अंतरराष्ट्रीय राजनीति, रणनीति और वाणिज्य के संदर्भ में मध्य एशिया के देशों- कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान- का बड़ा महत्व है. इन देशों के साथ संबंधों के विस्तार की असीम संभावनाएं हैं. प्राचीन समय से संपर्क रहने के बाद भी इन संभावनाओं को साकार नहीं किया जा सका है.
‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ की भारतीय नीति को वास्तविकता का रूप देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में इन देशों की यात्रा की थी. पिछले साल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था. वे फिर भारत-मध्य एशिया संवाद के सिलसिले में मध्य एशिया में है.
इस संवाद बैठक में अफगानिस्तान के शामिल होने से इसका महत्व बढ़ गया है, क्योंकि इसे भी मध्य एशिया का हिस्सा कहा जाता है तथा पांच मध्य एशियाई देशों के पास समुद्री मार्ग नहीं होने के कारण बहुपक्षीय वाणिज्य और सामरिक पहलों के लिए अन्य देशों के साथ अफगानिस्तान का सहयोग अनिवार्य है. अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व स्थापित करने में मध्य एशिया की भी विशेष भूमिका हो सकती है.
वर्ष 2012 में भारत ने ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति के तहत शंघाई सहयोग संगठन, यूरोप-एशिया आर्थिक समूह जैसे मंचों के माध्यम से मध्य एशिया से संबंध सुधारने की पहल की थी तथा इस प्रयास में अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारे को भी सक्रिय किया गया था. चीन भी कई वर्षों से बेल्ट-रोड परियोजना के अंतर्गत इन देशों के साथ सहयोग को प्राथमिकता दे रहा है. वह इस क्षेत्र में दस बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश कर चुका है तथा पहुंच बढ़ाने के लिए बहुपक्षीय मंचों का भी उपयोग कर रहा है.
व्यापारिक और सामरिक दृष्टि से भारत को इनके साथ तालमेल बनाने की आवश्यकता तो है ही, इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों को निकालने में औद्योगिक और तकनीकी सहायता देने का अवसर भी मिल सकता है. ईरान के साथ अमेरिका के तथा रूस के साथ अमेरिका और यूरोप के तनावपूर्ण संबंधों तथा आर्थिक प्रतिबंधों ने भारत के समक्ष नयी चुनौतियां पैदा कर दी हैं.
इन कारण चाबहार बंदरगाह और यातायात गलियारे के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों के साथ मध्य एशिया में उपस्थिति को बढ़ा कर भारत पश्चिमी देशों के सामने अपने हितों और दावों को ठोस ढंग से प्रस्तुत कर सकता है. मध्य एशिया के पांच देश भारतीय उद्योग और उत्पादन के लिए अपने अतिरिक्त मध्य-पूर्व तथा एशिया के अन्य भागों की राह सुगम कर सकते हैं.
एक ओर चीन के साथ हमारी प्रतिद्वंद्विता है और पश्चिमी कूटनीति का सामना है, तो दूसरी ओर चीन, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों तथा रूस के साथ विभिन्न संगठनों और द्विपक्षीय स्तर पर सहयोग भी हो रहा है. मध्य एशियाई देशों के साथ अरब, ईरान और अफगानिस्तान के साथ भी हमारे संबंध अच्छे हैं तथा उनका ऐतिहासिक आधार भी है. इस पृष्ठभूमि में भारत-मध्य एशिया संवाद न केवल आपस में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नयी संभावनाओं के द्वारा खोल सकता है.