28.6 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आयेंगे देसी खेलों के अच्छे दिन!

।। अभिषेक दुबे ।। वरिष्ठ खेल पत्रकार कॉमनवेल्थ गेम्स (ग्लासगो) और प्रो कबड्डी लीग (मुंबई) से भारतीय खेलों के लिए निकले कुछ संदेश साफ हैं. कबड्डी और कुश्ती को लेकर जुनून से आगे जाकर संभावनाएं अनंत हैं, जरूरत है उन पर दावं लगाने की.बोकारो की विंध्यवासिनी अपने पिता के श्रद्धकर्म में इसलिए नहीं जा सकीं, […]

।। अभिषेक दुबे ।।

वरिष्ठ खेल पत्रकार

कॉमनवेल्थ गेम्स (ग्लासगो) और प्रो कबड्डी लीग (मुंबई) से भारतीय खेलों के लिए निकले कुछ संदेश साफ हैं. कबड्डी और कुश्ती को लेकर जुनून से आगे जाकर संभावनाएं अनंत हैं, जरूरत है उन पर दावं लगाने की.बोकारो की विंध्यवासिनी अपने पिता के श्रद्धकर्म में इसलिए नहीं जा सकीं, क्योंकि नेशनल कैंप में भाग ले रही थीं. 24 साल की इस अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी का संघर्ष के बीच देखा गया सपना तब पूरा हुआ, जब भारतीय महिला कबड्डी टीम ने पटना में 4 मार्च, 2012 को वल्र्ड कप जीता.

झारखंड के मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री से लेकर बोकारो के जिला कमिश्नर तक ने वादों की झड़ी लगा दी, लेकिन दो साल बाद तक जब इन वादों को अमलीजामा नहीं पहनाया गया, तो विंध्यवासिनी को यहां तक कहना पड़ा कि वह अपने मेडल लौटा देंगी. विंध्यवासिनी ऐसे विरले परिवार से आती हैं, जिसमें सभी पांच बहनों को आर्थिक तंगी के बावजूद खिलाड़ी बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया. बड़ी दो बहनें डॉली और अर्चना बास्केटबॉल और कबड्डी खिलाड़ी रहीं. छोटी दो बहनें अमृता और हेमलता राज्य स्तर की कबड्डी और बैडमिंटन खिलाड़ी.

बिहार व झारखंड समेत देश के ग्रामीण हिस्से में कबड्डी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि दैनिक जीवन का अहम हिस्सा है, लेकिन रोजगार के मौके और कॉरपोरेट तथा सरकारी प्रोत्साहन की कमी की वजह से यह खेल दम तोड़ रहा था. इस बीच प्रो कबड्डी लीग इनके लिए ऑक्सीजन बन कर आया है.

मुंबई का एनएससीआइ इनडोर स्टेडियम में प्रो कबड्डी लीग की शुरुआत के वक्त बॉलीवुड के कई सितारे आगे की सीटों पर मौजूद थे. यहां की सीधी तस्वीरें देश के प्रमुख चैनल के प्राइम टाइम का हिस्सा बन रही थीं. इनडोर स्टेडियम का हर कोना भरा था और बाहर लंबी कतार में लोग इंतजार कर रहे थे.

मुंबई ने अभिषेक बच्‍चा न की टीम पिंक पैंथर्स को तो हरा दिया, पर मायानगरी ने इस मशहूर देशी खेल को ग्लैमर का जो पुट दिया, उसका असर आनेवाले दिनों में देश के हर कोने में देखा जा सकेगा. पुरुषों से हुई प्रो कबड्डी लीग की शुरुआत महिलाओं तक जल्द पहुंच सकती है और वह दिन दूर नहीं जब विंध्यवासिनी की तरह हजारों महिलाओं को सरकार की बेरुखी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा. यही नहीं, इस खेल से नाता रखनेवाले युवा और युवतियों को जुनून के साथ आर्थिक तंगी से लड़ने के लिए कैरियर का एक विकल्प भी मिलेगा.

कभी दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित बापरौला से लेकर सोनीपत का नाहरी गांव भारत के उन कई पॉकेट्स में से एक था, जहां कुश्ती को लेकर अद्भुत जुनून था. पहलवानों को देखने के लिए न सिर्फ आसपास के गांव जुट जाते, बल्कि उन्हें लोग दिल खोल कर इनामी राशि भी देते.

ग्लैमर की चकाचौंध के बीच कुश्ती के अखाड़े में भीड़ कम होने लगी और इससे जुड़ी युवा पीढ़ी रास्ता भटकने लगी. तभी दिल्ली के बवाना गांव से कभी महाबली के तौर पर अपनी पहचान बनानेवाले सतपाल ने प्रतिभाओं को खोज कर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग देनी शुरू की. यहां से निकले सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिंपिक्स 2008 में कांस्य पदक जीता और लंदन ओलिंपिक्स 2012 में सिल्वर.

ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में सुशील ने जिस कदर पाकिस्तानी पहलवान को चंद सेकेंड में हरा कर गोल्ड जीता, इससे साफ है कि उनकी निगाहें 2016 के रियो ओलिंपिक्स पर हैं. योगेश्वर दत्त 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के हीरो रहे और लंदन ओलिंपिक्स में कांस्य जीता.

अमित कुमार ने वल्र्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में दुनिया को अपनी हुनर का लोहा मनवाया और ग्लासगो में गोल्ड जीतने में कामयाब रहे. कुश्ती को लेकर महाराष्ट्र से लेकर पश्चिमी यूपी और झारखंड से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों के कई हिस्से में भी दिल्ली-हरियाणा की तरह ही जुनून है. अगर इन जगहों पर पहलवानों को सतपाल जैसा मार्गदर्शक और छात्रसाल स्टेडियम जैसी सुविधा मिले, तो भारत इसमें सुपर पावर बनने का माद्दा रखता है.

ग्लासगो कॉमनवेल्थ और मुंबई प्रो कबड्डी से भारतीय खेलों के लिए निकले कुछ संदेश साफ हैं. पहला, कुश्ती और कबड्डी जैसे खेल भारत के ग्रामीण हिस्से से लेकर शहरों में लोगों की रगों में बसते हैं. रोल मॉडल और पैसा आने पर नौजवान इन खेलों की ओर आकर्षित होंगे और इन्हें खेल प्रेमियों का जोरदार समर्थन भी मिलेगा.

दूसरा, भारत ने हाल में शूटिंग और रेसलिंग में धमाकेदार प्रदर्शन किया है. पर शूटिंग के विपरीत रेसलिंग और कबड्डी एक एक्शन गेम है, जिसमें टीवी के जरिये विज्ञापन की अधिक संभावनाएं हैं. तीसरा, भारत इन दोनों ही खेलों में विश्व शक्ति बनने का माद्दा रखता है.

चौथा, अगर पश्चिमी देश डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और मोटर रेसिंग जैसे अपने जुनून को विश्व स्तर पर परोस सकते हैं, तो भारत कुश्ती और कबड्डी जैसी अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के साथ ऐसा क्यों नहीं कर सकता? पांचवां, हार-जीत से दूर, यह नौजवानों को स्वस्थ्य रहने और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने के लिए प्रेरित करता है. कबड्डी और कुश्ती को लेकर जुनून से आगे जाकर संभावनाएं अनंत हैं, जरूरत है उन पर दावं लगाने की.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें