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शहर हो या देहात ‘ठनका’ कहीं भी ले सकता है जान, जानें वज्रपात से बचने के उपाय

92 बिहार में मौत 1 जून से 1 जुलाई तक इसी साल 26 जून को पूरे देश में आसमानी बिजली (ठनका) गिरने की 80,048 घटनाएं हुई हैं. इसमें बिहार में 7030, झारखंड में 16079 और यूपी में 1724 बिजली गिरने की घटनाएं दर्ज की गयीं. इसमें क्रमश: 15, 32 व 35 लोग मारे गये. इंडियन […]

92 बिहार में मौत 1 जून से 1 जुलाई तक
इसी साल 26 जून को पूरे देश में आसमानी बिजली (ठनका) गिरने की 80,048 घटनाएं हुई हैं. इसमें बिहार में 7030, झारखंड में 16079 और यूपी में 1724 बिजली गिरने की घटनाएं दर्ज की गयीं. इसमें क्रमश: 15, 32 व 35 लोग मारे गये.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मैनेजमेंट (आइआइटीएम) की तरफ से जारी लाइटनिंग (वज्रपात) के इन आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो साफ हो जाता है कि झारखंड में बिहार की तुलना में दोगुना से अधिक बिजली गिरने की घटनाएं हुईं. हालांकि, वहां मृतकों की संख्या बिहार की तुलना में आधी ही रही. जाहिर है कि बिहार में ठनका से होने वाली विभीषिका से बचाव के रास्तों के बारे में लोगों को बिल्कुल नहीं पता है. राजदेव पांडेय की रिपोर्ट.
इंडियन अर्थ साइंस मिनिस्ट्री के अधीन काम करने वाली संस्था आइआइटीएम की रिपोर्ट बताती है कि 26 जून को हुई अधिकतर मौतें खेतों और खुले स्थानों में हुई. चूंकि, ठनका लंबवत गिरने के बाद जमीन पर काफी दूरी तक फैल गया था. इस तरह एक बड़े क्षेत्र में बिजली जमीन में पसर गयी. इस कारण से लोग भागने की सोच भी नहीं सके.
बात साफ है बरसात में बिना सावधानी बरते, घर से निकलना मौत को आमंत्रण देना है. विशेषज्ञों का कहना है कि बेशक आसमान से टूटने वाली इस आफत वज्रपात (ठनका) को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इससे बचा जरूर जा सकता है. आसमान से टूट रही आफत बेलगाम इसलिए भी बनी हुई है कि लोग इससे बचने के तमाम एहतियाती उपायों से अनजान हैं.
आपदा प्रबंधन यूनिट की गतिविधियां धरातल तक नहीं पहुंची हैं. फिलहाल लोगों को चाहिए कि जब भी बादल गरजना शुरू हों, सुरक्षित स्थानों से बाहर न निकलें और अगर कहीं फंस भी जाएं, तो लोगों को चाहिए कि बड़े पेड़ों की बजाय छोटे पेड़ और मकानों के नीचे खड़े हो जाएं, क्योंकि बिजली अधिकतर ऊंचे स्थानों या लंबे-ऊंचे पेड़ों पर ही गिरती है.
एक्ट ऑफ गॉड नहीं है ठनका
बिजली प्राकृतिक आपदा है न कि ‘एक्ट ऑफ गॉड’ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्राकृतिक आपदा से नागरिकों को बचाने की जिम्मेदारी राज्य की है. राज्य को चाहिए कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे. अगर ऐसा संभव नहीं हो, तो परिवार के किसी भी खास सदस्य की मौत होने पर पीड़ित परिवार को मुआवजा दे.
इस आशय का आदेश पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने हाल ही में दिया है. हाइकोर्ट ने माना है कि आकाशीय बिजली को भी सुनामी और भूकंप की तरह प्राकृतिक अापदा मानना चाहिए, न कि ‘एक्ट ऑफ गॉड’. उल्लेखनीय है िक देश में 2010 से लेकर 2018 तक 22,027 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई है. यानी हर साल औसत 2447 लोगों की जान बिजली गिरने से जा रही है.
मौसम की जानकारी लोगों को मिलनी जरूरी : कर्नल संजय
वज्रपात से लोगों को बचाने के लिए काम कर रही क्लाइमेट रीजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (सीआरओपीसी) के चेयरमैन कर्नल संजय श्रीवास्तव ने बताया कि बिहार के संदर्भ में ठनका ज्यादा बड़ी मुसीबत है.
प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सरकारों और लोगों को जागरूक कर रहे कर्नल संजय श्रीवास्तव ने बताया कि आज के दौर में बिजली गिरने से मौत होना शर्मनाक है. वह भी तब, जब 24 घंटे पहले औपचारिक तौर पर चेतावनी देने का दावा किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक तरीके और सोच समझ से लोगों की जिंदगियां बचायी जा सकती हैं. उन्होंने साफ किया कि बिहार में इस संदर्भ में अभी काफी काम करने की जरूरत है. झारखंड ने बिजली गिरने से होने वाली मौतों पर काफी अंकुश जागरूकता की दम पर ही लगाया गया है.
कर्नल श्रीवास्तव के मुताबिक ठनका से 71 फीसदी मौतें पेड़ के नीचे खड़े होने से होती हैं. शेष 29 फीसदी लोग खुले में होने की वजह बज्रपात के शिकार हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि अगर बचाव के संबंध में जागरूकता बढ़ायी जाये तो 80 फीसदी मौतें रोकी जा सकती हैं. फिलहाल जिस तरह से क्लाइमेट चेंज हो रहा है, उससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गयी हैं.
वज्रपात से बचने के उपाय
बिजली गिरने के दौरान मजबूत छत वाला पक्का मकान सबसे सुरक्षित है.
घरों में तड़ित चालक लगवाएं
बिजली से चलने वाले उपकरण बंद कर दें.
यदि किसी वाहन पर सवार हैं तो तुरंत सुरक्षित जगह चले जाएं.
टेलीफोन, बिजली के पोल के अलावा टेलीफोन और टीवी टावर से दूर रहें.
कपड़ा सुखाने के लिए तार का प्रयोग ना कर जूट या सूत की रस्सी का उपयोग करें.
किसी इकलौते पेड़ के नीचे नहीं जाएं.
यदि जंगल में हैं, तो बौने (कम ऊंची पेड़) और घने पेड़ों के नीचे जाएं.
दलदल वाले स्थानों और जलस्रोतों से दूर रहने की कोशिश करें.
गीले खेतों में हल चलाने या रोपनी करने वाले किसान और मजदूर सूखे स्थानों पर जाएं.
ऊंचे पेड़ के तनों या टहनियों में तांबे का एक तार बांधकर जमीन में काफी गहराई तक दबा दें ताकि पेड़ सुरक्षित हो जाए.
नंगे पैर फर्श या जमीन पर कभी खड़े ना रहें.बादल गर्जन के दौरान मोबाइल और छतरी का प्रयोग न करें.
आंधी-बारिश व तूफान के दौरान तत्काल बाद घर से बाहर न निकलें. देखा गया है कि बादल गर्जन व तेज बारिश के होने के 30 मिनट बाद तक बिजली गिरती है.
अगर कहीं कोई तेज बारिश में फंस जाएं तो अपने हाथों को घुटनों पर और सिर को घुटनों के बीच में रखें.इससे शरीर को कम-से-कम नुकसान होगा.
घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर पर्दा लगा देना चाहिए.
बादल गर्जन और बारिश के दौरान घर के नल, टेलीफोन ,टीवी और फ्रिज आदि न छूएं.
बारिश में दो पहिया वाहन, साइकल, नौका और दूसरे खुले वाहन में हों, तो तत्काल रोककर सुरक्षित स्थान पर चले जाएं.
बिजली और टेलीफोन के पोल के नीचे न खड़े हों.उस दौरान खेतों में खड़े न हों.
बिजली गिरने के पीछे क्लाइमेट चेंज
आसमानी अाफत ठनका की पटकथा धरातल से 1500 फुट से लेकर 75 हजार फुट तक पसरे कपासी मेघ लिखते हैं. क्लाइमेट चेंजिंग पर अध्ययन कर रहे मौसम एवं पर्यावरण विज्ञानियों के मुताबिक बिहार के क्लाइमेट जोन में गर्मी की समयावधि (हीट स्पेल) अब सामान्य से अधिक हो गया है
इस साल तो यह चरम पर है. सबसे अचरज भरी बात यह सामने आयी है कि अभी तक वज्रपात से अधिकतम मौतें प्री-मॉनसून सीजन में आती थीं, अब जून में भी आकाशीय बिजली से लोग मर रहे हैं.
बिहार और झारखंड में जलवायुविक परिक्षेत्र में क्यूमिलोनिंबस क्लाउड (खास तरह के कपासी वर्षा मेघ) बन रहे हैं. स्थानीय गर्मी और नमी की अधिकता से यह बादल इतने तेजी से बन रहे हैं कि अपरिपक्व अवस्था में न केवल बरस जाते हैं, बल्कि बिजली (ठनका या वज्रपात) भी गिराते हैं. आसमान में अब ये बादल सामान्य से काफी नीचे बन रहे हैं. इसकी वजह से वज्रपात ज्यादा खतरनाक हो गया है.
पिछले एक दशक से बिजली गिरने की दर निरंतर बढ़ी है. अंतिम तीन-चार साल में वज्रपात की दर चरम पर पहुंच गयी है. जलवायु विज्ञानी इस बदलाव को क्लाइमेट चेंज का सबसे डरावना पहलू मान रहे हैं. जैसे कि पता है कि दशक भर पहले तक बिहार और झारखंड में गर्मी सूखी हुआ करती थी, अब वह नमी युक्त अथवा बरसात से प्रभावित हो गयी है, जिसकी वजह से वातावरण में ऊमस काफी बढ़ी हुई है.
10 लाख लोगों तक मैसेज पहुंचाने का दावा
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का आधिकारिक दावा है कि वह विभिन्न माध्यमों से एसएमएस और वाट्सएप मैसेज के जरिये करीब दस लाख लोगों से अधिक लोगों को विभिन्न आपदाआें की सूचना भेजी जाती है. यह मैसेज आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, दीदियों, प्रधानों और विभिन्न विभागाें के मैदानी अमले को भेजे जाते हैं. बावजूद अभी तक खासतौर पर लाइटनिंग पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. प्राधिकरण का दावा है कि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए कई आपदा प्रबंधन उपाय कर रहा है.
बढ़ी हैं घटनाएं
यह सही है कि बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन इसके पीछे कोई ठाेस कारण की स्टडी अभी उपलब्ध नहीं है. प्राधिकरण समाज के विभिन्न वर्गों के बीच इससे बचने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है. इससे सतर्कता के मैसेज भी भेजे जाते हैं. जागरूकता के और उपाय किये जा रहे हैं.
—व्यास जी, वाइस चैयरमैन
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

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