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झारखंड में बह रही उलटी गंगा

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने आसीन होते ही, जो शुरुआती फैसले किये उनमें से एक यह है कि उनके सांसद और मंत्री निजी स्टाफ के रूप में अपने रिश्तेदारों को नहीं रखेंगे. हमारे देश में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह शासन-प्रशासन में कायम भाई-भतीजावाद है, जिसे देखते हुए मोदी सरकार के फैसले की सराहना […]

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने आसीन होते ही, जो शुरुआती फैसले किये उनमें से एक यह है कि उनके सांसद और मंत्री निजी स्टाफ के रूप में अपने रिश्तेदारों को नहीं रखेंगे. हमारे देश में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह शासन-प्रशासन में कायम भाई-भतीजावाद है, जिसे देखते हुए मोदी सरकार के फैसले की सराहना की जानी चाहिए. लेकिन झारखंड में उलटी गंगा बह रही है.

यहां कुछ मंत्री ऐसे हैं जिनके मंत्रालय का पूरा कामकाज उनके पुत्र व अन्य निकट संबंधी कर रहे हैं. अभी ताजा मामला सामने आया है कि एक मंत्री के पुत्र अपने पिता के मंत्रालय से जुड़ा 200 करोड़ का ठेका खुद हथियाने के चक्कर में लगे हैं. इस तरह की खबर किसी को चौंकाये तो चौंकाये, पर झारखंड के लोग यह सब सुनने-देखने के आदी हो चुके हैं. तबादला-तैनाती का मामला हो या ठेका-पट्टा दिलवाने का- विधायकों, सांसदों, मंत्रियों (चंद ईमानदार लोगों को छोड़ कर) के करीबी इसमें संलिप्त रहते हैं.

कुछ मंत्रियों के पुत्र इतने प्रभावशाली हैं कि वे संबंधित विभाग के सबसे बड़े अधिकारियों तक का तबादला कराने की हैसियत रखते हैं. मंत्री और जन-प्रतिनिधि जब अपने पद से जुड़े कामकाज में रिश्तेदारों या करीबियों को शामिल करते हैं, तो देर-सवेर उन पर दाग लगना तय होता है. केंद्र की यूपीए सरकार में संसदीय कार्य तथा रेल मंत्री रहे पवन बंसल हरदिलअजीज माने जाते थे. काफी लोकप्रिय थे. लेकिन उनके भांजे ने रेलवे में तबादले का ऐसा घोटाला किया कि उनकी इज्जत मिट्टी में मिल गयी. यहां तक कि इस बार संसदीय चुनाव भी हार गये.

यह सही है कि इस मामले में उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है और वह आरोपी नहीं बनाये गये हैं, पर इस बात पर कोई यकीन कैसे करेगा कि रेल मंत्रालय में उनका भांजा ‘सक्रिय’ हो और इसकी खबर उन्हें न हो. आज उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन विफल सा हो गया है, तो इसकी बड़ी वजह यह है कि नेताओं के रिश्तेदार और करीबी कानून व पुलिस को अपनी जेब में समझते हैं. पुलिस और प्रशासन के अफसर उनसे डरते हैं, उनका गैरकानूनी ‘आदेश’ मानते हैं. केंद्र सरकार ने जिस तरह मंत्रियों को अपने सरकारी कामकाज में रिश्तेदारों को दूर रखने की सलाह दी है, उस पर राज्य सरकार को भी अमल करना चाहिए.

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