जुड़ा हुआ महसूस करता है. दूसरे मुल्क के लोगों में भी गांधी के प्रति आदर और सम्मान देखकर मुझे लगा कि गांधी एक ऐसा नाम है, जो आपको विश्व के किसी भी कोने में भारतीय होने की गर्व की अनुभूति करा देता है. मुझे लगा कि भारत की राष्ट्रीयता को जीवंत रखने के लिए हमें अपने अंदर भी गांधी को जिंदा रखना होगा.

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