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नकबेसर ले भागा कागा

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार होली अभी आयी नहीं है, पर माहौल बनने लगा है. पड़ोस में गाना बज रहा है, जिसमें कोई महिला दर्दभरे स्वर में बता रही है कि उसका नकबेसर कोई कागा नामक प्राणी ले भागा, और उसका अभागा सैंया सोता ही रह गया. सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि देश में […]

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

होली अभी आयी नहीं है, पर माहौल बनने लगा है. पड़ोस में गाना बज रहा है, जिसमें कोई महिला दर्दभरे स्वर में बता रही है कि उसका नकबेसर कोई कागा नामक प्राणी ले भागा, और उसका अभागा सैंया सोता ही रह गया. सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि देश में यह हो क्या रहा है?

पहले चोर भी काफी चूजी होते थे और महिलाओं का केवल दिल ही चुराया करते थे. महिलाएं भी इसका बुरा नहीं मानती थीं, बल्कि उन्हें ‘चितचोर’ जैसी संज्ञाओं से विभूषित करती थीं.

लेकिन बाद में महिलाएं जब दिल चुराये जाने से अनजान रहने लगीं, यहां तक कि चुराये जाने के बाद बिना दिल के भी आराम से जीने लगीं और पूछे जाने पर ‘दिल-विल प्यार-व्यार मैं क्या जानूं रे’ जैसे शब्दों में अपनी अनभिज्ञता तक जताने लगीं, तो चितचोरों को निरर्थकता-बोध ने ग्रस्त करना शुरू कर दिया. ऐसे ही किन्हीं क्षणों में वे महिलाओं के दिलों के बजाय उनकी अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित करने लगे, जैसे कि उनका गला और उसमें पहनी हुई सोने की चेन.

इसी क्रम में कुछ चोरों ने, जो चोर कम और उचक्के ज्यादा रह गये थे, महिलाओं के कानों की तरफ भी ध्यान दिया, जिनमें कि वे बाले पहनती थीं. बाले हालांकि वे कान की शोभा बढ़ाने के लिए कम और प्रेमियों की खोजी प्रवृत्ति की परीक्षा लेने के लिए ज्यादा पहनती थीं. अकसर अपने बाले इधर-उधर गिराकर वे प्रेमी से उन्हें ढूंढ़ने के लिए कह देतीं- ढूंढो ढूंढो रे साजना, ढूंढो रे साजना, मोरे कान का बाला! स्वभावत: साजना इस काम में ज्यादा सफल नहीं हो पाता था, क्योंकि उसका ध्यान प्रेमिका के कानों के बजाय उसके अन्य अंगों पर रहता था.

लेकिन अब उनके नाक का बेसर भी चोरी होने लगा है, और वह भी कागा द्वारा, यह तो हद है! रसखान ने ‘काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों ले गयौ माखन रोटी’ कहकर कागा की प्रशंसा क्या कर दी, उसका दुस्साहस बढ़ता ही जा रहा है.

मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि जब कागा महिला का नकबेसर लेकर भाग रहा था, तो महिला ने खुद उसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की और सैंया के ही जागकर कुछ करने की प्रतीक्षा वह क्यों करती रही? दूसरे, अभागा उसका सैंया है या वह खुद, जिसने अपने लिए ऐसा सैंया चुना, जिसका सोने पर इतना जोर है?

फिर, सैंया सो ही रहा है या सोने का नाटक कर रहा है? कागा एकदम से तो नकबेसर लेकर भाग नहीं जाता, बल्कि, जैसा कि महिला गाने में आगे बताती है, वह उड़-उड़ पहले उसकी बिंदिया पर बैठता है और उसके माथे का सारा रस ले भागता है, फिर उसकी नथुनी पे बैठता है और उसके होंठवा का सब रस ले भागता है और अंतत: उड़-उड़ उसकी करधन पे बैठ वह पापी उसके जोबना का रस ले भागता है.

अब देखना यह है कि कागा का अगला कदम क्या होगा? वह लौटकर वापस आयेगा या विदेश में ही बस जायेगा, पूर्व में नकबेसर ले भागे कागों की तरह? और इससे भी बड़ा सवाल यह कि सजनी कब तक ऐसे सैंया को सैंया बनाये रखेगी?

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