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जारी रहें हमारी कोशिशें
अजय साहनी रक्षा विशेषज्ञ दो दिन बाद ही 26/11 (मुंबई हमला 2008) की उस दर्दनाक घटना की बरसी है. ऐसे समय में इस खबर का आना कि मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद को लाहौर हाइकोर्ट ने रिहा कर दिया है, भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है. यहां तक कि बीते नौ-दस महीनों से […]
अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ
दो दिन बाद ही 26/11 (मुंबई हमला 2008) की उस दर्दनाक घटना की बरसी है. ऐसे समय में इस खबर का आना कि मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद को लाहौर हाइकोर्ट ने रिहा कर दिया है, भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है. यहां तक कि बीते नौ-दस महीनों से पाकिस्तान में नजरबंद सईद पर से नजरबंदी हटाने के साथ ही, उसके कहीं भी आने-जाने पर लगी रोक भी हटा ली गयी है. निश्चित रूप से यह खबर अच्छी तो नहीं है, लेकिन इससे इतना घबराने की भी जरूरत नहीं है.
पाकिस्तान भले रोता रहे, लेकिन ऐसे आतंकियों पर वह कोई कार्रवाई करेगा, इसकी उम्मीद करना बुनियादी तौर पर गलत है. क्योंकि, हाफिज सईद ने अकेले उस हमले को अंजाम नहीं दिया, बल्कि इसमें पाकिस्तान का आइएसआइ भी शामिल था. इसके सबूत भारत और अमेरिका दाेनों के पास हैं.
अगर पाकिस्तान की स्टेट एजेंसी किसी के जरिये कोई गलत काम करा रही है, तो वह उन्हीं के खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे कर सकती है? तो यह सोचना कि पाकिस्तान अपने आतंकियों को सजा देगा, हमारे लिए उचित नहीं होगा. कहने का अर्थ है कि भारत तब सुरक्षित नहीं होगा, कि पाकिस्तान अपने आतंकियों के खिलाफ एक्शन ले.
बल्कि, भारत तब सुरक्षित होगा, जब वह खुद अपनी सुरक्षा करेगा. दुश्मन की किसी भी कार्रवाई से अपनी सुरक्षा की उम्मीद बेमानी है. और अगर पिछले एक-डेढ़ दशक की पाक-सक्रियता देखें, तो यह साफ नजर आता है कि पाकिस्तान हमेशा भारत को दुश्मन मानता रहा है और भारत को नुकसान पहुंचाना अपना कर्म समझता है. इसलिए पाकिस्तान से कोई उम्मीद हम न ही रखें, तो बेहतर है.
जिस तरह से कुछ बयान आये हैं कि अगर सईद रिहा होता है, तो पाकिस्तान को कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है, इस पर यकीन करना भी गलतफहमी पालना है. गलतफहमी इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में पश्चिमी फौजी दस्तों को भी नुकसान पहुंचाया है. पश्चिम द्वारा अफगानिस्तान को और उसकी सरकार को दिये जा रहे करोड़ों-अरबों की मदद को पाकिस्तान सीधा नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय नजरें िसर्फ भारत के हवाले से ही टेढ़ी नहीं होंगी. इतना सब होने के बाद भी जब पाकिस्तान पर कोई ऐसा प्रतिबंध नहीं लगा, तो फिर हाफिज सईद की रिहाई से कुछ भी नहीं होनेवाला है.
अमेरिका ने तो 2008 में ही हाफिज सईद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था और उस पर दस मिलियन डॉलर का ईनाम भी रखा हुआ है. यानी कि कोई भी सईद के खिलाफ सबूत पेश करे और दस मिलियन डॉलर का ईनाम ले जाये. सोचिये, लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारनेवाला अमेरिका ऐसा कह रहा है. लेकिन, आज तक क्या कुछ हुआ?
साल 2008 से ही हाफिज सईद एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित है, इसके बावजूद भी वह पाकिस्तान में खुलेआम घूमता रहा है. भारत ने बहुत कोशिश की और अब रिहाई के बाद भी कोशिशें होनी चाहिए कि सईद के खिलाफ सबूत पेश किये जायें. लेकिन फिर वही सवाल है कि किया भी क्या जा सकता है?
वह तो पाकिस्तान में बैठा है, उसे भारत तो लाया नहीं जा सकता! अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर इस बात के लिए दबाव भी बनाया जाये, तो भी कुछ नहीं होनेवाला है. दरअसल, कोई भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी सईद को गिरफ्तार नहीं कर सकती, क्योंकि उसे पकड़ने के लिए उस स्थानीय सहयोग की जरूरत पड़ेगी, जहां वह रहा रहा है. स्टेट पुलिस और एजेंसी अगर उसे पकड़कर इंटरपोल को दे देती है, तब तो मुमकिन है.
लकिन पाकिस्तान ऐसा क्यों होने देगा, जबकि खुद उसके ही जुडिशियल रिव्यू बोर्ड ने पाक सरकार से यह कहकर उसकी रिहाई सुनिश्चत करायी है, कि उसके खिलाफ जब कोई आरोप नहीं है, तो उसे रिहा किया जाये और उस पर से सारे प्रतिबंध हटा लिये जायें. पाकिस्तान को तो बीते आठ साल में बेचारे सईद के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिला, जिससे कि यह सिद्ध हो सके कि वह मुंबई हमले का दोषी है. ऐसे में पाकिस्तान से किसी भी तरह की उम्मीद बेमानी है, भले ही वह खुद भी आतंकवाद से पीड़ित होने का रोना रोता रहे.
यह हमारी कामयाबी है कि 26/11 के बाद आज तक देश में इतना बड़ा हादसा नहीं हुआ. हमने अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाया है. उस घटना के बाद सुरक्षा से जुड़े लोगों ने कहा था कि अब ऐसा कभी नहीं होगा.
लेकिन, इन बीते आठ-नौ सालों में पाकिस्तान की तरफ से कई छोटे-छोटे हमले जरूर हुए. दरअसल, सुरक्षा को लेकर कई पहलें हुई थीं, लेकिन उन पर अमल नहीं किया गया. इसका अर्थ यह हुआ कि आज हमें अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत है. कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ है, लेकिन उसकी दूसरी वजहें हैं.
हमारा समाज अब जागरूक हुआ है, और अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के बहलावे में युवा नहीं आ रहे हैं. फिर भी मैं कहूंगा कि अब हम तकनीक का सही इस्तेमाल करना सीखें और अपनी सैन्य क्षमताओं का विस्तार करें. तभी संभव है कि देश के किसी भी कोने में छोटे-से-छोटे हादसों को भी हम होने नहीं देंगे. मुंबई हमले में हताहत और आहत लोगों के प्रति यही एक अच्छी श्रद्धांजलि होगी.
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