11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भय और हिंसा के दौर में गांधी

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com महात्मा गांधी (2 अक्तूबर, 1869- 30 जनवरी, 1948) की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ का आरंभ हो चुका है. वर्षभर अनेक आयोजन होंगे, सभाएं-संगोष्ठियां होंगी और गांधी के विचारों पर बहसें भी होंगी. सरकारी कार्यक्रम अनेक होंगे और यह साबित करने के प्रयत्न भी होंगे कि गांधी के सच्चे वारिस वे ही हैं, […]

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

महात्मा गांधी (2 अक्तूबर, 1869- 30 जनवरी, 1948) की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ का आरंभ हो चुका है. वर्षभर अनेक आयोजन होंगे, सभाएं-संगोष्ठियां होंगी और गांधी के विचारों पर बहसें भी होंगी. सरकारी कार्यक्रम अनेक होंगे और यह साबित करने के प्रयत्न भी होंगे कि गांधी के सच्चे वारिस वे ही हैं, आज के नेतागण.

जबकि हकीकत यह है कि सत्तासीन व्यक्तियों, शासकों और राजनीतिक दलों ने बार-बार गांधीजी की हत्या की है. गांधी की हत्या से हमारा आशय उनके विचारों, आदर्शों, सिद्धांतों और मूल्यों को ग्रहण न कर बार-बार उनका नाम-जाप करने से है. राजघाट पर जानेवाले लोग क्या सचमुच गांधी से कुछ सीखते भी हैं?

अहिंसा से हिंसा की ओर, सत्य से असत्य की ओर और ‘सत्याग्रह’ से मिथ्याग्रह की ओर देश को बढ़ानेवाली ताकतों को क्या वास्तव में गांधी से कोई मतलब है?

गांधी ने ब्रिटिश शासन और सत्ता को उसकी औकात बता दी थी. उनके पास सत्ता नहीं थी, पर उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी सत्ता को चुनौती दी थी और अंग्रेजों को भारत से बाहर किया था. बहुसंख्यक दल के शासकों ने अपने अहंकार में अपने विरोधियों और विरोधी दलों की आवाजों को दबाने के कम प्रयत्न नहीं किये हैं. जो नेता झूठा है, वह गांधी को याद करने का ढोंग ही कर सकता है.

धर्म की राजनीति करनेवालों को गांधी के ये शब्द सुनने चाहिए- ‘मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है. सत्य मेरा भगवान है. अहिंसा उसे पाने का साधन.’ धर्म गांधी के लिए निजी विषय था. उन्होंने हिंदू को ‘बेहतर हिंदू’, मुस्लिम को ‘बेहतर मुस्लिम’ और ईसाई को ‘बेहतर ईसाई’ बनने की बात कही थी. हम ‘बेहतर’ बने या बदतर बनकर रह गये?

धर्म का शंखनाद करनेवालों ने न गांधी को पढ़ा है, न गांधी को समझा है. एक दिन में चार बार पोशाक बदलनेवाले क्या इस ‘अधनंगे फकीर’ को समझ सकते हैं? आज जब डर बढ़ाया जा रहा है, हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि गांधी ने डर को समाप्त किया. उन्होंने बार-बार सत्यनिष्ठा, सौम्य और निर्भीक होने को कहा. उनके जैसा सत्यनिष्ठ और सत्याग्रही और कोई नहीं हुआ. उनके लिए सत्य एक था, यद्यपि उसके मार्ग कई थे.

उन्होंने प्रत्येक दिन सुबह के समय यह संकल्प लेने को कहा कि मैं दुनिया में न तो किसी से डरूंगा और न अन्याय के समक्ष झुकूंगा. सत्य का बहुमत से कोई संबंध नहीं है. बहुमत हासिल कर सत्ता पानेवाला सच के साथ कम, झूठ के साथ अधिक होता है. सत्य को ‘जन-समर्थन’ की जरूरत नहीं होती. ‘सत्य बिना जन-समर्थन के भी खड़ा रहता है. सत्य आत्मनिर्भर है.’

गांधी ने हमेशा हिंसा का विरोध किया. वे मुक्ति का मार्ग हिंसा में नहीं, अहिंसा में देखते थे. साल 1926 में ही उन्होंने कहा था- ‘यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूंगा.’

भारत उनके लिए शरीर न होकर आत्मा है. शरीर जीवित रहे और आत्मा मृत हो, तो न उस मनुष्य का कोई अर्थ है, न उस देश और समाज का. साल 1926 में ही उन्होंने हमें आगाह किया था- ‘भारत के सामने इस समय अपनी आत्मा को खोने का खतरा है.

और यह संभव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके.’ गांधी ने बार-बार हमें समझाया- ‘जीवन अहिंसा से चलता है.’ आज हिंसक ताकतों को, हत्यारों को शह देनेवाली शक्तियां भी गांधी का नाम-जप कर रही हैं.

गांधी का सारा सिद्धांत सत्य और अहिंसा पर आधारित है, न कि स्वच्छता पर.

स्वच्छता को उन्होंने आवश्यक माना था, पर ‘सत्याग्रह’ के स्थान पर ‘स्वच्छाग्रह’ को रखना सत्य की उपेक्षा करना है. संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने 15 जून, 2007 काे एक प्रस्ताव के जरिये 2 अक्तूबर काे अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस माना. आज भारत में 2 अक्तूबर बस स्वच्छता दिवस बनकर रह गया है. गांधी के चिंतन और कर्म में सामंजस्य था. उनकी कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं था.

आज गांधी दोमुंहों और बहुरुपियों के हाथाें में हैं. गांधी हत्या को ‘नशा में किया गया कार्य’ कहते थे और यह मानते थे कि- ‘नशा किसी पागलपन भरे विचार का भी हो सकता है.’ अनुशासन उनके लिए अपने-आप में कोई मूल्य नहीं था. गांधी के एक साथी ने उनसे अारएसएस के ‘गजब अनुशासन’ की प्रशंसा की थी. गांधी का उत्तर था- ‘हिटलर के नाजियों में और मुसोलिनी के फासिस्टों में भी ऐसा ही अनुशासन नहीं है क्या?’

गांधी पर सभा-सेमिनार करनेवालों को इस पर ध्यान देना होगा कि गांधी के लिए आस्था महत्वपूर्ण नहीं थी. आज बात-बात पर जिनकी भावना आहत होती है, उन्हें गांधी का यह कथन याद रखना चाहिए- ‘विश्वास काे हमेशा तर्क से तौलना चाहिए, जब विश्वास अंधा हो जाता है, तो मर जाता है.’

गांधी के देश में ही इस वर्ष 2 अक्तूबर को किसानों को अपना दुखड़ा सुनाने के लिए और हक की मांग के लिए दिल्ली आने से रोका गया. उन पर आंसू गैस छोड़े गये, लाठियां बरसायी गयीं. गांधी ने हमेशा हमें यह सोचने को कहा है कि ‘तानाशाह और हत्यारे कुछ समय के लिए अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है.’

उन्होंने लोकतंत्र के दुरुपयोग की संभावना को कम करने की बात कही है. ‘राग द्वेष, अज्ञान और अंधविश्वास आदि दुर्गुणों से ग्रस्त जनतंत्र अराजकता के गड्ढे में गिरता है और अपना नाश खुद कर डालता है.’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें