वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
आज बहुत बारिश हुई है. अभी थोड़ी देर पहले ही थोड़ी कम हुई है. बरसात से इतना डर नहीं लगता. मैं डरता हूं तो उसके साइड और ऑफ्टर इफेक्ट्स से. जैसे आज हुआ. बरसात शुरू हुई कि बत्ती चली गई. मोहल्ले के सब-स्टेशन और शहर कंट्रोल फोन मिलाया. कई जाननेवालों को भी फोनियाया. स्विच ऑफ या फिर एंगेज. सोचा, लग भी गया तो इतनी बारिश में सुनेगा कौन? यों भी बिजली के तमाम अफसर जल्दी सोते हैं, कान में रूई ठूंस कर या नींद की दवा खाकर.
इन्वर्टर तो है. बत्ती आने में तो तीन घंटा लग सकता है. हो सकता है सारी रात न आये. तब तक इन्वर्टर भी टाटा कर गया तो? इसी चिंता के कारण नींद नहीं आ रही है. इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं.
बाहर बारिश शायद रुक गयी है. टॉर्च लेकर बाहर निकलता हूं. मुझे खुशी हुई. बारिश रुकने से ज्यादा इस बात पर कि अब थोड़ी देर में बत्ती आ जायेगी. बत्ती आ गयी, लेकिन नींद फिर भी नहीं आ रही है. बाहर सड़क पर पानी भरा है. घर के अंदर तक घुस आया है बारिश का पानी. तार पर लटकी मेरी बनियाइन हवा से उड़ कर नीचे गिर गयी है. अरे मेरी नयी चप्पल का जोड़ा? पानी दोनों को ही बहा ले गया.
सोचता हूं उन लोगों का क्या हाल होगा, जिनकी जिंदगी मेरे घर से थोड़ी दूर स्थित हाइवे के चौड़े डिवाइडर पर बीतती है. दिन भर के थके-हारे मजदूर और रिक्शेवाले ईटों के कामचलाउ चूल्हे पर भोजन बनाते हैं. पेड़ों की सूखी टहनियां-पत्तियां, टायर, घास-फूस और दुकानदारों द्वारा फेंके गत्ते के डिब्बे का ईंधन बनता है. आज इनका भोजन कैसे बना होगा? क्या भूखे सोये होंगे?
रात के दो बज चुके हैं. देखूं जाकर. लेकिन निकलूं तो कैसे? सड़क पर छोटे-मोटे गड्ढे भी हैं. किसी में पैर पड़ गया या फिसल गया तो? खुद पर हंसी आ गयी.
आज की बारिश तो सर्वत्र शहर में हुई होगी. चप्पा-चप्पा डूबा होगा. अमां होगा. यों कबाड़ा करने में हम लोग भी कम नहीं. कारें खड़ी करने के लिए नालियां पाट दी हैं. घर का कूड़ा बड़े नाले में डाल दिया जाता है. नाला साल में कभी एक-आध बार साफ होता है. कागज पर तो हर हफ्ते साफ होता होगा.
पानी में कोई छप-छप करता हुआ आ रहा है. टॉर्च जलाता हूं. देखता हूं, एक कुत्ता है. मुझे देख कुत्ता रुक जाता है. शायद मुझे अपना साथी समझ रहा है या हमदर्द. आज इसे भी कुछ खाने को नहीं मिला. भूखा है. वो दुम हिलाता है. मैं अंदर जाता हूं. मेरे हाथ में रोटी देख कर उसकी आंखें चमकने लगती हैं. उसने पलक झपकते रोटी उदरस्थ की. बड़ी संतुष्टि महसूस हो रही है. तभी डर लगा कि ऐसा न हो कि बिजली चली जाए और साथ में नींद भी. और बिजली चली गयी.