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कर्नाटक नतीजों से पैदा प्रश्न

II आर राजागोपालन II वरिष्ठ पत्रकार rajagopalan1951@gmail.com व्यावहारिक अर्थों में कर्नाटक में भाजपा की विजय और कांग्रेस की पराजय हुई है. कांग्रेस विधानसभा में अपनी 125 सीटों से नीचे उतरकर 78 पर पहुंच गयी और दक्षिण का यह महत्वपूर्ण राज्य उसके हाथ से निकल गया. भाजपा अपनी सीटों में काफी बढ़ोतरी करने के बाद भी […]

II आर राजागोपालन II

वरिष्ठ पत्रकार

rajagopalan1951@gmail.com

व्यावहारिक अर्थों में कर्नाटक में भाजपा की विजय और कांग्रेस की पराजय हुई है. कांग्रेस विधानसभा में अपनी 125 सीटों से नीचे उतरकर 78 पर पहुंच गयी और दक्षिण का यह महत्वपूर्ण राज्य उसके हाथ से निकल गया. भाजपा अपनी सीटों में काफी बढ़ोतरी करने के बाद भी बहुमत हासिल करने से रह गयी.

कांग्रेस की पराजय का अर्थ जहां राहुल की विफलता है, वहीं भाजपा की विजय का सीधा श्रेय नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के संयुक्त असर को जाता है.

कर्नाटक के इन चुनावी नतीजों ने कई प्रश्न पैदा कर दिये हैं. राहुल द्वारा कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने के बाद उसकी एक के बाद दूसरी पराजय का अर्थ क्या यह निकाला जाना चाहिए कि अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में वे असफल हैं?

क्या इसका एक अर्थ यह भी होगा कि 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव में सत्तापक्ष को विपक्षी पार्टियों के समूह से कोई मजबूत चुनौती नहीं मिलेगी? क्या कांग्रेस भी अपनी राष्ट्रीय हैसियत खोकर एक क्षेत्रीय पार्टी में तब्दील हो जायेगी? क्या कांग्रेस को अपने नेतृत्व के प्रश्न पर एक बार फिर विचार कर सोनिया या प्रियंका को ही पार्टी का मुखड़ा बनाना होगा?

यह सही है कि कर्नाटक में येदियुरप्पा का अपना प्रभाव है, जिसका फायदा भाजपा को मिला, पर नरेंद्र मोदी की 21 नाटकीय रैलियों ने पासा पलटने में खासा योगदान किया. लिंगायत मतों को विभाजित करने हेतु कानून लाने की अपनी चाल चलकर कांग्रेस ने एक बड़ी भूल कर दी, जिसका पूरा फायदा भाजपा ने उठा लिया.

कर्नाटक के इन चुनावों ने कई मुद्दे उछाले, जिनमें धनबल के इस्तेमाल की कोशिशें भी शामिल हैं. निर्वाचन आयोग द्वारा आरआर नगर के लिए मतदान की तिथि इसलिए बढ़ा दी गयी कि वहां के कांग्रेस उम्मीदवार पर मलिन बस्तियों के बाशिंदों के लगभग दस हजार मतदाता पहचान पत्र बटोर कर अपने पास रख लिये जाने का आरोप लगा.

भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक में व्यक्तिगत रूप से कुल 45 हजार किलोमीटर की यात्राएं कर 845 नुक्कड़सभाओं और अन्य सभाओं को संबोधित किया.

अपने इन संबोधनों में उन्होंने मतदाताओं के सामने मुख्यतः दो मुद्दे रखे- पहला यह कि सोनिया और राहुल गांधी ने नेशनल हेराल्ड की पांच हजार करोड़ रुपयों की संपत्ति की धोखाधड़ी की और दूसरा, कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी कलाई पर लगभग 70 लाख रुपये की घड़ी पहना करते हैं. सामान्य मतदाताओं पर इन दोनों बातों का बड़ा असर हुआ.

इसी दौरान हुआ एक और दिलचस्प वाकया पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्रपति को एक पत्र द्वारा यह बताना भी रहा कि नरेंद्र मोदी संविधान का उल्लंघन करते हुए कांग्रेस को धमका रहे हैं. यह सवाल सहज ही पैदा होता है कि राहुल गांधी ने यह पत्र स्वयं क्यों नहीं लिखा? क्या वे ऐसे किसी पत्र के सियासी नतीजों से भयभीत थे? ऐसी संभावनाएं हैं कि चूंकि कर्नाटक चुनाव समाप्त हो चुके हैं, सो सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पी चिदंबरम जैसे कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध अपनी कार्रवाइयां तेज कर सकते हैं.

क्या कांग्रेस को यह भय है कि इन कार्रवाइयों की चपेट में कांग्रेस के कई और नेता भी आ सकते हैं? क्या राष्ट्रपति को संबोधित इस पत्र के द्वारा वस्तुतः वे नरेंद्र मोदी को इसके लिए बाध्य करना चाहते हैं कि इन कार्रवाइयों की गति धीमी की जाए?

ऐसी आशंका इसलिए पैदा होती है कि चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा कई तरह की बातें कहना स्वाभाविक है, मगर क्या उस दौर की समाप्ति के बाद भी कांग्रेस द्वारा मोदी के ऐसे किसी भाषण को लेकर इतना आगे जाना चाहिए था? क्या कांग्रेस को भी प्रधानमंत्री के विरुद्ध गंदी भाषा के प्रयोग से बचना नहीं चाहिए था?

कांग्रेस ने राहुल गांधी के विमान में तकनीकी खराबी को एक साजिशी मुद्दा बनाकर मतदाताओं की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की, पर जब केंद्र सरकार और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने अपना पक्ष रखा, तो राहुल और उनके सहायकों को चुप्पी साध लेनी पड़ी. कर्नाटक पुलिस ने भी कांग्रेसी कहानी से इनकार कर दिया.

जहां तक आगामी लोकसभा चुनावों का प्रश्न है, तो 35 के लगभग क्षेत्रीय पार्टियों को क्या अब कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार्य होगा? डीएमके नेता स्टालिन और टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने मिलकर एक गठजोड़ बनाने का फैसला किया है, मगर उन्होंने कांग्रेस को विश्वास में लेने की कोशिशें नहीं कीं. राहुल गांधी अपनी युवा टीम पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो चले हैं. इन नतीजों के संकेत हैं कि उन्हें बुजुर्गों के अनुभव भी साथ रखने चाहिए.

कर्नाटक के इन नतीजों ने राज्य में वर्ष 2019 के मुकाबले के लिए मोदी के हाथ मजबूत कर दिये हैं, जबकि कांग्रेस में बेचैनी का आलम स्वाभाविक है.

इस पराजय के असर से राहुल द्वारा भविष्य में और गलतियां की जाने की ज्यादा संभावनाएं होंगी. स्वभावतः यह सवाल उठ रहा है कि इसी वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में होनेवाले चुनाव कैसे गुल खिलायेंगे?

(अनुवाद: विजय नंदन)

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