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आपके हम ऋणी है !
मेहरबानियों का ऋणी हर कोई होता है. बहुत दिन नहीं हुए जमाना गुजरे, जब कर्ज में डूबा व्यक्ति सामाजिक तिरस्कारों का हकदार था. मगर अब देश बदल चुका है. इंसान की हर जरूरत कर्ज पर आ रुकी है. क्योंकि कर्ज ने ही तो सही सामाजिक प्रतिष्ठा दिलायी है. शिक्षा, घर, बिजनेस-व्यापार, हर कदम पर कर्ज […]
मेहरबानियों का ऋणी हर कोई होता है. बहुत दिन नहीं हुए जमाना गुजरे, जब कर्ज में डूबा व्यक्ति सामाजिक तिरस्कारों का हकदार था. मगर अब देश बदल चुका है. इंसान की हर जरूरत कर्ज पर आ रुकी है.
क्योंकि कर्ज ने ही तो सही सामाजिक प्रतिष्ठा दिलायी है. शिक्षा, घर, बिजनेस-व्यापार, हर कदम पर कर्ज हमारे साथ खड़ा है. प्रगति के सपनों ने हमें ऋणी बना दिया. देशी मुद्रा बैंक का कर्ज हो या जापान का शून्य ब्याज वाला कर्ज, कर्ज तो आखिर कर्ज ही होता है. क्या ऋण सुलभ समाज का निर्माण ही सवा सौ करोड़ लोगों की आर्थिक आजादी और समानता का नायाब तरीका है? आज अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी गर्व से कह सकता है कि आपके हम ऋणी हैं.
एमके मिश्रा, रातू, रांची
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