तरुण विजय
पूर्व सांसद, भाजपा
जिन दिनों भारत की संसद और मीडिया में इस्राइल से संबंध न रखने के नारे बुलंद होते थे, उन दिनों भी इस्राइल ने भारत की बिना शर्त सहायता की. भारत से उपेक्षा तथा हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर विरोध सहा, पर कभी भारत के खिलाफ न एक शब्द कहा, न नाराजगी जतायी. ऐसे देश से आये बेंजामिन नेतन्याहू पंद्रह साल बाद आये पहले इस्राइली प्रधानमंत्री हैं. पिछले साल जब नरेंद्र मोदी इस्राइल गये थे, तो स्वतंत्रता के बाद वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने तेल अवीव तथा जेरुसलम की यात्रा की.
भारत का इस्राइल से संबंध ढका-छुपा रहा है. मोदी सरकार ने इस्राइल से अपने संबंध मुस्लिम देशों, अरब-कूटनीति व फिलीस्तीन प्रश्न से पृथक करने का साहस दिखाया और भारत के हितों एवं सुरक्षा को प्रथम वरीयता देते हुए इन संबंधों को एक स्वतंत्र आयाम दिया, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि भारत की अरब-फिलीस्तीन नीति में बदलाव आया है. हाल ही में जब अमेरिका ने जेरुसलम को इस्राइल की राजधानी घोषित करने का प्रस्ताव रखा, तो भारत के उसके विरुद्ध मतदान किया, जिसकी यद्यपि भारत के इस्राइल मित्रों ने आलोचना की, परंतु इस्राइल ने यह कहकर विषय को टाल दिया कि ‘भारत-इस्राइल संबंध किसी एक वोट पर निर्भर नहीं.’ क्या उन मुस्लिम देशों से, जो कश्मीर और आतंक जैसे प्रश्नों पर दाएं-बाएं देखते हैं- ऐसे खुले मन से भारत ‘मैत्री’ की स्वीकारोक्ति की अपेक्षा की जा सकती है?
इस्राइली प्रधानमंत्री की छह दिवसीय भारत यात्रा में नौ से ज्यादा महत्वपूर्ण समझौते हुए- जो कृषि, विज्ञान, स्टार्टअप, नयी पहल वाली प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा तथा भारतीय रक्षा व्यवस्था हेतु आधुनिकतम हथियारों की आपूर्ति एवं तकनीकी स्थानांतरण से संबंधित है. चीन-पाकिस्तान सीमा पर भारतीय सुरक्षा बलों के पास अधिकतर रडार प्रणालियां इस्राइल से आयातित हैं और रूस के बाद इस्राइल ही अब भारत को हथियारों की आपूर्ति करनेवाला सबसे बड़ा देश है.
साइबर सुरक्षा आज सेना का चौथा अंग मानी जाने लगी है. डिजिटल व्यवहार, लेन-देन, बैंक, ई-मेल, व्हॉट्सएप्प आदि तमाम इंटरनेट आधारित प्रणालियां और एप्स जासूसी और शत्रु देश को अधिकतम चोट पहुंचाने के आसान मार्ग भी बन गये हैं. विश्व में आज इस्राइल साइबर-सुरक्षा तकनीक की बेताज राजधानी माना जाता है. वहां प्राथमिक शालाओं के छात्र विद्यालयों में साइबर सुरक्षा और हैकिंग का पाठ पढ़ते हैं. नरेंद्र मोदी ने नेतन्याहू के साथ साइबर सुरक्षा पर महत्वपूर्ण समझौते तो किये ही हैं, साथ ही जल-संरक्षण, सागर के खारे जल को पेयजल में बदलने की तकनीक, कृषि क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई, नहरों का पारस्परिक ताना-बाना, ये सब उन तमाम सहयोगों के अतिरिक्त हैं, जो भारत को आतंकवाद से लड़ने के लिए इस्राइल से मिलते हैं, जिनमें गुप्तचर सूचनाएं, मोसाद की सहायता, आतंकवाद के भारत में सक्रिय संजाल को खत्म करने के लिए भारत की गुप्तचर एवं सुरक्षा एजेंसियों से उच्चतम स्तर पर संपर्क शामिल है.
इन सब आत्मीयताओं का आधार दो हजार साल पुराना सभ्यता-संस्कृति मूलक संबंध है. जो समाज दुनिया के सभी देशों में प्रताड़ित हुआ, नस्लीय भेदभाव का शिकार बना, गैस चैंबरों में लोमहर्षक हत्याएं हेतु झोंका गया, जिनके घरों को ध्वस्त किया गया, जिन्हें देश से निकाला गया, उस समाज को केवल भारत के हिंदुओं ने दो हजार साल पहले प्रेम, अपनापन दिया. यह बात कोई यहूदी कभी भूलता नहीं है.
आज भले ही भारत में केवल पांच हजार यहूदी होंगे, क्योंकि अधिकांश इस्राइल बनने के बाद चले गये, लेकिन भारत की विकास गाथा में उनका अप्रतिम योगदान सभी भारतीय कृतज्ञता से याद करते हैं.
यदि 1971 में पाकिस्तानी सेना से आत्मसमर्पण करवानेवाले नायक लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब यहूदी थे, तो महाराष्ट्र में श्रेष्ठ स्कूल, पुस्तकालय, बंदरगाह, अस्पताल भी डेविड सैसून जैसे अनेक यहूदी भारतीयों ने बनवाये. भारतीय फिल्म उद्योग कभी यहूदी नायक-नायिकाओं के योगदान से उऋण नहीं हो सकता. सुलोचना, नादिरा, डेविड यदि प्रथम सवाक् फिल्मों की नायिकाओं से लेकर चरित्र नायकों तक भारतीय फिल्म उद्योग के शिखर पर छाये रहे. लेकिन, कभी भी यहूदी समाज ने भारत में अपने लिए अल्पसंख्यक दर्जा या विशेषाधिकार की मांग तक नहीं की.
प्रत्येक देश की कूटनीति का एकमात्र उद्देश्य अपने देश के हितों की रक्षा करना होता है. लेकिन, यह ऐसी नीति अपनाने का नाम है, जिससे दोनों पक्षों को लाभ हो. इस्राइल का विश्व में सबसे बड़ा हथियार खरीदनेवाला एकमात्र देश है भारत. अभी ही इस्राइल को तेरह हजार करोड़ के सौदों का लाभ मिला है.
इस्राइल की स्टार्टअप, साइबर सुरक्षा आदि भी उसके देश को भारत जैसा एक विशाल और विराट बाजार उपलब्ध कराती है, लेकिन इसके साथ भारत को भरोसेमंद रक्षा-सहयोग मिलता है.
यानी दोनों देशों का लाभ.
भारत में बेंजामिन नेतन्याहू की यात्रा के कारण जो नया उत्साह पैदा हुआ है, उसका हमें लाभ उठाना चाहिए. भारत के युवा इस्राइल की यात्रा पर जाएं, यहां के निजी एवं सरकारी विश्वविद्यालय एवं अन्य संस्थान इस्राइल के शैक्षिक-तकनीकी संस्थानों से संबंध जोड़ें, तो बात बेहतर बनेगी.