नरेंद्र मोदी को देश गोधरा से पहचानता है. गोधरा में जो कुछ हुआ उसके पीछे कहीं न कहीं नरेंद्र मोदी का हाथ था. तभी से वह हिंदुओं के लिए कौमी आका बन गये. दरअसल, हकीकत से घबरानेवाले सारे राजनीतिक दल घटनाओं को राजनीतिक अंदाज में पेश करते हैं. वे कट्टरवादी हिंदुओं को छोड़ कर, मोदी को दोषी ठहराते हैं. कांग्रेस हो या वाम दल, सभी हिंदू कट्टरवाद की आलोचना करते हैं.
करनी भी चाहिए. कट्टरता निंदनीय है. लेकिन क्या मुसलिम कट्टरवाद की आलोचना हम नहीं करेंगे? यही कारण है कि मोदी रातों-रात अपने व्यक्तित्व में लाखों गुणा इजाफा महसूस करने लगते हैं. मोदी को इस स्तर तक पहुंचाने में मुसलिम कट्टरवाद सर्वाधिक जिम्मेवार है.हिंदुओं के पक्ष में कोई राजनीतिक दल खड़ा होता नहीं दिखता. बीजेपी को छोड़ कर सभी मुसलिम वोट पाने के लिए योजनाएं बनाते रहते हैं.
अभी तक शायद ही किसी भी दल ने गोधरा में हिंदू रामभक्तों को जला कर मारने की निंदा सार्वजनिक व प्रभावशाली तरीके से की हो. हिंदुओं में इससे क्या संदेश जाता है? मुसलमानों की तरह वे भी इनसान हैं. कुछ हिंदू नेता तो आतंकवादियों की सराहना करने में मुसलिम वोट अपने पक्ष में सुरक्षित समझते हैं. सभी कौमों को, खास कर भारत जैसे बहुधर्मीय देश में, शांति से रहने के लिए एक-दूसरे के जज्बातों की कद्र करनी होगी.
चुनाव के समय सारे राजनीतिक दलों ने मुसलिम तुष्टीकरण के लिए मोदी की आवश्यकता से अधिक आलोचना की, जिससे मोदी राज्य स्तर से प्रोन्नत होकर राष्ट्र नेता बन गये. मोदी न तो राजनीतिविद् हैं न शिक्षाविद् न आर्थिकविद् और न ही अच्छे प्रशासक, फिर भी वे प्रधानमंत्री बने. इसकी वजह राजनीतिक दलों को तलाशनी होगी.
नंदलाल सिंह, कोलकाता