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‘इंडियाज ब्यूटीफुल माइंड’ : पेन, कागज पर उकेरे गणित के अनबूझे सूत्र व तुलसी का मानस

भारत का सबसे खूबसूरत दिमाग और सही मायने में 20वीं सदी में गणित के गुरु डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह अब नहीं रहे. कुल्हड़िया काॅम्पलेक्स में किराये के एक फ्लैट के तीन कमरों में वे कुछ अनोखी विरासत छोड़ गये हैं. विरासत के रूप में पेन, कागज, डायरियां, तुलसी का मानस और कुछ दूसरी किताबें पड़ी […]

भारत का सबसे खूबसूरत दिमाग और सही मायने में 20वीं सदी में गणित के गुरु डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह अब नहीं रहे. कुल्हड़िया काॅम्पलेक्स में किराये के एक फ्लैट के तीन कमरों में वे कुछ अनोखी विरासत छोड़ गये हैं. विरासत के रूप में पेन, कागज, डायरियां, तुलसी का मानस और कुछ दूसरी किताबें पड़ी रह गयीं.एक पड़ोसी ने नम आंखों से कहा कि कभी मुझ पर गुस्सा भी करते तो वे तेज आवाज के साथ-साथ गणित के फॉर्मूले बाेल जाते. ये गणित के सूत्र ही सही मायने में उनकी भाषा थे. दरअसल, चंद कागजों में लिखे उनके गणितीय सूत्र ही उनकी सच्ची विरासत हैं. यह बात और है कि इस विरासत को गणित का कोई जानकार ही संभाल कर रख पायेगा. पटना से राजदेव पांडेय की रिपोर्ट.

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह के देहावसान के बाद प्रभात खबर ने उनके निवास स्थान की बड़ी श्रद्धा से पड़ताल की. पाया कि विरासत बतौर उनके बिस्तर पर तीन-चार पेन और कागज के पन्ने बिखरे पड़े हैं. पन्नों पर कुछ अजीब से सूत्र और शब्द लिखे हैं. एक कमरे में रखी तीन बड़ी अलमारियों में किताबें भरी हुई हैं. इन किताबों में गणित के अलावा भारतीय इतिहास और वेद और वेदांत के तमाम ग्रंथ हैं. उसी से सटा उनका स्टडी रूम भी अलग है. इस कमरे में एक बड़ी आरामदायक कुर्सी और शानदार टेबुल रखी हुई है. उस पर किताबें और डायरियां सजी हैं.
संभवत: उनके नातियों में किसी एक ने बताया कि बाबा अक्सर भोर में इस कमरे में बैठते. कुछ लिखते. रामचरित मानस का पाठ वे जरूर करते. पाठ धार्मिक अनुष्ठान की तरह नहीं, बल्कि यूं ही बैठे-बैठे, कभी धीमी तो कभी तेज आवाज में उसका गायन करते. उनके बेड पर बांसुरी भी थी जिसे वे बजाते थे.
जब भी विवेकानंद की तस्वीर पर नजर पड़ती, उतनी बार उन्हें प्रणाम करते: उन्हीं दोनों कमरों में उनकी हासिल की गयी कई उपाधियां टगी हैं. बचपन, युवा और प्रौढ़ उम्र में उनके खींचें गये फोटो जीवंत हैं. उनके बेडरूम में विवेकानंद का फोटो सिर की तरफ टंगा है.
परिजनों ने बताया कि वे स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते थे. दिन में कई बार उनकी तस्वीर को प्रणाम भी करते. उनका बिस्तर साफ सुथरा, लेकिन एक जगह कुछ धब्बे थे. परिजनों ने बताया कि सुबह अस्पताल जाते समय उनको उल्टी हुई थी.
घर की एक दीवार पर उन्होंने गणित के कुछ सूत्र चस्पा कर रखे थे. हालांकि कई सूत्रों के हल भी उन्हीं के साथ चस्पा थे. गणित से उनको कितना लगाव था कि उनकी लिखी डायरियों में गणित के अलावा कोई दूसरी चीज दिखाई नहीं देती है.
अंक और ज्यामितीय आकृतियां को ये महान व्याख्याता बेहद साफ सुथरे ढंग से रखते थे. इंडियन इंस्टीट्यूट एंड टेक्नोलॉजी कानपुर और मुंबई के प्रमाण पत्र भी उनके घर में टंगे हैं. वे वहां के असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर थे. द रीजेंट्स ऑफ यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से उन्हें मिली पीएचडी की उपाधि भी वहां मौजूद विरासत की सूची में शामिल है.
अमेरिका ने माना था इंडियाज ब्यूटीफुल माइंड का लोहा : अमेरिका के एक अखबार में उनके ऊपर आर्टिकल छापा. इसका शीर्षक था ‘इंडियाज ब्यूटीफुल माइंड’. यह आर्टिकल उनके कमरे में टंगा है. यह आर्टिकल उस समय का है, जब अमेरिका में मून मिशन के दौरान अपोलो अंतरिक्षयान लांच किया जा रहा था.
लांचिंग के कुछ क्षण बाद ही अचानक 31 कम्प्यूटर बंद हो जाते हैं. सभी वैज्ञानिक चिंतन में डूब जाते हैं. सबके सामने चुनौती थी कि अपोलो कब पहुंचेगा? कहां होगा? सभी वैज्ञानिक,गणितज्ञ आकलन कर रहे थे. डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह वहां मौजूद थे.
आर्टिकल में लिखा है कि ने उस समय डॉ सिंह ने आंखें बंद कीं. कुछ समय बाद, लेकिन सबसे पहले उन्होंने एक गणितीय आंकड़ा पेश किया. कम्प्यूटर जब ठीक हुआ तो उससे अपोलो के पहुंचने के संदर्भ में निकला आंकड़ा और डा सिंह के कैलुकुलेशन से निकला आंकड़ा एक जैसा था.
तब वहां के अखबारों ने उन्हें ‘इंडियाज ब्यूटीफुल माइंड’ बताया. वे 1965 में अमेरिका चले गये थे. 1969 में उन्हें कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि मिली. बाद में वे वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्राध्यापक बने. संभवत: 1971-72 में वे भारत लौट आये. यहां वे मुंबई, कानपुर आइटी और आइएसआइ काेलकाता में प्राध्यापक रहे. इन सब के साक्ष्य उनके कमरे में मौजूद हैं.
सामाजिक परंपराओं पर अटूट विश्वास
अमेरिका में पढ़ने के बाद भी उन्होंने सामाजिक परंपराओं को हमेशा निभाया. उनके आवास पर एक ऐसी तस्वीर मिली, जिसमें उन्होंने पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध कार्यक्रम के समय सिर मुंड़वाया था. यह फोटो 11 नवंबर, 1987 का था. फोटो पर रांची बसंतपुर लिखा है. जाहिर है कि ये फोटो रांची में ही बनी होगी. फोटो में वे कोट और टाई में हैं.

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