अपने अटल इरादों के कारण अनुकरणीय बन चुका दशरथ मांझी का नाम लोगों को असंभव को संभव बनाने की प्रेरणा देता है. पत्नी-प्रेम कहिये या कुछ कर गुजरने की तमन्ना, फौलादी पहाड़ को तोड़ दर्रा बना डाला. इतिहास में ऐसे दृष्टांत कम ही देखने को मिलते हैं, जब मनुष्य समाज की भलाई हेतु एकला चलो रे की तर्ज पर खतरों का खिलाड़ी बन कर उभरा हो. प्राय: ऐसा होता है कि जब आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो पहले-पहल लोग आपकी आलोचना करते हैं और जब आप विजयी होते हैं, तो वही लोग आपकी प्रतिभा और देशभक्ति को सलाम करते नजर आते हैं.
सड़क न होने से परेशानी तो सभी को हो रही थी, परंतु सब सरकार पर यह काम डाल कर खुद निश्चिंत थे. लेकिन दशरथ जी ने उन लोगों और सरकारी विभाग के कर्मचारियों की शिथिलता पर हथौड़े से प्रहार किया, जिनके कानों में जूं तक नहीं रेंगती. अभी चुनाव पूर्व हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों से चुनाव बहिष्कार की खबरें रोजाना मीडिया में आ रही थीं. उनका आरोप था कि फलां गांव में पुल, सड़क आदि का निर्माण नहीं हुआ है इसलिए वे वोट नहीं करेंगे. उनका कहना भी जायज है परंतु कई ऐसी बुनियादी सुविधाएं हैं, जिन्हें एक जागरूक और दृढ़निश्चयी समाज बिना सरकारी मदद से पूर्व अंशकाल के लिए बहाल तो कर ही सकता है.
आज गांवों के लोग भागवत कथा का श्रवण करने के लिए 8-10 किमी तक की पदयात्र कर सकते हैं, लेकिन बात जब 2-3 किमी नजदीक जाकर वोट डालने की हो, तो पोस्टरबाजी और नारेबाजी शुरू हो जाती है. मांग सभी क्षेत्रों में बढ़ी है. परिणामस्वरूप लोगों में त्याग की प्रवृति घटी है. आज हम भ्रष्टाचारियों को कोसते हैं, लेकिन कभी विचार नहीं करते कि कहीं अनचाहे रूप से हम भी इसके अंग तो नहीं बन रहे?
सुधीर कुमार, गोड्डा