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युवाओं की जिंदगी पी रहा नशा

विजय सिंह और नितिश युवा अपने कैरियर व पारिवारिक जिम्मेदारी से पूरी तरह से बेखबर नजर आ रहे हैं. यह कहना कतई गलत न होगा कि युवा पीढ़ी पथ भ्रमित नजर आ रही है. हालत यह है कि शराबबंदी होने के बाद धूम्रपान करने वालों की संख्या बढ़ी है. इसमें 13 साल से लेकर 20 […]

विजय सिंह और नितिश

युवा अपने कैरियर व पारिवारिक जिम्मेदारी से पूरी तरह से बेखबर नजर आ रहे हैं. यह कहना कतई गलत न होगा कि युवा पीढ़ी पथ भ्रमित नजर आ रही है. हालत यह है कि शराबबंदी होने के बाद धूम्रपान करने वालों की संख्या बढ़ी है. इसमें 13 साल से लेकर 20 वर्ष तक की आयु के ही युवा ज्यादा चिह्नित किये जा रहे हैं. नशे के दलदल में फंसने वालों में अच्छे-अच्छे परिवारों के बच्चे भी शामिल हैं, जो पढ़ने लिखने की उम्र मेें नशे के आदी होते जा रहे हैं. पटना में नशा मुक्ति को लेकर सरकारी अस्पताल सहित कई निजी संस्थान चल रहे हैं.

सुनसान जगहों पर नसों में उतारा जा रहा है स्मैक
इन दिनों जो नशा नसों में उतारा जा रहा है, उनमें स्मैक का नाम सबसे ऊपर है. लोगों का कहना है कि इस नशे की पुड़िया 50 से लेकर 200 व 500 रुपये में अलग-अलग मात्राओं में मुहैया करायी जाती है. जानकार बताते हैं कि सुनसान से रहने वाले स्थलों पर इसका व्यवसाय ज्यादा फल-फूल रहा है. पटना जंक्शन, मीठापुर बस अड्डा, स्लम बस्तियों में, स्मैक लेने वालों की अड्डेबाजी होती है. इसमें कदमकुआं में मोइनुल हक स्टेडियम के पास, दिनकर गोलंबर के पास, डोमखाना के पास, बुद्धा कॉलोनी में चीना कोठी, छज्जूबाग स्लम बस्ती, दीघा-अाशियाना रोड पर मौजूद स्लम बस्ती, गोसाईं टोला मेें स्मैक की बिक्री भी की जा रही है और लोग इसका सेवन भी कर रहे हैं.
इनके अलावा नामचीन पार्क भी इससे अछूते नहीं हैं, जहां स्मैक से लेकर नशे का इंजेेक्शन लेने वाले शौकीन भी हर वक्त आसानी से देखे जा सकते हैं. यह बात और है कि पुलिस द्वारा समय-समय पर छापे मारे जाते रहे हैं, पर एक दो गिरफ्तारी तक छापा सीमित रह जाता है और स्मैक के धंधे पर कोई आंच नहीं आती है.
नेपाल के रास्ते लाये जाते हैं बिहार में गांजा, भांग और स्मैक
राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में गांजा, भांग और स्मैक, ब्राउन सुगर की सप्लाइ नेपाल से की जाती है. नशा का कारोबार करने वाले बड़े अपराधी होते हैं जो कुछ पैसाें का लालच देकर यह धंधा कराते हैं. सप्लाइ के लिए नाबालिग बच्चे और लड़कियों का भी इस्तेमाल किया जाता है. भारत-नेपाल की सीमा खुली होने के कारण इसकी सप्लाइ बड़े आसानी से की जाती है. बिहार में नशे का सामान आने के बाद छोटे-छोटे धंधेबाज इसे अन्य जिलों में सप्लाई करते हैं.
बिहार के अंदर गांजा की सप्लाइ के लिए नदी के रास्ते का भी इस्तेमाल किया जाता है. नाव पर गांजा लोड कर एक जिले से दूसरे जिले में इसकी सप्लाई की जाती है. कई जगहों पर पान की दुकान में चुपके-चोरी बेची जाती है. कई धंधेबाज तो स्कूली लड़कों के जरिये बड़े-स्कूलों के सामने भी इसकी बिक्री कराते हैं. नशे की यह पुड़िया अलग-अलग दाम में मिलती है.
यही कारण है कि जो एक बार स्मैक ले लेता है वह नशे का आदी हो जाता है. इसके बाद छोटी-छोटी चोरी करके यह लोग अपने नशे का इंतजाम करते हैं. पटना पुलिस और डीआरआइ ने कई बार नशे के खेप को पकड़ा है. लेकिन यह लोग जमानत पर छूटने के बाद पुन: यह धंधा करने लगते हैं.
गांजा पीने वालों की बढ़ी है संख्या
दिशा संस्था की डायरेक्टर राखी का कहना है कि पहले अल्कोहल से जुड़ा मामला ज्यादा आता था. लेकिन शराबबंदी के बाद अल्कोहल से जुड़ा मामला कम हो गया है. अब स्मैक, सिगरेट, गांजा, व्हाइटनर, सुलेसन, ब्राउन सूगर का सेवन करने वाले ज्यादा आते हैं. संस्था की तरफ से उनकी काउंसेलिंग करायी जाती है.
इलाज भी होता है. इसमें एडल्ट और माइनर दोनों तरह के केस आते हैं. संस्था भी एेसे लोगों को लाती है, या फिर घरवाले भी लेकर आते हैं. बहुत से युवा है जिन्हें दिशा ने नशा से मुक्त कराया है. उनके चार सेंटरों पर औसतन 50 से 60 लोग आते हैं जो अल्कोहल या धूम्रपान के आदी हो चुके होते हैं.
स्कूलों तक बाइकर्स गैंग पहुंचा रहे नशा
नशे के कारोबारियों के लिए स्कूली बच्चे स्पेशल टार्गेट होते हैं. अपने दोस्तों पर रौब जमाने के चक्कर में वे बाइकर्स गैंग में शामिल हो जाते हैं और उनके खर्चे उठाने लगते हैं. उनकी संगति का असर यह होता है कि बाद में वे खुद भी नशे के आदी हो जाते हैं.
गैंग वाले पहले एक छात्र को नशे का आदी बनाते हैं और फिर दूसरे छात्रों को जोड़ने के लिए उकसाते हैं. इसके लिए उन्हें कुछ दिन तक फ्री में नशा का सामान देते हैं. छात्ों को जोड़ने पर बाद में उसे कमीशन भी देना शुरू कर देते हैं. इससे छात्र को नशा के साथ ही शौक पूरा करने के लिए पैसे मिलने लगते हैं.
नशीले पदार्थों की बिक्री में पुलिस वसूलती है पैसा
पुलिस के बड़े अधिकारी भले ही नशीले पदार्थ की ब्रिकी और रोकथाम पर बल देते हैं, पर निचले स्तर पर तस्वीर इसके उलट है. दरअसल थाने के लिए नशीले पदार्थ की सप्लाइ कमाई का जरिया है. गांजा, भांग की बड़ी खेप लाने वाले तस्कर पुलिस के लिए कमाऊ पूत की तरह हैं. पुलिस की सबसे अधिक आमदनी इसी से होती है. महकमे की बात करें तो अंदर खाने यह निर्देश होता है कि सिर्फ लाॅ एंड ऑडर्र मेंटेन रखें, बाकी मैनेज करें. मतलब कि थानेदार अपने ढंग से इस कारोबार को मैनेज करता है और इससे होने वाली इनकम को ऊपर तक भेजता है.
गलतफहमी
एक कश से लौट जाती है शरीर में जान
स्टेशन गोलंबर पर सुलेशन का नशा करने वाले 19 वर्षीय युवक गुड्डु ने कहा कि सुलेशन का एक कश लेने के बाद उसके शरीर में फिर से जान आ जाती है. अगर उसने नहीं लिया तो शरीर कमजोर लगता है और कुछ करने का मन नहीं करता है. इसके साथ ही सुलेशन का नशा लेने के लिए ज्यादा पैसे भी नहीं खर्च करने पड़ते है. पांच से दस रुपये में चार से पांच बार आसानी से काम हो जाता है.
इसके बाद उसे न भूख लगती है और न ही प्यास. उसका असर जैसे ही कम होता है, वैसे ही फिर से उसे ले लेता है. गुड्डु बताता है कि वह स्टेशन पर ठेला पर चाऊमीन बेचता था, लेकिन फिर उसकी दोस्ती उस इलाके के कुछ युवकों से हो गयी. इसके बाद उसे सुलेशन पीने की आदत हो गयी और चाऊमीन बेचने का रोजगार भी छूट गया.
केस 1 – रोहित कुमार
दरअसल चार साल पहले राेहित को उसके मामा ने दिशा नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया था. मामा ने संस्था को बताया कि रोहित के पिता काफी शराब पीते थे. पिता को नशा छुड़ाने के लिए रोहित भी शराब पीने लगा था. लेकिन कब वह नशे के गिरफ्त में आ गया उसे पता ही नहीं चला. जब वह संस्था में आया तो उसे विश्वास नहीं था कि वह नशा छोड़ पायेगा लेकिन इलाज के बाद उसका नशा छूट गया है और वह आज एक सफल व्यवसायी है.
केस 2 – मोहित कुमार
मोहित कुमार को गांजा पीने की लत थी. वह कई प्रतियोगी परीक्षा में पास करने के बाद भी साक्षात्कार देने की स्थिति में नहीं रहता था. उसमें उतना आत्मविश्वास नहीं था. परिवार वालों के दबाव में मोहित दिशा नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हुआ. उसका इलाज किया गया. अब उसने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया है. अब वह लोको पायलट के पद पर कार्यरत है.
केस 3 – राहुल सिंह
राहुल सिंह एक बड़ी कंपनी में एरिया मैनेजर के पद पर कार्यरत था. शराब पीने की वजह से उसकी नौकरी चली गयी. घरवालों के दबाव में वह दिशा नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हुआ. पहले तो उसका कहना था कि शराब का नशा वह नहीं छोड़ सकता था. वह जबर्दस्ती करने से नशा नहीं छोड़ेगा. लेकिन उपचार के बाद उसकी धारणा बदल गयी. आज वह कई कोचिंग संस्थानों में एक सफल शिक्षक के रूप में जाना जाता है.
अभिभावक और स्कूल प्राचार्य भी निभाएं अपनी जिम्मेदारी : डीआइजी
स्कूली बच्चों व युवाओं में बढ़ रही नशे की लत व नशे की सामग्री बेचने वाले तस्करों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई को लेकर डीआइजी सेंट्रल राजेश कुमार से सीधी बातचीत की गयी. उन्होंने कहा कि पुलिस नशे के कारोबारियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई कर रही है. स्कूल के प्रिंसिपल व अभिभावकों को भी इसे रोकने में अहम जिम्मेदारी निभानी होगी.
नशे के कारोबार को रोकने के लिए पुलिस क्या कर रही है?
डीआइजी : जैसा कि आपको मालूम है कि बिहार में शराब का नशा और उसके कारोबार पर पूर्णत: प्रतिबंध है. इसके अलावा गांजा, अफीम और स्मैक पर पहले से प्रतिबंध है. पुलिस हमेशा इन नशे के सामानों को पकड़ने के लिए छापेमारी करती है और कई बार बड़ी मात्रा में बरामद भी किया जा चुका है. पकड़े जाने वाले तस्करों के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई की जाती है.
नशे की लत
स्कूली बच्चों में कैसे बढ़ रही है?
डीआइजी : स्कूली बच्चों में भी नशे की लत बढ़ रही है, यह सही बात है. इसके लिए पुलिस हमेशा स्कूलों के आसपास नजर रखती है, ताकि कोई भी नशे का कारोबार उस इलाके में नहीं कर पाये. लेकिन, अगर बच्चे नशे की लत का शिकार हो रहे हैं, तो इसके लिए स्कूल के प्रिंसिपल व अभिभावक को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है. बच्चे के नशे की लत की सबसे पहले जानकारी उन्हें ही होती है. वे पुलिस को जानकारी दे सकते हैं, लेकिन आमतौर पर यह बातें पुलिस तक नहीं पहुंच पाती है, क्योंकि अभिभावकों को अपनी बदनामी की चिंता होती है.
नशे की लत से बच्चों को बचाने का क्या प्रयास हो?
डीआइजी: स्कूली बच्चों के नशे की लत का शिकार होने का मूल कारण उनकी दोस्ती है. बच्चों ने किससे दोस्ती कर ली है और वह स्कूल जाने के दौरान या उसके बाद क्या करता है, इस पर नजर रखने की आवश्यकता होती है. हो सकता है कि वह गलत संगति में पड़ गया और नशे का शिकार बन गया. गलत संगति बढ़ाने में स्मार्टफोन भी अहम भूमिका निभा रहा है. स्कूलों में हेल्थ मैनेजमेंट की भी पढ़ाई होनी चाहिए, ताकि उन्हें अपने शरीर के संबंध में जानकारी मिल सके.
नशे का शिकार होने वाले बच्चों या युवाओं को सुधारने या पुनर्वास के लिए क्या किया जाता है?
डीआइजी: नशा के प्रति सरकार व पुलिस संवेदनशील है. इसके लिए पुनर्वास केंद्र, चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी आदि बनी है. इसके अलावा शेल्टर होम व ड्रग एडिक्शन सेंटर आदि भी बने हुए हैं. जहां नशे के शिकार लोगों को सुधारने के लिए काउंसलिंग की जाती है.

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