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गरीब नेताओं के नाम एक खत

।। सत्य प्रकाश चौधरी।। (प्रभात खबर, रांची) मेरे प्रिय गरीब नेताओ, बचपन से सुनता आया था कि गरीबी अभिशाप है. इन्सानियत के चेहरे पर दाग है. मगर आप लोगों ने मेरी धारणा बदल दी है. इन दिनों, जिस तरह आप लोग हेलीकॉप्टर और चार्टर्ड विमानों में उड़ते हैं और जमीन पर उतरते ही गरीबी की […]

।। सत्य प्रकाश चौधरी।।

(प्रभात खबर, रांची)

मेरे प्रिय गरीब नेताओ,

बचपन से सुनता आया था कि गरीबी अभिशाप है. इन्सानियत के चेहरे पर दाग है. मगर आप लोगों ने मेरी धारणा बदल दी है. इन दिनों, जिस तरह आप लोग हेलीकॉप्टर और चार्टर्ड विमानों में उड़ते हैं और जमीन पर उतरते ही गरीबी की दुकान सजा लेते हैं, उसके बाद अपनी धारणा बदलने के सिवाय चारा ही क्या रह जाता है? कोई बचपन में चाय बेचने के किस्से सुना रहा है, तो कोई दावा कर रहा है कि वह चाय के साथ डंडा बिस्कुट भी बेचता था, तो एक जनाब बता रहे हैं कि कभी उनके पास दांत का इलाज कराने के पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने पूरा दांत ही उखड़वा लिया था.

जनता आपकी गरीबी का हाल सुन कर जज्बाती हुई जा रही है. भूल जा रही है कि वह भी गरीब थी, और उसका बड़ा हिस्सा अब भी गरीब है. इस मुल्क में 60-65 साल पहले पैदा हुआ 100 में 90 आदमी गरीब ही था. मेरे दादा जी भी गरीब थे, पर गरीबी को ढक -तोप कर रखते थे. चौके में सत्तू खा रहे हों और पता चल जाये कि दरवाजे पर कोई मिलने आया है, तो नीम का सींका लेकर दांत खोदते हुए निकलते थे, ताकि उसे लगे कि भरा-पूरा खाना खाया है, सत्तू खा कर काम नहीं चलाया है (उस जमाने में सत्तू का वर्गीय चरित्र अलग था, वह गरीबों का पेट भरने की चीज थी). रिश्तेदारी में जाते समय जूते गमछे में बांध कर कई किलोमीटर नंगे पांव पैदल चले जाते थे और रिश्तेदार के गांव से कुछ पहले जूते पहन लेते थे.

करते भी क्या, एक जोड़ जूता पांच-पांच बरस चलाना पड़ता था. लेकिन, इन सबके बावजूद उस किसान ने कभी गरीब कहलवाना पसंद नहीं किया, सरकार से खैरात नहीं लेनी चाही. पर, अब जमाना बदल गया है. यह बेचने का समय है. यह ओएलएक्स और क्विकर डॉट कॉम का समय है. बेचो.. बेचो.. बेचो.. अपने घर और अपने जीवन को खंगालो. खोजो, और जो कुछ भी बेचने लायक मिल जाये उसे बेच डालो. बाप-दादा की निशानियां बेचो. अपना इल्म और हुनर बेचो. अपनी रूह और जिस्म बेचो. अपने सीने की चौड़ाई बेचो. इतने पर भी न रुको.. बेशर्म बनो. नये जमाने की जबान में कहें तो ‘बोल्ड’ बनो. अपनी गरीबी और अपना ददरे-गम बेचो. डिजाइनर कपड़े पहन कर बचपन के फटे हुए कुरते को बेचो.

टाटा सफारी में बैठ कर भैंस की पीठ बेचो. लोगों को सपने बेचो. मैं जानता हूं, आप जो भी बेचेंगे, बिकेगा. देश को पहले ही बाजार बना चुके हैं आप. जिनकी जेब में पैसा है, उनमें सबकुछ खरीद लेने का उन्माद है और जो ठनठन गोपाल हैं, वे भी विंडो शॉपिंग में मोक्ष पा रहे हैं. बाजार का मंत्र है- जो दिखता है, वह बिकता है. और, दिखाने के लिए आपके पास टीवी है, अखबार है. सोशल मीडिया है, इश्तेहार है. लेकिन मैं अब भी कहूंगा- बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं.

-आपका एक ‘ना-वोटर’

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