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इंटेलिजेंस में भारत

सूचना प्रौद्योगिकी के तेज प्रसार के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि डेटा (आंकड़ा) नये किस्म की उत्पादन प्रणाली के लिए कच्चे तेल की तरह है. इस समझ के अनुकूल सूचनाओं के आकलन, अनुमान, समस्या की पहचान और तर्कसंगत समाधान की क्षमता रखनेवाले तंत्र- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- का विकास और उपयोग लगातार बढ़ा है. भारत […]

सूचना प्रौद्योगिकी के तेज प्रसार के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि डेटा (आंकड़ा) नये किस्म की उत्पादन प्रणाली के लिए कच्चे तेल की तरह है. इस समझ के अनुकूल सूचनाओं के आकलन, अनुमान, समस्या की पहचान और तर्कसंगत समाधान की क्षमता रखनेवाले तंत्र- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- का विकास और उपयोग लगातार बढ़ा है.

भारत सरकार ने भी इस दिशा में ठोस कदम उठाया है. इस साल के शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर कृत्रिम बुद्धियुक्त मशीनों के इस्तेमाल से गरीबी हटाने और दिव्यांग जनों का जीवन सहज बनाने में मदद मिलती है, तो हमें इसका स्वागत करना चाहिए. इसी क्रम में उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं की अग्रिम सूचना देने तथा आपदा राहत के काम में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने की बात कही थी.

सोच के इस सिलसिले को विस्तार देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण में नीति आयोग से निवेदन किया था कि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े क्षेत्रों में सरकारी प्रयासों को दिशा देने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करे. आयोग ने अब इस संदर्भ में एक परिचर्चा-पत्र जारी किया है. उसकी प्रारंभिक योजना इस क्षेत्र के विद्वानों, उद्यमियों, विश्व स्तर के विशेषज्ञों और विभिन्न मंत्रालयों की सलाह से एक रणनीति तैयार करने की है. स्वास्थ्य सेवा, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी एवं आधारभूत ढांचा और परिवहन जैसे कुल पांच क्षेत्र हैं, जिनमें उत्पादकता बढ़ाने और लोगों की पहुंच का विस्तार करने के लिहाज से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने की परियोजना तैयार करने की यह एक मजबूत कोशिश है.

इन पांच क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लाकर विकास की व्यापक संभावनाओं को साकार किया जा सकता है. मिसाल के लिए, कृषि क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ाने के अवसर हैं. देश की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी जीविका के लिए खेती और उससे जुड़े कामों पर निर्भर है, लेकिन हमारे कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान 20 फीसदी से भी कम है.

बात चाहे मिट्टी की उर्वरता से संबंधी सूचनाओं की हो या उपज के लिए मंडियों में लाभकारी दाम पाना हो या फिर मौसम की सही जानकारी के अनुसार खेती के काम हों- इन तमाम पहलुओं में राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग जरूरतों तथा इलाकों के हिसाब से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी तकनीकों और तंत्रों का उपयोग कर किसानों के लिए बेहतर स्थितियां बनायी जा सकती हैं.

फिलहाल सबसे मुख्य चुनौती इस संबंध में आवश्यक शोध एवं अनुसंधान में निवेश तथा बौद्धिक संपदा से संबंधित कानूनी बाधाओं को दूर करने की है. सरकार ने अटल इनोवेशन मिशन के तहत आरंभिक चरण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कार्यक्रम में 200 करोड़ रुपये के निवेश का फैसला किया है. उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में धन समेत अन्य संसाधनों को जुटा कर योजनाबद्ध तरीके से इस कार्यक्रम को प्रभावी बनाने की कोशिशें तेज होंगी, ताकि भारत इस तकनीक में क्षमतावान देशों की श्रेणी में शामिल हो सके.

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