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अमूर्तन के श्रेष्ठ चित्रकार थे रामकुमार

II अशोक वाजपेयी II वरिष्ठ साहित्यकार < हाल ही में हुए चित्रकार रामकुमार के देहावसान को आप किस तरह की क्षति के रूप में देखते हैं? रामकुमार हमारे एक मूर्धन्य थे- वयोवृद्ध पर अंत तक सक्रिय. उनकी आयु 94 के लगभग थी और इस अर्थ में परिपक्व. उन्होंने अपने जीवन के सात दशक यह कलाकर्म […]

II अशोक वाजपेयी II

वरिष्ठ साहित्यकार

< हाल ही में हुए चित्रकार रामकुमार के देहावसान को आप किस तरह की क्षति के रूप में देखते हैं?

रामकुमार हमारे एक मूर्धन्य थे- वयोवृद्ध पर अंत तक सक्रिय. उनकी आयु 94 के लगभग थी और इस अर्थ में परिपक्व. उन्होंने अपने जीवन के सात दशक यह कलाकर्म करते हुए गुजारे थे: कला में रत अथक जिजीविषा के सात दशक. यह उस अद्भुत जिजीविषा का समापन है. वे मोटे तौर पर जिस पीढ़ी के आधुनिक थे, उसमें उनके बाद कृष्ण खन्ना और अकबर पद्मसी ही बचे हैं.

< आधुनिकों की इस पीढ़ी को हम आधुनिकता के नक्शे पर कैसे-कहां रखसकते हैं?

यह पीढ़ी अमृत शेरगिल, रबींद्रनाथ ठाकुर और यामिनी राय जैसे मूर्धन्यों के बाद की पीढ़ी है और एक तरह से हमारी आधुनिकता के वे स्थापित ही साबित हुए. उनकी आधुनिकता, भारतीय स्वभाव के अनुरूप, बहुलता मूलक ही रही. हुसेन, रजा, सूजा, गायतोंडे, तैयब मेहता और रामकुमार की शैलियां, दृष्टियां और आशय-अभिप्राय अलग-अलग थे, पर एक समग्र बहुल आधुनिकता में एकत्र होते हैं. कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे जो नये हिंदी कवि ‘तार सप्तक’ में एकत्र थे, वे सब एक-दूसरे से इतने अलग थे.

< रामकुमार प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के आरंभिक या विधिवत सदस्य नहीं थे. फिर भी उन्हें इस ग्रुप के साथ मानने-देखने का क्या आधार है?

उनकी आधुनिक संवेदना और ग्रुप के अधिकतर सदस्यों से उनकी दोस्ती. बल्कि, इस बात को रेखांकित करना चाहिए कि इन आधुनिकों के बीच कला-जगत और कला की बिक्री की दुनिया में परस्पर प्रतिस्पर्धा थी, पर यह बात उनकी गहरी दोस्ती, एक-दूसरे के लिए चिंता, आपसी मदद, परस्पर गरमाहट के आड़े कभी नहीं आयी. ऐसी सघन आत्मीयता, दुर्भाग्य से, बाद की पीढ़ियों में अक्सर नहीं रही है.

< रामकुमार तो हिंदी कथाकार भी थे? इस रूप में उन्हें कैसे देखते हैं आप?

रामकुमार ने शुरू में बहुत मार्मिक कहानियां निम्न मध्यवर्गीय जीवन, उसकी उदासी और विडंबनाओं के बारे में लिखी थीं. उनका उस समय नोटिस भी लिया गया था. उनकी कला का साहित्य से गहरा संबंध था. अपने आरंभिक जीवन में, फ्रांस में कला-शिक्षा के दौरान, उनकी वहां के साहित्यिक जीवन में अच्छी पैठ और पहचान थी. वे फ्रांस के कई बड़े कवियों लुई अरोंगा, पाल एलुआर आदि को व्यक्तिगत रूप से जानते थे. उन्होंने साठ के दशक में कुणिका गैलरी दिल्ली में ईलियट की महान् कविता ‘द वेस्टलैंड’ को प्रणति देते हुए एक पूरी चित्र-प्रदर्शनी भी की थी.

श्रीकांत वर्मा, कृष्ण बलदेव वैद, अज्ञेय आदि से रामकुमार के अच्छे संबंध थे. मुक्तिबोध 1964 में जब दिल्ली के एक अस्पताल में बीमार और अचेत थे, तब रामकुमार ने उनके कई स्केच बनाये थे, जो हमने मुक्तिबोध के पहले कविता संग्रह ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ में शामिल किये थे.

< उनके आरंभिक चित्रों में मानवाकृतियां थीं, लेकिन फिर बाद के चित्रों में आकृति गायब हो गयी और वे ज्यादातर लैंडस्केप बनाने लगे.

यह सही है. जैसे कि अपना कथा में वैसे ही आरंभिक कला में रामकुमार के यहां निम्न मध्यवर्ग की मानव-छवियां हैं: उदास, अलग-थलग. बाद में उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मानवीय चिंता और जिज्ञासा खोजने, व्यक्त करने का माध्यम बनाया. पर उनके लैंडस्केप एक तरह के ‘इनस्केप’ हैं. बाहर और अंदर रामकुमार के यहां घुले-मिले हैं.

< रामकुमार के चित्र अमूर्तन की ओर झुके हैं?

रामकुमार अमूर्तन के एक श्रेष्ठ चित्रकार थे. वे कम बोलने में विश्वास करते थे. चित्रों में भी वे बहुत किफायत, संयम से काम लेते थे. उनके यहां कम बोलना लगभग उनके चित्रों का सहज स्वभाव है. बड़बोले समय में वे कम बोलनेवाले चित्रकार थे. यह उनके व्यक्तित्व का अच्छा आयाम था.

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