झारखंड में विद्यालयों का विलय व्यापक पैमाने पर शुरू किया जा रहा है. पहले जहां हर घर के बालक-बालिका तक स्कूल की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर विद्यालय खोले गये, अब वहीं बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की दलील के साथ विद्यालयों के विलय की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार का पहला निर्णय सही था या दूसरा सही है? कहीं यह शिक्षकों की संख्या कम करने का सरकार का प्रयास तो नहीं? अगर ऐसा है, तो यह बेहद दुर्भाग्य की बात होगी.
राज्य में अबतक सरकारों द्वारा जो भी कदम उठाये गये हैं, छात्रों की भविष्य से खेलते ही नजर आये हैं. ऐसी ही नीतियों के परिणामस्वरूप लाखों रुपये खर्च कर अध्ययन करने वाले छात्र-अध्यापकों (बीएड) के भविष्य पर प्रश्नचिह्न अंकित है. यह बहुत ही चिंताजनक है.
हरिश्चंद्र महतो, चक्रधरपुर