झारखंड मुक्ति मोरचा का भविष्य दावं पर है. पार्टी से एक के बाद एक वरिष्ठ और कद्दावर नेता किनारा कर रहे हैं. इन नेताओं के पार्टी छोड़ने से झामुमो बैकफुट पर नजर आ रहा है. फिलहाल झामुमो के साथ एक कहावत चरितार्थ हो रही है – न माया मिली न राम. झारखंड आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई यह पार्टी कभी झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. झारखंड में सरकार गठन के सभी रास्ते प्राय: झामुमो से ही होकर गुजरते थे. बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां राज्य में इससे गंठबंधन को मोहताज रहती थीं.
लेकिन आज वे स्वर्णिम स्थितियां करवट ले चुकी हैं. भोले-भाले आदिवासियों के जनाधार पर आश्रित यह पार्टी अपने लक्ष्य से भटकती हुई प्रतीत हो रही है. झामुमो आज अपने वजूद को लेकर आशंकित है! आखिर क्या कारण था कि पार्टी के लोकप्रिय और दिग्गज नेता बागी हो गये? यह गहन विचारणीय है कि कहीं पार्टी की कथनी और करनी पर फर्क तो नहीं हो रहा. केवल टिकट ना मिलना बागी होने के कारण नहीं हो सकते क्योंकि ऐसा होता तो आप इसे अपनी प्रबंधन क्षमता की बदौलत हल कर सकते थे.
पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का न होना और वंशवाद की राजनीति भी प्रमुख कारण हो सकते हैं. जो लोग वर्षो से इस पार्टी को वोट दे रहे हैं, उनका कल्याण नहीं हुआ. लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद विस चुनाव के काउंटडाउन शुरू हो चुके हैं. एक तरफ झामुमो पर सरकार बचाने की नौबत हो आयी है तो वहीं दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में भारी विफलता के बाद गंठबंधन की दोनों पार्टियों, झामुमो और कांग्रेस की ओर से बगावत के सुर निकलने लगे हैं. यह आत्ममंथन करने का समय है. सिद्धांतों पर चलते हुए सबको साथ लेकर आगे बढ़ें, सबको सम्मान दें. तभी पार्टी का उत्थान होगा.
सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा