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ठंड के आलम में गर्मागर्म पेय

जाड़े में गर्म चाय-कॉफी अगर हमारे-आपके हाथ लग जाये, तो क्या कहने, लेकिन जिस तेजी से दौर बदल रहा है, सर्दियों के पेय पदार्थ भी बदल रहे हैं. सर्दियों के पेय के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत… एक जमाना था, जब रेल का सफर करनेवालों के कानों में गूंजती […]

जाड़े में गर्म चाय-कॉफी अगर हमारे-आपके हाथ लग जाये, तो क्या कहने, लेकिन जिस तेजी से दौर बदल रहा है, सर्दियों के पेय पदार्थ भी बदल रहे हैं. सर्दियों के पेय के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
एक जमाना था, जब रेल का सफर करनेवालों के कानों में गूंजती थी आवाज फिरंतू चाय बेचनेवालों की- ‘चाय गरम चाय! गरमा-गरम चाय!’ और इसके साथ जुड़ी हैं बुजुर्गों की यादें मिट्टी की सोंधी गंध की, जो कुल्हड़ की चाय में रची-बसी रहती थीं. जमाने के साथ खान-पान भी बदलता है और ग्राहकों की पसंद भी बदल जाती है. कुछ बदलाव और हुआ, तो आगे चल कर दूर का सफर तय करनेवाली रेलों में चाय की जगह सूप ने ले ली. ‘गरम सूप गर्मा-गर्म सूप’ को कागज या थर्मोकोल के नन्हे कपों में परोसा जाता था और स्टेनलैस स्टील के जिस पात्र में इसे गर्म रखा जाता था, उसमें कोई स्थानीय महक नहीं होती थी.
सूप भी टमाटर का, वह भी पनीला होता था, जिसमें नमक और काली मिर्च छिड़क कर यह भ्रांति पैदा की जा सकती थी कि आप रेस्त्रां में भोजन की प्रतीक्षा कर रहे हों. आज कल कई जगह चाय-कॉफी बेचनेवाली स्वचालित मशीनों में सूप का विकल्प भी मौजूद रहता है.
अब तो दुकानों में झटपट सिर्फ गर्म पानी मिला कर तैयार किये जा सकनेवाले सूपों के पाउडर के पैकेट दिखने लगे हैं, जिनकी बिक्री ठंड के मौसम में काफी बढ़ जाती है.
ये सारी बातें हमारे मन में तब से घुमड़ने लगी हैं, जब से एक मित्र ने पेय के नाम पर पाये का शोरबा हमें पिलवाया. उन्होंने ‘क्या पियेंगे, ठंडा या गर्म?’ वाले जुमले के विकल्प बदल दिये थे. बोतल बंद कोल्ड ड्रिंक, जूस या शिकंजी-जलजीरा की जगह मौसम के माफिक शाकाहारी और सामिष ‘पानीय’ की व्यवस्था मेजबान ने की थी. पाये के शोरबे के साथ घर पर तैयार कद्दू का सूप भी था.
इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर हमें कभी नहीं मिल सका है कि सूप नुमा पेय ‘रसम’ के अनेक प्रकार क्यों दक्षिण भारत में ही लोकप्रिय हैं, जहां उत्तरी भारत की तुलना में ठंड कहीं कम पड़ती है? इसी भूभाग में गर्म तड़केदार छांछ ‘नीर कोझांबू’ का सेवन भी बड़े चाव से किया जाता है.
केरल में काषाय या जीरकम् से संपन्न गर्म पानी पीना-पिलाना आम है. शायद इसका कारण दूषित पानी से होनेवाले रोगों से बचाव की चिंता रही है. ‘क्यों अन्यत्र शोरबे तथा यखनी को पौष्टिक और स्वादिष्ट होने के बावजूद कमजोर मरीजों का पथ्य समझा जाता है? पेय के रूप में इन्हें मान्यता क्यों नहीं मिली है? सवाल वाजिब है.
कुछ वर्ष पहले तक कस्बाती हलवाई मंदी आंच में घंटों काढ़ने के बाद मलाई के लच्छों से सजा छुहारे वाला दूध बेचते थे. उन्हें कोई आवाज लगा ग्राहकों को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती थी. गुणकारी हल्दी मिश्रित दूध घर पर भी पिलाया जाता था, पर हर रोज नहीं- सिर्फ नजला-जुकाम भगाने के लिए असरदार घरेलू नुस्खे के रूप में. आज ‘लैते टर्मरिक’ का बड़ा शोर है, जिसे विदेशों में हल्दी की चाय के रूप में बेचा जा रहा है.
जड़ी-बूटी वाली चाय चाहे शुद्ध तुलसी की हो या काली अथवा हरी चाय पर आधारित हो, ये सब इधर काफी लोकप्रिय हुई हैं. फलों तथा फूलों के पुट वाली चाय भी अब गर्म पेय के रूप में प्यास बुझाने में हाथ बंटाने लगी है. शायद यह याद दिलाने की जरूरत है कि पुष्टि मार्गी मंदिरों में भगवान को ठंड के प्रकोप में भी मुदित रखने के लिए सौंठ वाली ‘शुंठी’ बनायी जाती है.
सार संक्षेप यह है कि इस गलतफहमी से छुटकारा पाइये कि गर्म का मतलब सिर्फ गरमा-गरम चाय या कॉफी है. इस मौसम में देसी-विदेशी सूपों का आनंद लें और उन पेयों का भी मजा चखें, जिन्हें हमने जाने क्यों भुला दिया है. इन सभी को घर पर आसानी से तैयार किया जा सकता है और कश्मीर के ‘कहवे’ और अरुणाचल की सत्तू-मक्खन वाली ‘चाय’ से लेकर काली मिर्च-टमाटर के ‘रसम’ तक सभी हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं!
रोचक तथ्य
सूप नुमा पेय ‘रसम’ के अनेक प्रकार दक्षिण भारत में लोकप्रिय हैं, जबकि उत्तरी भारत की तुलना में वहां ठंड कम पड़ती है.
पुष्टि मार्गी मंदिरों में भगवान को ठंड के प्रकोप में भी मुदित रखने के लिए सौंठ वाली ‘शुंठी’ बनायी जाती है.
कश्मीर के ‘कहवे’ और अरुणाचल की सत्तू-मक्खन वाली ‘चाय’ से लेकर काली मिर्च-टमाटर के ‘रसम’ तक सभी हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं!

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