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काले जानवरों के दुख
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार घर के पास की सड़क के दोनों ओर पक्के फुटफाथ हैं, जो दूर तक फैले हैं. इन पर गायें, कुत्ते, बिल्लियां, दाना चुगती चिड़ियां आदि दिखती हैं. यहीं अक्सर कई काले कुत्ते दिखते हैं. एक कुत्ता बेहद मोटा-तगड़ा है. अक्सर शनिवार के दिन इन काले कुत्तों के आसपास लोग दिखायी देते […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
घर के पास की सड़क के दोनों ओर पक्के फुटफाथ हैं, जो दूर तक फैले हैं. इन पर गायें, कुत्ते, बिल्लियां, दाना चुगती चिड़ियां आदि दिखती हैं. यहीं अक्सर कई काले कुत्ते दिखते हैं.
एक कुत्ता बेहद मोटा-तगड़ा है. अक्सर शनिवार के दिन इन काले कुत्तों के आसपास लोग दिखायी देते हैं. कोई इन्हें लड्डू खिला रहा है, कोई बरफी तो कोई मीठे पूए. दूध पीते भी दिखते हैं. इसी तरह काली गायों का हाल है. उन्हें भी खोज-खोजकर लोग खिलाते रहते हैं. काली बिल्लियां भी इसी तरह खूब दावत उड़ाती हैं. शनि की कृपा और जीवन में आगे बढ़ने के लिए लोग काले घोड़े की नाल की अंगूठियां पहनते हैं. उन्हें अपने घर के आगे लटकाते हैं.
इसके अलावा काले देवताओं जैसे शनि, भैरव, काली आदि से भी लोग बहुत डरते हैं. अक्सर इनके कोप से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. एक तरफ तो हमारे देश में काला होना इतना बड़ा अभिशाप है कि सब के सब गोरा होना चाहते हैं. सांवली लड़कियों को दूल्हे मुश्किल से मिलते हैं.
हमारे देश में गोरा होना बड़े सम्मान की बात है. इसलिए गोरेपन की क्रीम की भारी मांग है. दक्षिण के राज्यों में यह मांग बहुत ज्यादा है. सिर्फ स्त्रियां ही नहीं, बल्कि पुरुष भी बड़ी संख्या में इनका इस्तेमाल करते हैं.
दूसरी तरफ, बेचारे ये काले जानवर हमारी तकलीफों को दूर करने का माध्यम माने जाते हैं.हर टोने-टोटके और अंधविश्वास को दूर करने के लिए इनकी मांग होती है. इसलिए जो चीजें इन्हें खिलाना मना होता है, वे चीजें भी इन्हें खिलायी जाती हैं. जैसे कि कुत्तों को नमक और मिठाई नहीं खिलायी जाती है. तला हुआ नहीं खिलाया जाता है. लेकिन, ये जानवर तो मनुष्य की तरह जानते नहीं कि इन्हें क्या खाना है, क्या नहीं खाना, जबकि बहुत से मनुष्य वाले रोग इन्हें होते हैं.
शायद ऐसा ही हुआ होगा. कुछ दिनों बाद जब नजर उस मोटे तगड़े कुत्ते पर पड़ी, जो एकदम सूख गया था. और उसकी चमकीली देह घावों से भरी थी. क्या पता इसे डायबिटीज हो गयी हो. मैंने सोचा. इसी तरह काले घोड़ों के बारे में कहा जाता है. उनके खुरों में इतनी बार नाल ठोकी और निकाली जाती है कि वे घायल होते रहते हैं. काले घोड़े की नाल की लोगों में भारी मांग जो ठहरी.
वैसे बिना किसी स्वार्थ के हमें अगर इन जानवरों के लिए कुछ करना पड़े, खिलाना-पिलाना पड़े तो शायद हम कुछ ना करें. मगर जैसे ही किसी ग्रह के बुरे प्रभाव, किसी जादू-टोने के दुष्प्रभाव को दूर करना हो, तो हम फौरन इन्हें ढूंढ़ने निकल पड़ते हैं. घर के आसपास न मिलें तो न सही, दूर ही मिल जायें, तो दूर ही सही. फिर तरह-तरह के पकवान इन्हें खिलाते हैं, जिनकी जरूरत इन बेचारों को नहीं होती.
अपने दुखों और डरों को दूर करने के लिए कम-से-कम हमें इन काले जानवरों की सेहत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. हमारे दुखों को दूर करने के लिए इन्हें तरह-तरह के रोग सौंपना कहां तक जायज है?
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