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आपकी विवशता का राज क्या था?

।। विश्वनाथ सचदेव ।। वरिष्ठ पत्रकार सरकार पीएम चलाता है, नीतियां पार्टी की होती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि पार्टी का नेतृत्व मंत्रिमंडल के किसी निर्णय को कचरे की टोकरी में डाल दें. आपको इसका विरोध करना चाहिए था, पर शायद यह आपकी प्रकृति के अनुकूल नहीं है. प्रिय मनमोहन सिंह जी. यह […]

।। विश्वनाथ सचदेव ।।

वरिष्ठ पत्रकार

सरकार पीएम चलाता है, नीतियां पार्टी की होती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि पार्टी का नेतृत्व मंत्रिमंडल के किसी निर्णय को कचरे की टोकरी में डाल दें. आपको इसका विरोध करना चाहिए था, पर शायद यह आपकी प्रकृति के अनुकूल नहीं है.

प्रिय मनमोहन सिंह जी. यह पत्र मैं पीएम के नाम भी लिख सकता था, लिखना भी पीएम के नाम ही चाहिए था, क्योंकि जो बात मैं कहना चाहता हूं, उसका रिश्ता देश के पीएम से है, व्यक्ति मनमोहन सिंह से नहीं, लेकिन चूंकि आप पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि अब आप आगे पीएम पद पर नहीं रहेंगे, इसलिए यह संबोधन.

2004 से लेकर 2014 तक आपने पीएम के रूप में देश का नेतृत्व किया है. इस दौरान देश ने जो प्रगति की है, उसके यस के भागीदार आप भी है. उसी तरह, जिन क्षेत्रों में देश प्रगति नहीं कर पाया, या जहां-जहां सरकार से गलती हुई हो, उसके उत्तरदायित्व का बड़ा हिस्सा भी आपके कंधों पर आता है. हर व्यक्ति की अपनी क्षमताएं और सीमाएं होती हैं.

अपनी क्षमताओं और सीमाओं के साथ आपने देश के विकास के लिए जो कुछ किया, देश उसके लिए आपका आभारी रहेगा. लेकिन जो किया जाना चाहिए था और आप नहीं कर पाये, उसकी जिम्मेवारी भी आपको लेनी होगी. आप कह सकते हैं कि आपको करने नहीं दिया गया. न करने देनेवाला कोई भी हो, लेकिन कोई पीएम यदि ऐसा कहता है, तो इससे उसकी कमजोरी ही सामने आती है. मैं उस भाषा में आपको ‘कमजोर’ नहीं कहूंगा, जिस भाषा में आपके राजनीतिक विरोधियों ने आलोचना की थी, लेकिन किसी पीएम की विवशता की बात तो की ही जानी चाहिए.

2004 में जब आपको पद सौंपा गया था, तब शायद यह आपके लिए कल्पनातीत रहा होगा. जनादेश सोनिया गांधी के लिए था और वे चाहतीं तो पीएम बन सकती थीं. पर उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक विवशताओं को समझते हुए पीएम पद आपको सौंप दिया. आपको ही इस पद के लिए क्यों चुना? सोचने पर देश को इसका एक उत्तर यह मिला कि आप उन्हें संभवतया सबसे आज्ञाकारी पीएम लगे. लेकिन, 2009 का आम चुनाव कांग्रेस पार्टी ने जीता, तो उसका काफी श्रेय देश ने उस सरकार को दिया था, जिसके नेता आप थे.

यूपीए-2 के गठन के समय पीएम पद आपको सौंपा नहीं गया था. यह पद आपने प्राप्त किया था. इसलिए अपेक्षा थी कि आगे आप तन कर खड़े होंगे. लेकिन शायद यह आपके स्वभाव में नहीं था. आप विनम्रता की मूर्ति बने रहे. विनम्रता अच्छी चीज होती है, परंतु आपकी विनम्रता आपकी कमजोरी के रूप में सामने आयी. आपका यह बार-बार संकेत देना कि आप राहुल गांधी के अंतर्गत काम करने के लिए भी तैयार हैं, एक ऐसी कमजोरी का सूचक था, जो किसी पीएम में नहीं दिखनी चाहिए. देश को लगाना चाहिए कि कमान पीएम के हाथ में है.

यूपीए-2 में आप चाहते तो कुछ कठोर फैसले ले सकते थे. उन सबको मंत्रिमंडल से बाहर कर सकते थे, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. आपकी छवि एक ईमानदार व्यक्ति की रही है. आप इस छवि की रक्षा कर सकते थे. आपकी ईमानदारी पर अब भी कोई संदेह नहीं करता, पर यह बात लोग समझना चाहते हैं कि गलत आदमियों और गलत कामों को सहना आपकी विवशता क्यों बनी रही? देश का कोई भी विवेकशील नागरिक अपने पीएम को विवश नहीं देखना चाहेगा. हमारे जनतंत्र में पीएम सेनापति होता है.

उसी के नेतृत्व और निर्देशन में देश की प्रगति की लड़ाई लड़ी जाती है. जब दुनिया आर्थिक संकट से जूझ रही थी, तब वित्त मंत्री के रूप में आपने देश की अर्थव्यवस्था को बहुत हद तक संतुलित रखने में सफलता पायी थी. परमाणु करार के संदर्भ मे भी आपने दृढ़ता का परिचय दिया था. फिर बहुत से जरूरी मुद्दों पर चुप रहना क्यों स्वीकारा? आपने कहा था कि आपकी चुप्पी बहुत सारे सच से बेहतर है अथवा बहुतों के झूठ पर परदा डाले हुए है. यह अच्छी कूटनीति हो सकती है, पर अच्छी नीति नहीं. हमारा पीएम गलत को गलत कह कर उसे सही करने में विश्वास करनेवाला हो, यह हर नागरिक चाहेगा.

जनतंत्र में हमें वैसा पीएम भी नहीं चाहिए, जो अपने सामने किसी और को कुछ नहीं समझता हो. आपातकाल में हमने तानाशाही को नकार कर जनतंत्र की ताकत और स्वरूप का परिचय दिया था. पीएम से हम अपेक्षा करते हैं कि वह सबको साथ लेकर चलेगा, लेकिन इसका मतलब गलत को अनदेखा करना तो कतई नहीं होता. मंत्री उच्छृंखल हो जाएं, तो इसकी जिम्मेवारी तो उसे ही लेनी होगी.

सरकार और पार्टी के बीच एक-दूसरे के लिए सम्मान और समन्वय का रिश्ता होना चाहिए. सरकार पीएम चलाता है, नीतियां पार्टी की होती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि पार्टी का नेतृत्व मंत्रिमंडल के किसी निर्णय को कचरे की टोकरी में डाल दें. आपको इसका विरोध करना चाहिए था. आप इस्तीफा भी दे सकते थे, पर शायद यह आपकी प्रकृति के अनुकूल नहीं है. आपकी विनम्रता आपको कभी तानाशाह नहीं बनने देगी, लेकिन जनतांत्रिक मूल्यों-सिद्धांतों पर अड़नेवाले पीएम तो आप बन ही सकते थे. बहरहाल, आपके कार्यकाल में जो कुछ भी सकारात्मक हुआ, उसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.

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