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बीमार करता वायु-प्रदूषण

वायु-प्रदूषण को मुख्य रूप से फेफड़े और हृदय के रोगों का एक मुख्य कारण माना जाता है, लेकिन एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध-अध्ययन का निष्कर्ष है कि वायु-प्रदूषण मानसिक क्षमता के लिए भी समान रूप से घातक हैं. पेकिंग और येल विवि के इस संयुक्त अध्ययन का निष्कर्ष है कि वायु-प्रदूषण के कारण मनुष्य के […]

वायु-प्रदूषण को मुख्य रूप से फेफड़े और हृदय के रोगों का एक मुख्य कारण माना जाता है, लेकिन एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध-अध्ययन का निष्कर्ष है कि वायु-प्रदूषण मानसिक क्षमता के लिए भी समान रूप से घातक हैं. पेकिंग और येल विवि के इस संयुक्त अध्ययन का निष्कर्ष है कि वायु-प्रदूषण के कारण मनुष्य के शब्द-संयोजन और गणितीय आकलन की क्षमता में कमी आती है. उम्रदराज पुरुषों की मानसिक क्षमता के लिए वायु-प्रदूषण विशेष रूप से खतरनाक है.

प्रतिष्ठित नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन से दरअसल भारत में पिछले साल हुए एक अध्ययन के निष्कर्षों की पुष्टि हुई है. बीते साल नवंबर में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट (सीएसई) ने अपने एक अध्ययन में बताया था कि भारत में रोगों के कारण असमय मौत के 30 फीसद मामलों में मुख्य वजह वायु-प्रदूषण है. भारत जैसे देश के लिए बढ़ता वायु-प्रदूषण विशेष चिंता की बात है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के मुताबिक दुनिया के सबसे ज्यादा वायु-प्रदूषण वाले कुल 15 शहरों में 14 भारत के हैं और देश के ज्यादातर इलाकों में वायु की गुणवत्ता लगातार घट रही है.

वायु प्रदूषण में बढ़वार जारी है और इसकी समस्या अब सिर्फ महानगरों या कल-कारखानों की प्रधानता वाले शहरों तक ही सीमित नहीं. महानगरों से बहुत पीछे माने जानेवाले नगरों में भी वायु-प्रदूषण स्तर साल के ज्यादातर दिनों में खतरे की सीमा को लांघ जाता है. मिसाल के लिए पटना, जहां 2017 में हवा में घुले घातक सूक्ष्म कणों की मात्रा (पीएम 2.5) निगरानी के कुल 311 दिनों में मात्र 81 दिन ही स्वास्थ्य-सुरक्षा की निर्धारित सीमा के भीतर पायी गयी. पटना में पिछले साल कुछ दिन ऐसे रहे, जब पीएम 2.5 की हवा में मौजूदगी 600 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से ज्यादा थी. यह भारत सरकार के निर्धारित सुरक्षा-मानक से 15 गुना ज्यादा है. बढ़ती बीमारियों पर होनेवाले खर्च को कम करने के लिहाज से वायु-प्रदूषण को रोकने के मोर्चे पर सरकार को विशेष उपाय करने होंगे.

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट (2017) में ध्यान दिलाया था कि पर्यावरणीय कारणों से पैदा होनेवाले जोखिम की पहचान और उससे निबटारे के उपाय किये बगैर भारत गैर-संक्रामक रोगों जैसे हृदय रोग, सांस के रोग, मधुमेह और कैंसर आदि की बढ़वार पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो सकता. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गैर-संक्रामक रोगों की बढ़वार के मुख्य कारक के तौर पर शराब, तंबाकू, कम गुणवत्ता का भोजन तथा शारीरिक मेहनत की कमी की पहचान की है और इसके लिए प्रति व्यक्ति 1-3 डॉलर के खर्चे को जरूरी माना है.

लेकिन, सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में गैर-संक्रामक रोगों की वृद्धि के कारकों में पर्यावरणीय जोखिम (जैसे वायु-प्रदूषण) की भी गिनती जरूरी है और स्वास्थ्य-संरक्षा या फिर आर्थिक वृद्धि की नीतियां भी पर्यावरणीय जोखिम को ध्यान में रखकर बनायी जानी चाहिए.

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