अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्म लेने वाली आम आदमी पार्टी आम लोगों की नब्ज थामने में कामयाब रही थी और पानी-बिजली जैसी मूलभूत जरूरतों को मुद्दा बना कर उसने दिल्ली में अपने पक्ष में एक लहर बना ली थी, जिस पर सवार होकर दिल्ली की कुरसी तक पहुंची थी. अरविंद केजरीवाल ने इसी लहर का लाभ उठाने के लिए लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन मोदी लहर के आगे उनकी तथा उनके पार्टी की एक न चली. लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सात में से एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही और उसके तमाम बड़े नेता चुनाव हार गये.
चुनाव नतीजों के बाद ऐसी खबरें भी आयीं कि केजरीवाल फिर से दिल्ली में सरकार बनाना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि वह आम आदमी पार्टी को फिर से समर्थन नहीं देगी. लोकसभा चुनाव में बुरे प्रदर्शन का ही यह नतीजा था कि पार्टी आपसी कलह का शिकार हुई और शाजिया इल्मी, योगेंद्र यादव और अंजलि दमानिया की पार्टी से नाराजगी सामने आयी. मनीष सिसोदिया और योगेंद्र यादव के बीच का आपसी मतभेद भी हम सबके सामने आया.
केजरीवाल की तिहाड़ यात्रा से भी आम लोगों के बीच पार्टी की फजीहत हुई तथा केजरीवाल की प्रतिष्ठा भी कम हुई. खुद को अन्य राजनीतिक दलों से अलग बताने वाली ‘आप’ लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हीं दलों की राह पर चलती नजर आयी, चाहे वह दागियों को टिकट देने की बात हो या धर्मगुरुओं से मिल कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश. फिलहाल आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रही है. केजरीवाल ने भी पार्टी के पुनर्गठन की घोषणा की है, लेकिन ‘आप’ के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा.
आकाश गुप्ता, भुवनेश्वर