राजनयिक दायरों में एक मजाक चलता है कि दुर्दिन में चीन कहेगा- ‘सीमा-विवाद की बात भूल कर आइये क्षेत्रीय विकास की बातें करें’, लेकिन सौभाग्य सामने दिखे तो उसके बोल होंगे- ‘सीमावर्ती सारी जमीन प्राचीन काल से हमारी है, आप हटें तो ही क्षेत्रीय सहयोग की बात संभव है.’ चीन के पड़ोसी देशों की संख्या करीब दो दर्जन है और इनमें से हर पड़ोसी देश के साथ उसका सीमा-विवाद है.
लेकिन प्राचीन साम्राज्य के समय इस या उस देश का फलां क्षेत्र हमारा था- यह तर्क चीन तभी देता है, जब उसे वैश्विक परिदृश्य अपने सैन्य और व्यावसायिक विस्तार के लिए अनुकूल लगे. सिक्किम और भूटान से लगते सीमा-क्षेत्र में अपने सैनिक जमावड़े और निर्माण-कार्य को लेकर भारत के प्रति उसके नागवार रुख को इस नुक्ते से समझा जा सकता है. भूटान से लगते डोकलम क्षेत्र में भारतीय टुकड़ी चीनी धमकियों की परवाह न करते हुए डटी हुई है. अपनी धमकी को बेअसर होता देख चीन एक मनोवैज्ञानिक युद्ध पर उतर आया है, जिसका मोर्चा चीनी मीडिया ने संभाला है.
डोकलम क्षेत्र के विवाद को नया रुख देते हुए चीनी मीडिया ने भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को निशाने पर लिया है. चीनी मीडिया का तर्क है कि भूटान के सीमा-क्षेत्र की रक्षा के नाम पर अगर भारतीय फौज डोकलम में डटी हुई है, तो फिर चीनी फौज भी कश्मीर में डेरा जमा सकती है, क्योंकि दो देशों (चीन और भूटान) के बीच जैसे डोकलम विवाद का मसला है, वैसे ही कश्मीर का मसला भी भारत और पाकिस्तान के बीच उलझा हुआ है. दरअसल ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद चीन को दिख रहा है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति-संतुलन नये सिरे से कायम किया जा सकता है. जनवरी में चीनी विदेश विभाग ने अपने एक श्वेतपत्र में कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश आर्थिक जरूरतों के लिए चीन और सैन्य जरूरतों के लिए अमेरिका की तरफ झुकते हैं.
यह मान कर कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका अपनी सैन्य प्राथमिकताओं से पीछे हटेगा, चीन इलाके में सैन्य-दबदबा कायम करने पर उतारू है. उसकी ‘वन बेल्ट वन रोड’ और ‘पर्ल ऑफ स्ट्रिंग योजना’ इलाके की सैन्य घेरेबंदी की रणनीति है. भारत ने चीन की इन दोनों रणनीतिक पेशकदमी से खुद को और भूटान जैसे साथी देशों को अलग रखने की कोशिश की है. सो, चीन इलाके में चले आ रहे यथास्थितिवाद को चुनौती देते हुए अब कश्मीर तक पर अपनी दबिश बनाने की कोशिश में है. चीन की चालाकी की काट के लिए भारत को कूटनीतिक स्तर पर सक्रियता तीव्र करने तथा रूस और अमेरिका को साधने की जरूरत है.