झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द करने का आदेश दिया है. मुख्यमंत्री का निर्देश है कि उनकी सरकार में अब किसी तरह की छुट्टियों पर विचार नहीं किया जाये. मुख्यमंत्री लंबे समय से लटके कामों और योजनाओं को पूरा कर आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपनी जमीन मजबूत करना चाहते हैं.
जनता के बीच जाकर सवा साल के अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाना चाहते हैं. उन पर ऐसा करने का दबाव भी है. लोकसभा चुनाव के परिणाम से उत्साहित भाजपा ने झारखंड की सत्ता में वापसी के लिए आंदोलन की रणनीति अपनायी है. बिजली की खराब स्थिति पर भाजपा राज्य भर में प्रदर्शन कर रही है. सरकार की विफलताओं को गिना रही है. ऐसे में मुख्यमंत्री के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. वह काम करके दिखाना चाहते हैं. प्राथमिकताओं को पूरा कर जनता को संदेश देना चाहते हैं. अफसरों पर काम करने का दबाव बनाने के लिए हेमंत सोरेन पूरे दिन सचिवालय में बैठ रहे हैं. विभागों की समीक्षा कर अफसरों को दो महीने का टास्क दे रहे हैं.
अपने प्रधान सचिव को दरकिनार कर राज्य के मुख्य सचिव से सीधे बात कर निर्देश दे रहे हैं. मुख्यमंत्री की नीयत तो अच्छी है, पर दुर्भाग्य से झारखंड सरकार की कार्यशैली में बड़े झोल हैं. वर्षो से सुस्त पड़ी सरकारी मशीनरी को दोबारा पूरी रफ्तार से चलाना आसान नहीं है. उससे रोज आठ घंटों तक काम लेना मेडल जीतने जैसा काम है. ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री इन सब से अनजान हैं. वह सिस्टम की दिक्कतों को बखूबी जानते हैं. मुख्य सचिव ने भी सार्वजनिक रूप से इन बातों को स्वीकारा है.
छुट्टियां रद्द करने से ज्यादा जरूरी है कि मुख्यमंत्री अटके पड़े कामों को निबटाने के लिए समय सीमा तय करें. एक फाइल अधिकतम कितने दिन लंबित रह सकती है, यह भी तय होना चाहिए. कुल मिला कर, अनिर्णय की स्थिति को समाप्त करना होगा. मुख्यमंत्री को अफसरों-कर्मचारियों के साथ अपने मंत्रियों के कामकाज के लिए भी सख्त दिशा-निर्देश जारी करने होंगे. जनहित के सबसे ज्यादा मामले मंत्रियों के पास ही लटके हुए हैं. मुख्यमंत्री की नजर भले ही चुनाव पर हो, पर शायद इससे जनता का भी कुछ भला हो जाये.