राजनीतिक दल राजनीति को व्यवसाय का रूप दे रहे हैं. राजनीतिक दलों में चल रही वंशावली एक तरह से भारतीय लोकतंत्र को मुट्ठी भर लोगों में कैद करती जा रही है. वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय के आधार पर पृथकतावाद की राजनीति करते हैं और सत्ता में आने पर खुद को लोकतंत्र का मालिक समझते हैं. ऐसी विचारधारा स्वच्छ भारत व भारतीयता के लिए कलंक है.
हाल में नोटबंदी के संदर्भ में कहा गया कि भ्रष्टाचार और कालाधन का सफाया होगा. कितना कालाधन आया और कितने भ्रष्टाचारी पकड़े गये, देश को बताना सरकार की जिम्मेवारी है. अब कैशलेस के नाम पर धनाढ्य वर्गों के बीच मेगा ड्रा, कैशलेस भुगतान पर इतना-उतना छूट, यह कहां तक सार्थक है?
राम मोहन मुर्मु, पाकुड़