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हाल के दिनों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को अनेक चिंताजनक स्थितियों से गुजरना पड़ा है. अनिश्चितता और उथल-पुथल का यह दौर अभी थमा नहीं है, लेकिन भविष्य को लेकर आश्वस्त करनेवाले कुछ महत्वपूर्ण संकेत भी हैं. सरकार ने सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के पहले आकलन में बताया है कि 2018-19 […]

हाल के दिनों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को अनेक चिंताजनक स्थितियों से गुजरना पड़ा है. अनिश्चितता और उथल-पुथल का यह दौर अभी थमा नहीं है, लेकिन भविष्य को लेकर आश्वस्त करनेवाले कुछ महत्वपूर्ण संकेत भी हैं. सरकार ने सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के पहले आकलन में बताया है कि 2018-19 में वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की दर 11.1 फीसदी रह सकती है.
यह दर पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा है. यह बढ़त कम मुद्रास्फीति, आमदनी बढ़ने तथा विकास दर से जुड़ी उम्मीदों के कारण है. हालांकि, यह आंकड़ा सकारात्मक है और असली दर कुछ कम होने के बावजूद इससे अर्थव्यवस्था में संतुलन का पता चलता है, लेकिन वृद्धि में राज्यवार विषमता चिंताजनक है. पिछले वित्त वर्ष में अनेक राज्यों में आय राष्ट्रीय औसत से अधिक बढ़ी थी, तो कुछ राज्यों में यह आंकड़ा औसत से कम रहा था.
इस संदर्भ में लोगों के बीच बढ़ती आर्थिक विषमता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक, मौजूदा वित्त वर्ष में हमारी जीडीपी की वृद्धि दर 7.3 फीसदी रह सकती है तथा आगामी दो सालों में यह 7.5 फीसदी होगी. इस लिहाज से भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. चीन के दर में कमी तथा विकसित देशों की मुश्किलों के मद्देनजर यह आकलन सरकार की वित्तीय और वाणिज्यिक नीतियों तथा सुधार के प्रयासों पर महत्वपूर्ण मुहर है.
किसी भी अर्थव्यवस्था में उपभोग एक विशिष्ट कारक होता है तथा इसके कारण उत्पादन और बाजार को गति मिलती है. विश्व आर्थिक फोरम के अध्ययन में बताया गया है कि तेज विकास दर के कारण भारत 2030 तक अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जायेगा. अभी भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसके जीडीपी का 60 फीसदी हिस्सा घरेलू निजी उपभोग का है. उपभोग के ये आंकड़े बढ़ती प्रति व्यक्ति आमदनी तथा तेज विकास दर के अनुकूल हैं. आर्थिक वृद्धि दर की गति बरकरार रहने से मध्य वर्ग का विस्तार हो रहा है. इस कारण कुछ सालों में ढाई करोड़ परिवार गरीबी के चंगुल से छुटकारा पा लेंगे. आय, उपभोग तथा अर्थव्यवस्था की बेहतरी में एक बड़ा आयाम नगरीकरण भी है.
शहरों का विस्तार तथा कस्बों का शहरों में बदलना विकास के मुख्य आधार हैं. आज जो उपभोग का स्तर है, उतना 2030 में सिर्फ 40 शहरों का आंकड़ा होगा. विकास की धारा को संतुलन के साथ आगे ले जाने की राह में कौशल विकास, रोजगार बढ़ाना, ग्रामीण एवं निम्न आय वर्ग को समावेशित करना तथा स्वस्थ एवं सतत भविष्य जैसे लक्ष्यों पर समुचित ध्यान देना जरूरी है.
इसके लिए सरकार की ओर से अनेक नीतिगत पहलें हुई हैं और कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. समय-समय पर इनकी समीक्षा और उसके अनुसार सुधार करते हुए आगे बढ़ा जाए, तो समृद्ध और विकसित भारत का सपना अवश्य पूरा होगा.

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