10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कैदियों पर रहम

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150वें जयंती वर्ष के अवसर पर केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि सजा की आधी अवधि पूरा कर चुके 60 साल से ऊपर के पुरुष कैदी और 55 साल से ऊपर की महिला कैदी रिहा किये जायेंगे. इस आम माफी का फायदा किन्नर, दिव्यांग और गंभीर रूप से बीमार कैदियों […]

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150वें जयंती वर्ष के अवसर पर केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि सजा की आधी अवधि पूरा कर चुके 60 साल से ऊपर के पुरुष कैदी और 55 साल से ऊपर की महिला कैदी रिहा किये जायेंगे.

इस आम माफी का फायदा किन्नर, दिव्यांग और गंभीर रूप से बीमार कैदियों को भी मिलेगा. बापू के सम्मान में घोषित इस योजना से हजारों कैदी जेल की सलाखों से बाहर आबाद समाज में अपना जीवन बिताने का मौका पा सकेंगे. अच्छे व्यवहार के आधार पर भी सजा से पहले रिहाई का प्रावधान है. आम माफी की सराहनीय पहल से जेलों में भीड़ का दबाव भी कम होने की गुंजाइश बनेगी. अनेक अध्ययन इंगित करते हैं कि पुलिस तंत्र और न्यायिक खामियों के कारण बड़ी संख्या में लोग बिना आरोप पत्र, सुनवाई और जमानत के जेलों में बंद हैं.

हर तीन में से दो कैदी विचाराधीन श्रेणी के हैं. साल 2015 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक जेलों की क्षमता से 14 फीसदी अधिक कैदी हैं तथा दिल्ली, छत्तीसगढ़, मेघालय, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में यह अनुपात बहुत बड़ा है. जेलों के खस्ताहाल प्रबंधन का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2001 से 2010 के बीच 12,727 कैदियों की जेल में ही मौत हो गयी. साल 2015 में हर रोज औसतन चार कैदियों की मृत्यु हुई थी.

साल 2017-18 में यह औसत रोजाना पांच तक पहुंच गया. पुलिस बल के करीब पांच लाख पद रिक्त होने तथा निचली अदालतों में करोड़ों मुकदमों के लंबित होने के कारण कैदियों की भीड़ बढ़ रही है और जेलकर्मियों के 33 फीसदी से अधिक पद खाली होने से जेलों में रख-रखाव व्यवस्था लचर है. चूंकि आधे से अधिक कैदी सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबके से हैं, तो उन्हें समुचित कानूनी मदद भी नहीं मिल पाती है. ऐसे में सुधार गृह होने की जगह हमारे जेल एक तरह से यातना और अपराध केंद्र बनते जा रहे हैं. यह वैधानिक शासन के लिए बड़ी चुनौती है.

साल 2017 में विधि आयोग ने कहा था कि धनी और प्रभावशाली आरोपी आसानी से जमानत पा जाते हैं, पर साधारण और गरीब जेलों में पड़े रहने को अभिशप्त होते हैं. इस साल फरवरी में कुछ प्रमुख कॉरपोरेट घरानों ने बिना सुनवाई के कैद आरोपितों की कानूनी मदद की प्रक्रिया शुरू की है.

कई वकील भी प्रशासन और न्यायालयों के साथ मिलकर इस मसले में सकारात्मक हस्तक्षेप कर रहे हैं. समाज को अपराधमुक्त बनाने के लिए कानूनी प्रक्रिया की कमियों को दूर करने के साथ जेलों को बेहतर बनाने तथा कैदियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की दरकार है.

आम माफी से उन कैदियों को भी राहत मिलेगी, जो एक अदालत से सजायाफ्ता हैं और ऊपरी अदालतों में सालों से उनके मामले लटके पड़े हैं. उम्मीद है कि सरकार इस फैसले के साथ लंबे समय से की जा रही जेलों के सुधार की जरूरत पर भी ध्यान देगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें