Advertisement
महिलाओं का सम्मान करना सीखें
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in पिछले दिनों महिलाओं के अपमान की कई घटनाएं सामने आयी हैं. ये घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि देश में यह धारणा अब भी मजबूत है कि स्त्री का दर्जा दोयम है और पुरुष से नीचे है. आश्चर्य तब होता है, जब जाने-माने लोग […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
पिछले दिनों महिलाओं के अपमान की कई घटनाएं सामने आयी हैं. ये घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि देश में यह धारणा अब भी मजबूत है कि स्त्री का दर्जा दोयम है और पुरुष से नीचे है. आश्चर्य तब होता है, जब जाने-माने लोग भी सार्वजनिक रूप से ऐसे बयान देते नजर आते हैं. यह अवधारणा अचानक प्रकट नहीं हुई है. दरअसल, हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है, जिसमें बचपन से ही यह बात बच्चों के मन में स्थापित कर दी जाती है कि लड़का, लड़की से बेहतर है.
इन बातों के मूल में यह धारणा है कि परिवार और समाज का मुखिया पुरुष है और महिलाओं को उसकी व्यवस्थाओं का पालन करना है. यह सही है कि परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है, लेकिन अब भी ऐसे परिवारों की संख्या कम है, जिनमें बेटे और बेटी के बीच भेदभाव न किया जाता हो. बाद में ये बातें सार्वजनिक जीवन में प्रकट होने लगती हैं.
हाल में भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पंड्या और केएल राहुल को एक शो के दौरान महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण टीम से जांच लंबित रहने तक निलंबित कर दिया गया है.
टॉक शो कॉफी विद करण में हार्दिक पंड्या ने कई महिलाओं के साथ संबंध होने का दावा किया और यह भी बताया कि वह इस मामले में अपने परिजनों के साथ भी खुल कर बातें करते हैं. विवादित बयानों के बाद भारतीय क्रिकेट प्रशासकों की कमेटी ने दोनों खिलाड़ियों को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज से बाहर कर दिया है, लेकिन उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई हैं.
अब लोगों के गुस्से को देखते हुए विज्ञापन कंपनियों ने भी उनसे अपने हाथ खींचने शुरू कर दिये हैं. जाने-माने स्पिनर हरभजन सिंह ने हार्दिक पंड्या और केएल राहुल की कड़ी आलोचना की है और कहा कि उन्होंने क्रिकेटरों की साख को दांव पर लगा दिया है. कप्तान विराट कोहली ने भी उनकी टिप्पणियों को अनुचित करार दिया है.
हरभजन सिंह ने कहा कि वह तो अपने दोस्तों के साथ भी इस तरह की बातें नहीं करते और वे सार्वजनिक तौर पर टेलीविजन पर ऐसी बातें कर रहे हैं! दोनों खिलाड़ियों ने क्रिकेट बोर्ड, प्रशासनिक समिति और सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है, लेकिन लोगों का गुस्सा थम नहीं रहा है. यह घटना केवल हार्दिक पांड्या अथवा केएल राहुल तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के एक वर्ग की मानसिकता को दर्शाती है, जिसमें महिलाएं भोग और विलास की वस्तुएं हैं.
दूसरा मामला, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर दिया बयान है. जयपुर में हुई राहुल गांधी ने रफेल सौदे को लेकर संसद में हुई बहस पर पीएम मोदी को घेरा था. राहुल ने कहा, ’56 इंच की छाती वाला प्रधानमंत्री लोकसभा में एक मिनट के लिए नहीं आ पाया. ढाई घंटे निर्मला सीतारमण जी ने भाषण दिया. हमने भाषण की धज्जियां उड़ायीं.
वह जवाब नहीं दे पायीं. लोकसभा में रफेल पर बहस हो रही थी, मोदी पंजाब भाग गये. चौकीदार रफेल पर एक मिनट भी नहीं बोल पाये… चौकीदार लोकसभा में पैर नहीं रख पाया और एक महिला से कहता है कि निर्मला सीतारमण जी आप मेरी रक्षा कीजिए, मैं अपनी रक्षा नहीं कर पाऊंगा. आपने देखा कि ढाई घंटे महिला रक्षा नहीं कर पायीं.’ राहुल गांधी के इस बयान की पीएम नरेंद्र मोदी ने आलोचना की.
मोदी ने कहा कि अब विपक्ष एक महिला का अपमान करने पर उतारू हो गया है. यह देश की महिलाओं का अपमान है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस बयान को लेकर राहुल गांधी से जवाब तलब किया है. राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि राहुल गांधी इस बयान से क्या साबित करना चाहते हैं? क्या वह यह सोचते हैं कि महिलाएं कमजोर हैं? फरवरी, 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोल रहे थे.
इस दौरान कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी जोर-जोर से हंस रहीं थीं. इस पर सभापति वेंकैया नायडू ने आपत्ति जतायी और रेणुका चौधरी से चुप रहने के लिए कहा. इस पर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने कहा था, ‘सभापति जी, मेरी आपसे विनती है कि रेणुका जी को कुछ मत कहिए. रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का सौभाग्य आज मिल पाया है.’
सार्वजनिक रूप से दिये ऐसे अनेक बयान है, जहां महिलाओं को कमतर बताने की कोशिश हुई है. राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान शरद यादव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सेहत को लेकर बयान दिया था और जब इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई, तो उन्होंने खेद प्रकट किया. शरद यादव ने कहा था, ‘वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गयी हैं. बहुत मोटी हो गयी है, पहले पतली थी. हमारे मध्य प्रदेश की बेटी है.’
1996 में जब पहली बार महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश करने की कोशिश की गयी थी, तब शरद यादव ने विधेयक के प्रावधानों पर आपत्ति जतायी थी और कहा था कि इस विधेयक से सिर्फ ‘परकटी महिलाओं’ को ही फायदा पहुंचेगा. महिलाओं पर दिये गये ऐसे बयानों की सूची अंतहीन है. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह का 2014 का एक बयान भी खबरों में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘क्या रेप में फांसी दी जायेगी? अरे लड़के हैं.
गलती हो जाती है.’ मानुषी छिल्लर के मिस वर्ल्ड बनने पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने उन्हें चिल्लर कह कर उनका मजाक उड़ाया था. ट्वीट कर उन्होंने कहा था, ‘हमारी मुद्रा का विमुद्रीकरण करना कितनी बड़ी भूल थी. भाजपा को इस बात का एहसास होना चाहिए कि भारतीय मुद्रा का विश्व भर में वर्चस्व है, देखिए हमारी चिल्लर भी मिस वर्ल्ड बन गयी है.’
जबकि देखा जाए, तो भारतीय महिलाएं जिंदगी के सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं. इंदिरा गांधी जैसी सशक्त महिला देश की प्रधानमंत्री रही हैं.भारत का संविधान भी सभी महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के सामान अधिकार की गारंटी देता है, लेकिन इन सब बातों के बावजूद देश में महिलाओं की स्थिति अब भी मजबूत नहीं है. उन्हें अक्सर निशाना बनाया जाता है. कानून के बावजूद कार्यस्थलों पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है. कुछ समय पहले राज्यों के लिए लिंग भेद सूचकांक तैयार किया है और इस कसौटी पर सभी राज्यों की कसा गया.
इसके नतीजों के अनुसार गोवा महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्य है, जबकि देश की राजधानी दिल्ली महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से खराब राज्यों में से एक है. हिंदी भाषी राज्यों का तो बेहद रिकॉर्ड खराब है. पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की स्थिति में धीरे-धीरे ही सही, मगर सुधार आया है, लेकिन जब तक महिलाओं के प्रति समाज में सम्मान की चेतना पैदा नहीं होगी, तब तक ये सारे प्रयास नाकाफी हैं.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement