भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है. जितनी विविधता इसके भूगोल में है, उससे कई गुना ज्यादा विविधता इसकी संस्कृति में है. लेकिन, लोगों की आपसी निकटता ने एक-दूसरे को प्रभावित किया है. यही कारण है कि भारत में रहने वाले हर धर्म-संप्रदाय के लोग एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते. हिंदू धर्म एक सनातन धर्म है. वैदिक युग से लेकर वर्तमान समय तक वैदिक धर्म, जिसे आज हिंदू धर्म कहा जाता है, के जितने स्वरूप बदले, उतना विश्व के किसी धर्म ने नहीं बदले. यही हिंदू धर्म की विशिष्टता या शक्ति है.
हाल ही में, हिंदू धर्म के प्रतिष्ठित धर्मगुरु शंकरचार्य जी ने हिंदू धर्म को मानने वालों को साईं बाबा को नहीं पूजने का बयान दिया है. इससे न केवल भारतीय सद्भावना को ठेस लगी है, बल्कि हिंदू धर्म की विशेषता को भी ठेस लगी है. हिंदू धर्म मात्र एक संप्रदाय नहीं है, यह विश्व के सभी संप्रदायों में पायी जाने वाली विशेषताओं का सामूहिक रूप है.
भारत की एक अरब 21 करोड़ आबादी में 80 प्रतिशत हिंदू धर्म से संबंधित है. भारत में जो पूजनीय है, उसे पूजा जाता है और जो श्रद्धेय है उसके प्रति श्रद्धा रखी जाती है. यह भारत की विशेषता है. धर्म या श्रद्धा व्यक्तिगत मामला है. हमारे धर्म के ठेकेदारों ने, चाहे वे किसी भी मजहब के हों, सद्भावना को जोड़ने की जगह तोड़ने का ही काम किया है. शायद शंकराचार्य जी को पता होगा कि ऋग्वेद से लेकर उपनिषद्, पुराणों, स्मृति ग्रंथों, उपवेद इत्यादि में स्वरूपगत भिन्नता है. हिंदू धर्म देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहा है. शंकराचार्य जी के इस बयान से हिंदू धर्म को फायदा या नुकसान तो नहीं होने वाला है, लेकिन भारतीय सद्भावना को जरूर नुकसान हुआ है.
अफसाना खानम, ई-मेल से