तेलंगाना के गठन का निर्णय केंद्र की पिछली सरकार ने भले चुनावी नफा-नुकसान के तात्कालिक आकलन के आधार पर लिया हो, लेकिन देश के 29वें राज्य का अस्तित्व में आना राजनीतिक विकेंद्रीकरण व आर्थिक आकांक्षाओं के लंबे इतिहासों व संघर्षो का परिणाम है. भाषाई आधार पर 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के वक्त से ही अलग तेलंगाना की मांग उठती रही थी.
आंध्र प्रदेश भाषा के आधार पर गठित होनेवाला पहला राज्य था, जिसने भाषा को राजनीतिक लामबंदी के मजबूत आधार के रूप में स्थापित तो किया, लेकिन नेतृत्व द्वारा तेलंगाना की क्षेत्रीय अपेक्षाओं की निरंतर उपेक्षा ने भाषायी एकता के भावनात्मक बंधन को तार-तार कर दिया. अब 10 जिलों, 17 संसदीय एवं 119 विधानसभायी क्षेत्रों वाले नये राज्य और वहां के करीब साढ़े तीन करोड़ निवासियों के बेहतर भविष्य की मंगलकामनाएं. के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में नयी सरकार ने शपथ ग्रहण कर लिया है. राव को अब सड़क और संघर्ष से परे उन सवालों को हल करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा, जिनकी अनदेखी ने पहले की सरकारों के प्रति असंतोष को जन्म दिया था.
उन्हें राज्य में कानून-व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को गंभीरता के साथ बेहतर करना होगा. आर्थिक विकास के लिए राज्य की खनिज-संपदा का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा. आदिवासी समुदायों के हितों को प्राथमिकता देनी होगी. पूर्ववर्ती आंध्र प्रदेश के नक्सल प्रभावित दस में से आठ जिले तेलंगाना में हैं.
उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि सत्ता का विकेंद्रीकरण और छोटे राज्य का गठन ही अपने-आप में चहुंमुखी प्रगति की गारंटी नहीं है. मुख्यमंत्री राव के सामने झारखंड एक उदाहरण है, जो अकूत प्राकृतिक और मानव संसाधनों के बावजूद आज भी देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार होता है. प्रदेश में राजनीतिक नेतृत्व की अक्षमता, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन इसकी वजह रहे हैं. फिलहाल, राव ने अपने बेटे और भतीजे को मंत्रिमंडल में जगह देकर अच्छा संकेत नहीं दिया है. सीमांध्र के मुख्यमंत्री बन रहे चंद्रबाबू नायडू को शपथग्रहण में निमंत्रित नहीं करना भी पड़ोसी राज्य के साथ रिश्तों की निराशाजनक शुरुआत है, जबकि दोनों राज्यों को हर कदम पर एक-दूसरे के साथ की जरूरत होगी.