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अवसाद की फैलती बीमारी
आशुतोष चतुर्वेदी ने 18 जून के प्रभात खबर में छपे अपने लेख ‘अवसाद की फैलती महामारी’ में उल्लेख किया है कि इस बीमारी से भारतवर्ष में लगभग पांच करोड़ लोग ग्रस्त हैं और यह बीमारी तेजी से फैलती जा रही है, जिसकी चपेट में पढ़े-लिखे शिक्षित वर्ग के अलावा किसान और छात्र भी हैं. यह […]
आशुतोष चतुर्वेदी ने 18 जून के प्रभात खबर में छपे अपने लेख ‘अवसाद की फैलती महामारी’ में उल्लेख किया है कि इस बीमारी से भारतवर्ष में लगभग पांच करोड़ लोग ग्रस्त हैं और यह बीमारी तेजी से फैलती जा रही है, जिसकी चपेट में पढ़े-लिखे शिक्षित वर्ग के अलावा किसान और छात्र भी हैं.
यह बीमारी कॉरपोरेट और आइटी के क्षेत्र में काम करनेवाले युवाओं में भी फैलती जा रही है. बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद जैसे शहरों में कॉरपोरेट और आइटी में काम करनेवाले युवाओं में यह बीमारी फैल रही है.
दरअसल, इसका मुख्य कारण है- काम का दबाव, विस्थापन, नौकरी से छंटनी, गला काट प्रतियोगिता, प्रतिष्ठा, सीनियर द्वारा काम का क्रेडिट न दिया जाना, महंगा लाइफ स्टाइल, नींद की कमी इत्यादि. अवसाद लाइलाज रोग नहीं है. जैव-रासायनिक असंतुलन के कारण भी अवसाद हो सकता है.
इसलिए परिजनों व मित्रों को हमेशा सजग रहना चाहिए. अगर उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम है, अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है, तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं. सरकार को भी अधिक से अधिक मनोचिकित्सा केंद्र को खोलना चाहिए, जिससे कि सभी मरीजों का इलाज समय पर हो सके.
राज्यवर्द्धन, कोलकाता
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