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स्वच्छता और स्वास्थ्य
ग्रामीण भारत को खुले में शौच की विवशता से मुक्ति मिल गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह घोषणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती के पावन अवसर पर एक उत्कृष्ट श्रद्धांजलि है. विगत पांच वर्षों से अभूतपूर्व गति से देशभर में शौचालयों का निर्माण हो रहा है. विश्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार, […]
ग्रामीण भारत को खुले में शौच की विवशता से मुक्ति मिल गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह घोषणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती के पावन अवसर पर एक उत्कृष्ट श्रद्धांजलि है. विगत पांच वर्षों से अभूतपूर्व गति से देशभर में शौचालयों का निर्माण हो रहा है. विश्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार, 90.4 प्रतिशत गांवों तथा 93.1 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को शौचालय की सुविधा प्राप्त हो चुकी है.
हालांकि, लगभग 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण बड़ी उपलब्धि है, लेकिन संपूर्ण स्वच्छता के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है. अब सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस व द्रव अवशिष्टों के समुचित प्रबंधन पर ध्यान दे रही है. पेयजल पहुंचाने और जल संरक्षण को भी प्राथमिकता दी जा रही है.
हमारे देश में बीमारी और मौतों के सात प्रमुख कारणों में तीन- कुपोषण, खान-पान से जुड़े जोखिम तथा साफ-सफाई की कमी- सीधे तौर पर सुविधाओं की कमी तथा आम व्यवहार से संबंधित हैं. विभिन्न संक्रामक रोग इन्हीं वजहों से होते हैं. शौचालयों की व्यवस्था ने बीते पांच वर्षों में इन रोगों पर अंकुश लगाने में बड़ा योगदान किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार, स्वच्छ भारत अभियान से डायरिया और प्रोटीन की कमी से जनित कुपोषण से होनेवाली तीन लाख मौतों को टाला जा सका है.
इस अभियान के प्रारंभ से पहले देश में डायरिया के लगभग 20 करोड़ मामले हर वर्ष सामने आते थे. वर्ष 2015 में भारत में प्रति दिन औसतन 320 बच्चों की मृत्यु हुई थी. ऐसे आंकड़ों में निरंतर कमी का रुझान है. हमारा देश दूषित खान-पान से होनेवाले संक्रामक रोगों तथा कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित है.
इसलिए स्वच्छ भारत अभियान को केवल शौचालयों के विस्तार के हवाले से देखना उचित नहीं होगा. देश की बड़ी जनसंख्या, विशेष रूप से निर्धन, निम्न आयवर्ग और ग्रामीण समुदायों, के स्वास्थ्य पर इस पहल का जो सकारात्मक प्रभाव हो रहा है, उससे संपूर्ण राष्ट्र की समृद्धि और विकास का दीर्घकालिक आधार तैयार हो रहा है.
शासन-प्रशासन से इतर बड़ी संख्या में पंचायतों और कार्यकर्ता समूहों ने भी इस योजना को सफल बनाने के लिए जिस परिश्रम का परिचय दिया है, उसका भी विस्तार भविष्य की एक शुभ संभावना है. संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को पाने की दिशा में स्वच्छता का संकल्प और उसे साकार करने की भारतीय मुहिम एक आदर्श उदाहरण के रूप में वैश्विक स्तर पर स्थापित हुई है. यह योजना निर्धनता उन्मूलन की पहली सीढ़ी भी है.
इसे अन्य सरकारी कल्याण योजनाओं के साथ जोड़कर देखें, तो हमें परिवर्तन की बड़ी लहर दिखती है. इससे यह विश्वास भी सशक्त हुआ है कि हर गांव-घर में पेयजल पहुंचाने, अवशिष्टों निवारण करने, स्वास्थ्य सेवा को हर व्यक्ति के लिए सुलभ बनाने तथा जल संरक्षण जैसे संकल्पों को भी पूरा किया जा सकता है. इसके लिए सरकारी तंत्र के साथ नागरिकों को भी व्यक्तिगत और सामुहिक स्तर पर सक्रियता को बनाये रखना जरूरी है.
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