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लड़ने से पहले हार गयी कांग्रेसी सेना!

।।राजीव रंजन झा।। (संपादक, शेयर मंथन) चुनाव सर्वेक्षणों में कांग्रेस के लिए क्या भविष्यवाणियां हो रही हैं, उन्हें जाने दीजिए. अगर आप खुद कांग्रेस के नेताओं के बात-व्यवहार को देखें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में जीतने की बात वे सोच ही नहीं रहे. जिन पत्रकारों पर भाजपा […]

।।राजीव रंजन झा।।

(संपादक, शेयर मंथन)

चुनाव सर्वेक्षणों में कांग्रेस के लिए क्या भविष्यवाणियां हो रही हैं, उन्हें जाने दीजिए. अगर आप खुद कांग्रेस के नेताओं के बात-व्यवहार को देखें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में जीतने की बात वे सोच ही नहीं रहे. जिन पत्रकारों पर भाजपा से सहानुभूति का ठप्पा लगा है, वे तो मौजूदा माहौल को भाजपा के पक्ष में मानेंगे ही, मगर चाहे निष्पक्ष पत्रकार हों या कांग्रेस समर्थक, वे भी मान बैठे हैं कि इस चुनाव का फैसला पहले ही हो चुका है. हाल में मैंने दो वरिष्ठ पत्रकारों से उनकी टिप्पणियां लीं. दोनों की बात इस पर केंद्रित हो गयी कि भाजपा की सरकार बनने पर उसे क्या करना चाहिए! इनमें से एक को कांग्रेस का करीबी माना जाता है. उनसे कांग्रेस के घोषणापत्र पर पूछा, तो कहने लगे कि दिवंगत की बात छोड़ो, जो नवजात शिशु आनेवाला है उसके नैन-नक्श देखो!

हाल ही में पेश कांग्रेस के घोषणापत्र के बारे में ज्यादातर टिप्पणियां अनुत्साही ही मिलीं. इस पूरे घोषणापत्र को पढ़ने से यह स्पष्ट दिखता है कि इसमें नयी सोच की कमी है और बीते 10 वर्षो की थकान है. ऐसा लगता है कि हाल के जनमत-सर्वेक्षणों के मद्देनजर पार्टी ने केवल एक औपचारिकता निभाने के लिए इसे जारी कर दिया है. समस्या घोषणापत्र के वादों में नहीं है. समस्या यह है कि आप इसकी हर बात पर पलट कर पूछ सकते हैं- साहब, यह काम पिछले 10 सालों में क्यों नहीं किया?

अर्थव्यवस्था के नजरिये से इसमें सबसे अहम बात यह कही गयी है कि कांग्रेस अगले तीन वर्षो के भीतर 8 प्रतिशत से अधिक विकास दर हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसे अगले दो दशकों तक बनाये रखा जायेगा. यह बात सुन कर सबसे पहले तो यही ध्यान में आता है कि जिस दल के एक दशक के राज में विकास दर 5 प्रतिशत से भी नीचे आ गयी हो, उसे यह वादा या दावा करने में जरा भी हिचक नहीं हुई!

कांग्रेस अपनी इस नाकामी को आंकड़ों की बाजीगरी से छिपाना चाहती है. इसने कहा है- ‘पिछले 10 वर्षो में यूपीए सरकार ने तेजी से आर्थिक विकास पर जोर दिया है और हम काफी हद तक सफल भी रहे हैं. हम एनडीए सरकार की 5.9 प्रतिशत वार्षिक आर्थिक विकास दर की तुलना में प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करने में सफल हुए हैं. यह एक वास्तविकता है कि यूपीए की आर्थिक विकास दर तेजी से बढ़ी है, भारतीय इतिहास में पहले कभी भी ऐसा नहीं देखा गया है. यूपीए सरकार के दौरान जो विकास हुआ वह अतुलनीय है.’

एक नजर : साल 1997-98 में जीडीपी विकास दर 4.3 प्रतिशत थी. वाजपेयी सरकार के छह वर्ष पूरे होने के बाद 2003-04 में विकास दर 7.97 प्रतिशत पर थी. बीच के वर्षो में कुछ झटके भी लगे थे, क्योंकि साल 2000-01 के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल हुई थी. मगर वाजपेयी सरकार ने इन झटकों से अर्थव्यवस्था को संभाल लिया.

यूपीए सरकार बार-बार अपने 2004-09 के प्रथम कार्यकाल में शानदार विकास दर का हवाला देती है. इन पांच वर्षो की औसत विकास दर 8.4 प्रतिशत रही है. इनमें से तीन वर्षो के दौरान 9 प्रतिशत से भी ज्यादा विकास दर हासिल हुई. इस त्वरित विकास के लिए एनडीए शासन से मिले मजबूत आधार को श्रेय देना चाहिए. अर्थव्यवस्था की विकास दर सामानों से लदी मालगाड़ी की तरह होती है. यह रफ्तार पकड़ने में भी समय लेती है और ब्रेक लगाने में भी. एनडीए ने यूपीए को तेज रफ्तार से चलती गाड़ी सौंपी और पांच साल मजे में निकल गये. लेकिन एक पर एक हुए घोटालों से यूपीए-2 के शासन में हंगामा मचा. देश की विकास दर 2011-12 में 6.69 प्रतिशत पर आ गयी. 2012-13 में केवल 4.47 प्रतिशत रही और इस साल यानी 2013-14 के लिए अग्रिम अनुमान 4.86 प्रतिशत का है. क्या पता यह अग्रिम अनुमान भी बाद में उसी तरह घटाना पड़े, जिस तरह 2012-13 के लिए घटाया गया. इसलिए जब कांग्रेस का घोषणापत्र कहता है- ‘कांग्रेस की अगुवाई में अगली सरकार का सबसे बड़ा लक्ष्य 8 प्रतिशत आर्थिक विकास दर हासिल करना है’, तो इस पर रत्ती-भर भी भरोसा नहीं होता.

महंगाई इस सरकार के विरुद्ध आम आदमी का सबसे बड़ा इल्जाम है. कीमतों में स्थिरता के मसले पर घोषणापत्र में कहा गया है कि एक विकासशील अर्थव्यवस्था में हमें यह स्वीकारना ही होगा कि जब हमारा लक्ष्य उच्च विकास दर पाना है, तो यह स्वाभाविक है कि महंगाई में थोड़ा वृद्धि हो सकती है. लेकिन यह घोषणापत्र यह नहीं बताता कि 2009 के घोषणापत्र में 100 दिनों में महंगाई घटाने के वादे का क्या हुआ!

इसमें वादा किया गया है-‘हम अपने ढांचागत विकास का पुनर्निर्माण करेंगे और इसमें नये ढांचागत आयामों को व्यापक रूप से शामिल करेंगे. हम ऐसे प्रतिमान एवं मॉडल को लागू करेंगे, जो प्रामाणिक हों.’ तो सवाल उठता है कि क्या बीते 10 वर्षो में यूपीए ने अप्रामाणिक मॉडल पर काम किया? कांग्रेस ने इस बार भी 100 दिनों का एजेंडा पेश किया है. स्वाभाविक है कि इससे एक बार फिर पांच साल पहले के उस वादे की याद आ जायेगी कि 100 दिनों में महंगाई कम करेंगे.

इस ताजा एजेंडे में कहा गया है कि 100 दिनों के भीतर संसद में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पेश किया जायेगा और एक वर्ष के भीतर पारित कराया जायेगा. जीएसटी लागू करने की कवायद वर्षो से चल रही है. कांग्रेस इसे लागू नहीं करा पाने के लिए विपक्ष के असहयोग को दोष देती रही है. लेकिन यदि कांग्रेस दोबारा सत्ता में आयी, तो इस बार विपक्ष का सहयोग लेने के लिए नया क्या करेगी? विपक्ष की आपत्तियों को दूर करने के लिए इसने बीते वर्षो में क्या किया?

कांग्रेस के 100 दिनों के एजेंडे के मुताबिक वह सुनिश्चित करेगी कि लोकसभा के गठन के पहले वर्ष में ही नयी प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू हो. लेकिन उसने यह नहीं बताया कि साल भर पहले ही लगभग सारी तैयारी हो जाने के बावजूद वह इसे लागू क्यों नहीं करा सकी? कांग्रेस यदि चाहती तो 2013 के बजट के साथ ही इसे पारित करा सकती थी. डीटीसी की तैयारी तो 2009 के आम चुनाव से भी पहले से ही चल रही थी. लेकिन प्रत्यक्ष कर के कानून में आमूलचूल बदलाव लाने का यह प्रयास प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम का वॉलीबॉल बन गया.

एक दिलचस्प वादा है कि युवाओं के लिए 10 करोड.नयी नौकरियों और उद्यमशीलता के सृजन हेतु कांग्रेस एक विस्तृत जॉब एजेंडे को लागू करेगी. अच्छा होता कि कांग्रेस इस वादे के साथ यह भी बताती कि बीते 10 वर्षो में रोजगार सृजन का उसका रिकॉर्ड कैसा रहा है. मगर ये जो आंकड़े हैं, उन्हें कांग्रेस शर्म के मारे सामने रख ही नहीं सकती!

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