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भारतीय बेड़े में शामिल होंगे अमेरिकी हेलीकॉप्टर, तकनीक से बढ़ेगी सैन्य ताकत

रक्षा कार्यों, आतंकी कार्रवाइयों से निबटने और दुर्गम इलाकों में निर्माण सामग्री पहुंचाने के अलावा आपदा के समय राहत कार्य आदि में हेलीकॉप्टरों की भूमिका सर्वाधिक प्रभावी समझी जाती है. हालांकि, भारत के पास पहले से कई उन्नत हेलीकॉप्टर हैं, लेकिन खास मौकों के लिए बने अमेरिकी हेलीकॉप्टरों की जरूरत काफी समय से महसूस की […]

रक्षा कार्यों, आतंकी कार्रवाइयों से निबटने और दुर्गम इलाकों में निर्माण सामग्री पहुंचाने के अलावा आपदा के समय राहत कार्य आदि में हेलीकॉप्टरों की भूमिका सर्वाधिक प्रभावी समझी जाती है. हालांकि, भारत के पास पहले से कई उन्नत हेलीकॉप्टर हैं, लेकिन खास मौकों के लिए बने अमेरिकी हेलीकॉप्टरों की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही है. जानिये इन हेलीकॉप्टर्स के साथ भारत के पास मौजूद अन्य खास सैन्य हथियारों के बारे में….
प्रमोद जोशी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के ठीक पहले भारत ने अमेरिका से बोइंग के 22 अपाचे और 15 शिनूक (चिनूक) हेलीकॉप्टर खरीदने को मंजूरी दी. भारत इनके लिए तकरीबन तीन अरब डॉलर की कीमत चुकायेगा. पिछले कुछ साल में अमेरिका ने भारत के साथ 10 बिलियन से ज्यादा के रक्षा सौदे किये हैं.
मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति की बैठक के बाद यह फैसला किया गया. अपाचे हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति का अनुबंध इनकी निर्माता कंपनी बोइंग के साथ होगा, जबकि इनके शस्त्रास्त्र, राडार और रेडियो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अमेरिकी सरकार के साथ. 11 अपाचे तथा 4 चिनूक हेलीकॉप्टर और खरीदे जा सकते हैं. इनके साथ भारत हेलफायर मिसाइल भी खरीदेगा.
भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त सबसे ज्यादा रूसी हेलीकॉप्टर हैं. शुरू में उसके पास फ्रांसीसी हेलीकॉप्टर भी थे. स्वदेशी ध्रुव और रुद्र भी हैं. इनके अलावा नौसेना के पास ब्रिटिश सीकिंग हिलकॉप्टर भी हैं.
पर यह पहला मौका है जब भारतीय वायुसेना अमेरिकी हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल करने जा रही है. ये दोनों हेलीकॉप्टर हमारी वायुसेना के लिए ‘गेम चेंजर’ साबित होंगे. इसके अलावा ये हमारे देश में नयी तकनीक भी लायेंगे. अनुबंध के ऑफसेट प्रवधानों के तहत लगभग 60 करोड़ डॉलर का काम देश के एरोस्पेस सेक्टर में भी आयेगा.
1. अपाचे
इसे दुनिया का सबसे घातक अटैक हेलीकॉप्टर माना जाता है. भारत इसके एएच-64इ संस्करण को हासिल करने जा रहा है, जो इसके नवीनतम रूपों में से एक है. हालांकि, इस हेलीकॉप्टर का पहला संस्करण 1984 में तैयार किया गया, पर भारत को जो मिलेगा, उस सीरीज का पहला हेलीकॉप्टर अमेरिकी नौसेना को 2011 में सौंपा गया. अपाचे की भूमिका हमलावर हेलीकॉप्टर के रूप में है.
सन 1999 के करगिल युद्ध में भारत ने हिलकॉप्टरों का इस्तेमाल किया था, पर एक एमआइ-17 को जब तोलोलिंग के पास पाकिस्तानी सेना ने स्टिंगर मिसाइल की मदद से गिरा दिया. उसके बाद भारतीय वायुसेना ने रणनीति बदली और काफी ऊंचाई से मिराज-2000 विमानों ने लेजर बमों की मदद से प्रहार किये. उसके बाद से भारत में ऊंचाई से काम करनेवाले अटैक हेलीकॉप्टरों की जरूरत महसूस की गयी. भारत के पास इस समय एमआइ-35 और एचएएल रुद्र हेलीकॉप्टर हैं.
2011 में जब भारतीय वायुसेना के लिए अटैक हेलीकॉप्टर की तलाश चल रही थी, तब अपाचे एएच-64डी के मुकाबले रूस के एमआइ-28एच को परखा गया. अंततः अपाचे को स्वीकार किया गया. पर तब काफी विशेषज्ञों की राय थी कि रूसी हेलीकॉप्टर बेहतर था. बहरहाल अब भारतीय वायुसेना के पास एमआइ-35 भी है और एचएएल द्वारा विकसित लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर भी तैयार है.
अपाचे स्टैल्थी हेलीकॉप्टर है यानी राडार की पकड़ में आसानी से नहीं आता. यह हर तरह के ऑपरेशंस में उपयोगी है. खासतौर से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में. इसकी इंफ्रारेड प्रणाली इसे हरेक मौसम और दिन-रात दोनों हालात में कारगर बनाती है. इसमें 70 मिमी के रॉकेट और ऑटोमेटिक तोप के अलावा हैलफायर मिसाइल लगी है. एक माने में अपाचे शुद्ध अटैक हेलीकॉप्टर है.
उसके मुकाबले हमारे पास जो रूसी एमआइ-45 है, वह पूरी तरह अटैक हेलीकॉप्टर नहीं है. उसका इस्तेमाल दुश्मन के क्षेत्र में सैनिकों को पहुंचाने के लिए भी किया जाता है. इस तरह उसका उपयोग दो तरह से होता है. दो पायलट वाला अपाचे केवल हमलावर हेलीकॉप्टर है. सैनिकों को उतारने का काम हम शिनूक हैलीकॉप्टरों की मदद से करेंगे. भारत में अभी इस बात को लेकर बहस है कि अटैक हेलीकॉप्टर की जरूरत वायुसेना को है या थलसेना को. हमारी थलसेना भी अपनी हैलीकॉप्टर शाखा का विस्तार कर रही है. ये 22 अपाचे वायुसेना ले रही है. अब थलसेना ने 39 अपाचे खरीदने की पेशकश की है.
अपाचे चार ब्लेड और दो टर्बोशैफ्ट वाला हेलीकॉप्टर है. इसे अमेरिकी थलसेना के लिए ह्यूज हैलीकॉप्टर्स ने मॉडल-77 के नाम से शुरू किया था. इसके पहले प्रोटोटाइप मॉडल-77 ने पहली उड़ान 30 सितंबर, 1975 में भरी थी. अमेरिकी सेना ने इसे 1982 में अपनी स्वीकृति दी. सन 1984 में ह्यूज हेलीकॉप्टर्स को मैक्डॉनल डगलस ने 1984 में खरीद लिया. अमेरिकी थलसेना में 1986 में यह हैलीकॉप्टर शामिल हुआ. बाद में इस कंपनी को बोइंग ने खरीद लिया.
मोटे तौर अब तक 2100 अपाचे हेलीकॉप्टर बनाये जा चुके हैं.इस वक्त अमेरिकी सेना के अलावा जापान, ग्रीस, इसरायल, नीदरलैंड्स, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात की सेनाएं इसका संचालन करती हैं. ब्रिटेन में इसे लाइसेंस के तहत ऑगस्टा वेस्टलैंड अपाचे के नाम से बनाया जा रहा है. इसका इस्तेमाल पनामा, फारस की खाड़ी, कोसोवो, अफगािनस्तान और इराक के युद्धों में हो चुका है. इसरायली सेना ने इसका इस्तेमाल लेबनान और गजा पट्टी में किया है.
2. चिनूक
वियतनाम से लेकर इराक के युद्धों तक शामिल चिनूक दो रोटर वाला हैवीलिफ्ट हेलीकॉप्टर है. पहले चिनूक ने 1962 में उड़ान भरी थी. तब से अब तक उसमें तमाम तरह के सुधार हुए हैं. भारत जिस चिनूक को खरीद रहा है, उसका नाम है सीएच-47 एफ. इसका काम है भारी माल ढोना, युद्धक्षेत्र में रसद पहुंचाना. सामान्यतः यह 9.6 टन का वजन उठाता है. इसमें भारी मशीनरी, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियां शामिल हैं. इसकी दूसरी खासियत है इसकी तेज गति. भारत को इसकी दरकार युद्ध के अलावा इन दिनों सीमा पर हो रहे सड़क निर्माण के वास्ते भी है. सीमा सड़क संगठन को भी चिनूक का इंतजार है.
साठ के दशक में बोइंग वर्टोल ने इसका डिजाइन तैयार किया था. इन दिनों इसका निर्माण बोइंग रोटोक्राफ्ट सिस्टम्स करता है. एक माने में यह दुनिया के सक्रिय सबसे पुराने विमानों में से एक है. इसके अलावा अमेरिका का ही सी-130 परिवहन विमान भी काफी पुराना है. चिनूक दुनिया के 16 से ज्यादा देशों में सक्रिय है. पुराना होने के बावजूद इसके नवीनतम मॉडल दुनिया के सबसे आधुनिक हेलीकॉप्टरों में गिने जाते हैं.
भारतीय वायुसेना के पास इस समय रूसी एमआइ-26 हैवीलिफ्ट हेलीकॉप्टर है. एमआइ-26 दुनिया के सबसे भारी हेलीकॉप्टरों में शुमार किये जाते हैं. इसने भारतीय सेना की तमाम मौकों पर सेवा की है.
पर हाल के वर्षों में इनके स्पेयर पार्ट्स दिक्कतें आ रही हैं. दूसरे इसका ईंधन खर्च बहुत ज्यादा है. यह चिनूक के मुकाबले बहुत भारी है. एक खाली एमआइ-26 का वजन 28,200 किलोग्राम है. वहीं चिनूक का वजन 10,185 किलो. इस वजह से उसकी ईंधन की खपत कम है. समुद्री सतह पर एमआइ-26 की भार वहन क्षमता बेहतर है, पर ज्यादा ऊंचाई पर उसकी क्षमता कम होती जाती है.
हमारी सेना को पहाड़ी इलाकों पर रसद और सामग्री पहुंचाने का काम करना होता है. दो रोटर का डिजाइन होने के कारण चिनूक बेहतर स्थिति में है. दूसरे यह दुर्गम पहाड़ों के बीच कुशलता के साथ निकल सकता है. सन 2012 में इस हेलीकॉप्टर का अपग्रेडेड एमआइ-26 से तुलनात्मक अध्ययन किया गया. इधर भारत अपना मिडिल िलफ्ट हेलीकॉप्टर भी विकसित करने की दिशा में अग्रसर है. फिलहाल ये दोनों हेलीकॉप्टर सेना के लिए उपयोगी भूमिका निभायेंगे.
भारतीय सेना की 10 विकसित एवं आधुनिक शस्त्रप्रणाली
सैन्य ताकत के लिजाह से भारतीय सेना दुनिया में चौथे स्थान पर है. इसके पास अनेक विकसित एवं आधुनिक शस्त्रप्रणाली मौजूद है. जानते हैं तकनीकी रूप से उन्नत भारतीय सेना की 10 एडवांस्ड शस्त्रप्रणाली के बारे में :
1. पिनाका (एमबीआरएलएस)
पिनाका एमबीआरएलएस (मल्टीपल बैरल रॉकेट लॉन्च सिस्टम) का उत्पादन भारतीय सेना के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑरगेनाइजेशन (डीआरडीओ) द्वारा किया गया. यह बेहद ठंडे और पहाड़ी इलाकों के लिए उपयोगी है. वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान यह उपयोगी साबित हो चुका है. यह महज 44 सेकेंड में 40 से 65 किमी की रेंज तक 12 मिसाइल/ रॉकेट दागने में सक्षम है. खास वाहन पर लोड पिनाका में मोशन सेंसर्स और रोटेशन सेंसर्स का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि किसी चलती-फिरती चीज को भी निशाना बनाया जा सके. इसे कई मोड में संचालित किया जा सकता है. डीआरडीओ इसमें जीपीएस गाइडेंस सिस्टम को सेट करने पर काम कर रही है, ताकि इसे ज्यादा से ज्यादा सटीक बनाया जा सके. साथ ही इसकी रेंज को बढ़ाते हुए 120 किमी तक किया जा रहा है.
2. टी-90 भीष्म
रूस द्वारा भारत के लिए निर्मित टी-90 टैंक को भीष्म नाम दिया गया है. टी-80यू और टी-90यू को मिला कर बनाया गया टी-90 टैंक फायर कंट्रोल सिस्टम और मोबिलिटी के मामले में सर्वश्रेष्ठ है. बिना किसी मरम्मत के तीन दशकों तक इन टैंकों का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन टैंकों में सर्वाधिक एडवांस्ड जैमिंग सिस्टम, लेजर वार्निंग रिसीवर, दिन-रात स्पष्टता से दिखनेवाली तकनीक आदि इंस्टॉल किये गये हैं. तीन जवानों की क्षमतावाले भीष्म टैंक का वजन 48 हजार किलोग्राम है. 1,600 लीटर ईंधन की क्षमतावाला यह टैंक राह में नदियों को भी पार कर सकता है यानी पांच मीटर की गहराई तक पानी में भी चल सकता है. इसे मैनुअली और रिमोट, दोनों ही माध्यमों से संचालित किया जा सकता है. ऐसे 700 टैंक रूस से खरीदे गये थे, जबकि 347 टैंकों का निर्माण अब भारत में ही किया जा रहा है.
3. आइएनएस विक्रमादित्य
284 मीटर लंबे इस युद्ध पोत पर मिग-29के, कामोव 31 और कामोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक समेत समुद्री निगरानी के लिए 6 एडल्यूएस/ एइडब्ल्यू हेलिकॉप्टर तैनात हैं. 45 हजार किलोग्राम वजन का यह युद्ध पोत भारतीय समुद्री सीमा की निगरानी करनेवाला सबसे बड़ा पोत है. इस युद्ध पोत में सेंसर सेट किया गया है, जिस कारण इसे एयरबॉर्न राडार सिस्टम से ट्रैक नहीं किया जा सकता है. हालांकि, रूस से इसकी खरीदारी वर्ष 2004 में ही तय की गयी थी, लेकिन भारतीय नौसेना में आधिकारिक तौर पर इसे जून, 2014 को शामिल किया जा सका. इस युद्ध पोत का जीवनकाल करीब 40 वर्ष बताया गया है.
4. नाग मिसाइल और नामिका (नाग मिसाइल कैरियर)
नाग डीआरडीओ द्वारा विकसित एक मिसाइल है, जो ‘फायर एंड फॉरगेट’ यानी दागो और भूल जाओ के सिद्धांत पर आधारित है. इस एंटी-टैंक मिसाइल को दुनिया के सर्वाधिक टैंक विध्वंसक मिसाइलों में शामिल किया जाता है, जो पूरी तरह से फाइबरग्लास का बना है. इसका वजन महज 42 किलोग्राम है और इंफ्रारेड इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए इसे 230 किमी प्रति सेकेंड की स्पीड से चार से पांच किमी की रेंज तक लक्ष्य को भेदा जा सकता है. नामिका नाग मिसाइल कैरियर है, जो अपने साथ 12 मिसाइलों को ले जाने में सक्षम है, जिनमें से आठ ‘रेडी-टू-फायर’ मोड में होते हैं.
5. फॉल्कन अवाक्स
एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम का संक्षिप्त नाम है अवाक्स (एडब्ल्यूएसीएस), जिसका इस्तेमाल एयरक्राफ्ट, शिप और वाहनों को डिटेक्ट करने के लिए किया जाता है. भारतीय वायु सेना के पास दुनिया के एडवांस्ड अवाक्स मौजूद हैं, जिनमें से तीन सक्रिय सेवा में हैं. एक ए-50 फॉल्कन अवाक्स है, जो इजराइली एल्टा इएल/ डब्ल्यू-2090 राडार से सुसज्जित है. किसी एयरक्राफ्ट, शिप या वाहन के खोज अभियान के समय इसके राडार सभी दिशाओं में इलेक्ट्रॉनिकली स्कैनिंग करने में सक्षम हैं. कंट्रोल सेंटर से दिशानिर्देश हासिल करने में सक्षम यह अपने लक्ष्य को 400 किमी के दायरे में तलाश सकता है. इसमें एरियल रिफ्यूलिंग सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम भी लगा है.
6. पीएडी/ एएडी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम
पाकिस्तान और चीन से सेंसिंग बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चुनौतियों के मद्देनजर भारत ने बीएमडी डिफेंस सिस्टम को लॉन्च किया. बैलिस्टिक मिसाइल एक शॉर्ट-रेंज मिसाइल है, जिसे बेहद कम समय में निर्देशित किया जा सकता है. बीएमडी सिस्टम से पांच हजार किमी से किसी बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट किया जा सकता है. बीएमडी में दो इंटरसेप्टर मिसाइल्स हैं- ज्यादा ऊंचाई के लिए पृथ्वी एयर डिफें स (पीएडी) मिसाइल और कम ऊंचाई के लिए एडवांस्ड एयर डिफेंस (एएडी) मिसाइल. बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से युक्त इस संदर्भ में भारतीय सेना दुनिया में चौथे स्थान पर है. पृथ्वी एयर डिफेंस और एडवांस्ड एयर डिफेंस की मारक क्षमता 99.8 फीसदी तक सटीक पायी गयी है.
7. आइएनएस चक्र
रूस द्वारा निर्मित यह एक परमाणु-ऊर्जा चालित पनडुब्बी है. यह पनडुब्बी लगातार कई दिनों तक पानी के भीतर रहने में सक्षम है, जबकि आम तौर पर पारंपरिक पनडुब्बियों को रोजाना कम से कम एक बार पानी की सतह पर आना होता है. 80 सैनिकों की क्षमतावाली इस पनडुब्बी में 36 तारपीडो और एंटी-शिप मिसाइल लगे हैं. जीरो न्वॉइज लेवल यानी बिल्कुल आवाज नहीं करनेवाले इस सबमरीन को बड़ी रकम (900 मिलियन डॉलर से ज्यादा) चुका कर रूस से खरीदा गया है.
8. आइएनएस विशाखापत्तनम
यह एक उन्नत पोत विध्वंसक है, जिसे वर्ष 2018 में भारतीय नौसेना में शामिल किया जायेगा. 163 मीटर लंबा और 7,300 टन वजनी इस पोत पर आठ सुपरसोनिक ब्रह्मोस एंटी-शिप मिसाइल, 32 बराक-8 लॉन्ग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल समेत अनेक आधुनिक हथियार मौजूद होंगे. समुद्र में यह एक साथ कई चुनौतियों से निबटने में सक्षम होगा.
9. सुखोइ एसयू-30 एमकेआइ
भारतीय वायु सेना में मौजूदा मिग और जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों का दौर बीत रहा है और अब सुखोइ एसयू-30 एमकेआइ को इसमें शामिल किया जा रहा है. इस लड़ाकू विमान को भारत के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है.
हालांकि, मूल रूप से इसे एसयू-30 एमके ने विकसित किया, लेकिन भारतीय जरूरतों के मुताबिक इसे भारत में नये सिरे से डिजाइन किया गया, जिस कारण इसके नाम के आखिर में ‘आइ’ जोड़ा गया है. यह विमान अपने साथ आठ टन हथियार ले कर जा सकता है और जल्द ही इसे ब्रह्मोस और निर्भय क्रूज मिसाइलों से भी लैस किया जायेगा.
10. ब्रह्मोस मिसाइल
ब्रह्मोस दुनिया का सबसे तेज क्रूज मिसाइल है. इसमें किये जाने वाले अनेक सुधारों के बाद वर्ष 2017 में भारत दुनिया का एकमात्र देश हो जायेगा, जिसकी जल, थल और वायु सेना तीनों ही को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की क्षमता हासिल हो जायेगी. इसी श्रेणी के अन्य मिसाइलों के मुकाबले ब्रह्मोस की वेलोसिटी और फ्लाइट रेंज तीन गुना ज्यादा है. फिलहाल देश में सालाना ऐसे 100 मिसाइलों का निर्माण किया जा रहा है.
(डिफेंस न्यूज डॉट इन से साभार)

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