17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हिंदुओं का पुनर्वासन और विरोध!

राहुल महाजन वरिष्ठ पत्रकार mrahul999@yahoo.com बीते कई सालों से हजारों लोगों को भारत की नागरिकता मिलने का इंतजार है. इनमें सबसे अधिक पाकिस्तान से आनेवाले हिंदू हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान, ईरान और बांग्लादेश के भी लोग इसी आस में हैं कि सरहद पार से दिये जख्मों के साथ जब ये भारत में प्रवेश करेंगे, तो […]

राहुल महाजन

वरिष्ठ पत्रकार

mrahul999@yahoo.com

बीते कई सालों से हजारों लोगों को भारत की नागरिकता मिलने का इंतजार है. इनमें सबसे अधिक पाकिस्तान से आनेवाले हिंदू हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान, ईरान और बांग्लादेश के भी लोग इसी आस में हैं कि सरहद पार से दिये जख्मों के साथ जब ये भारत में प्रवेश करेंगे, तो न सिर्फ इन्हें भारत की सहानुभूति मिलेगी, बल्कि यहां की मुख्यधारा में इनका ससम्मान स्वागत भी किया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

भाजपा ने 2014 के चुनावों में वादा किया था- ‘अपनी जमीन से उजड़े हिंदुओं के लिए भारत सदैव प्राकृतिक गृह रहेगा और यहां आश्रय लेने के लिए उनका स्वागत किया जायेगा’. पिछले दिनों असम की बराक घाटी में सिलचर के नजदीक प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक- 2016 को जल्द संसद में पारित कराया जायेगा. यह विधेयक लोकसभा में 15 जुलाई, 2016 को पेश हुआ था, जिसे नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया था.

साल 1955 के नागरिकता अधिनियम कानून के अनुसार, बिना किसी प्रमाणित पासपोर्ट या वैध दस्तावेज के या फिर वीजा परमिट से ज्यादा दिन तक भारत में रहनेवाले लोगों को अवैध प्रवासी माना जायेगा. नागरिकता (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पास करा कर एनडीए सरकार ने भाजपा के 2014 के वादे को पूरा करने की कोशिश की है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते सोमवार को बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान के लिए इस नागरिकता (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दे दी थी. इस कदम से पहले विधेयक का परीक्षण करनेवाली संयुक्त संसदीय समिति ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. समिति की रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है.

अगर यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन जाता है तो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक अत्याचार की वजह से भाग कर 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवेश करनेवाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के माननेवाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकेगी.

इस समय असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपडेट किया जा रहा है. इसे उन बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान करने के लिए अपडेट किया जा रहा है, जो 24 मार्च, 1971 के बाद भारत-बांग्लादेश बंटवारे के समय अवैध रूप से असम में घुस आये थे. साल 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के बीच ‘असम समझौता’ भी हुआ था.

दरअसल, एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल एक-दूसरे के विरोधाभासी दिखते हैं. जहां एक ओर बिल में भाजपा धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देना चाहती है, वहीं एनआरसी में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को लेकर भेदभाव नहीं है. इसके अनुसार 24 मार्च, 1971 के बाद अवैध रूप में देश में घुसे प्रवासियों को निर्वासित किया जायेगा.

असम में एनडीए के सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने बिल के विरोध में एनडीए से समर्थन वापस ले लिया है. एजीपी का विरोध है कि बिल को लागू किया जाता है, तो पहले से अपडेटेड नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) प्रभावहीन हो जायेगा.

एजीपी ने बिल के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की थी. एजीपी के अलग होने से राज्य की भाजपा सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि कहा जा रहा है कि इससे भाजपा को ही फायदा होगा. भाजपा की यहां की लोकसभा सीटों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

असम में ‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016’ के विरोध में बीते सोमवार को ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) समेत 30 संगठनों ने बंद बुलाया.

इसका असर राज्य के सभी हिस्सों में नजर आया. अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी इस विधेयक के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन हो रहा है. पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई छात्र संगठनों ने इसके खिलाफ बुलाये गये बंद का समर्थन किया है. नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एनईएसओ) ने 11 घंटे के बंद का आह्वान किया, जिसका मिजो जिरलाई पवाल (एमजेडपी), ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (आपसू), नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ), असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने उन्हें अपना समर्थन दिया. विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह विधेयक 1985 के असम समझौते के खिलाफ है.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां भी इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. दिलचस्प है कि बीजेपी की सहयोगी, शिवसेना और जदयू के तेवर भी इस विधेयक के विरोध में हैं. इन पार्टियों का कहना है कि इससे लोगों की सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ जायेगी.

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के अनुसार, इस विधेयक के पास होने से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तैयार हो रहा असम सिटीजन रजिस्टर का काम भी प्रभावित होगा. वहीं, विपक्ष में खड़े दलों का यह भी कहना है कि बिल में संशोधन करके धार्मिक पहचान को आधार बनाया गया है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 की मूल भावना का उल्लंघन है. अनुच्छेद 14 समता के अधिकार के बारे में बताता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें