अमेरिका में दो तरह की सड़कें हैं – नेशनल और इंटरनेशनल, जबकि हमारे यहां दो प्रकार की सड़कें हैं- ‘अंडर कंस्ट्रक्शन’ और ‘टेक डायवर्जन’. यह मेरा नहीं, किसी विद्वान का कहना है, लेकिन है बिल्कुल सटीक. आज भारतीय सड़कों की स्थिति देख दया आती है. मालूम ही नहीं पड़ता कि सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क. चंद साल पहले बनी सड़क भी अपनी चमक खो यात्रियों से रहम की भीख मांगती मालूम होती है.
बीते दिनों गोड्डा के पोड़ैयाहाट में एक बाराती गाड़ी पलटने से 15 लोगों की मृत्यु और 50 लोग घायल हुए. दुर्घटना इतनी दर्दनाक और हृदयविदारक थी कि इसकी गूंज राजधानी तक सुनायी दी. इसमें किसकी गलती है, पता नहीं, लेकिन आज की सड़कों की स्थिति सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न् लगाने के लिए काफी है. किसी प्रदेश में सड़कों का विकास वहां की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को इंगित करता है.
सड़क परिवहन किसी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. क्योंकि यह ना सिर्फ भौतिक वस्तुओं, बल्कि लोगों को भी सस्ती और घर-घर तक पहुंचाने की सेवा प्रदान करता है. लेकिन, अब सड़क को लेकर भी राजनीति होने लगी है. प्राय: सभी पार्टियां इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में स्थान देती हैं, बावजूद इसके सड़कों की स्थिति बदहाल ही है.
झारखंड-बिहार भी इससे अछूते नहीं हैं. हमारे राजनेता सड़क दुर्घटना पर केवल घड़ियाली आंसू बहा मुआवजे की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन वर्षो से जानलेवा बनी इन सड़कों पर इनका ध्यान कभी नहीं जाता. यहां न तो सड़कें स्तरीय हैं और ना ही ट्रैफिक नियमों का जोर है. आम से लेकर खास लोग केवल अपना उल्लू सीधा करने पर जोर देते हैं. आइए हम अपने स्तर से अपने दायित्वों का पालन करें, शायद स्थिति बदले! सुधीर कुमार, गोड्डा