कैसी विडंबना है कि पृथ्वी पर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना आज अपने स्वार्थ और लालच में इतनी अंधी हो चुकी है कि अपने ही हाथों अपने संतानों के जीवन की संभावनाओं को नष्ट कर रही है.
चाहे वह जीवन के तीन आवश्यक तत्वों, यानी जल, जमीन और जंगल हों या फिर नैतिक मर्यादाएं और आचरण. बौद्धिक और वैज्ञानिक विकास के चलते मानव ने समय, परिस्थितियों के अनुसार भौतिक सुख सुविधाओं के साधनों में तो आशातीत वृद्धि कर ली है, जीवन की रफ्तार से भी तालमेल बिठा लिया है और शारीरिक बीमारियों, दोषों और रोगों से लड़ने की क्षमताओं का विकास करके जीवन की संभावनाओं को भी सुनिश्चित-सुरक्षित कर लिया है, लेकिन जीवन की गुणवत्ता को सुनिश्चित नहीं कर पाया. समय है जागने, गलतियों को सुधारने और भावी पीढ़ी को श्रेष्ठ जीवन का उपहार देने का.
पूनम पाठक, कोलकाता